आपातकाल, आजाद भारत का सबसे काला अध्याय। लेकिन इसके बारे में हम जानते कितना है? स्कूल की पढ़ाई में आपातकाल का जिक्र ही नहीं हुआ। जब काॅलेज आया तब पता चला कि आपातकाल जैसा कुछ हुआ था। उसमें भी आधी-अधूरी बात बताई गई, जैसे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया, नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया, उसके बाद दो साल तक देश तानाशाही में चला। लेकिन उस दो साल में क्या-क्या हुआ, ये पता नहीं चला? इस किताब में इमरजेंसी के बारे में बड़ी गहराई से लिखा गया है। इसमें आपातकाल के तानाशाह के रवैये को बताया गया है जिसे सरकार अनुशासन का नाम दे रही थी। किताब अपने नाम के हिसाब से बिल्कुल फिट बैठती है, इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी।
किताब इनसाइड स्टोरी ऑफ इमरजेंसी का हिंदी अनुवाद है। इसको लिखा है वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने। कुलदीप नैयर का जन्म 1923 में सियालकोट में हुआ था। वहां उन्होंने लाहौर यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। बंटवारे के समय दिल्ली आ गए और यहां अपने कैरियर की शुरूआत उर्दू अखबार ‘अंजाम’ के साथ की। वे लाल बहादुर शास्त्री के सूचना अधिकारी जेंसीभी रहे। पत्रकारिता में वे काफी आगे गए। वे बाद ‘द स्टेट्समैन’ के संपादक और यूएनआई एजेंसी के प्रबंध संपादक भी रहे। कुलदीप नैयर का निधन 23 अगस्त 2018 को हुआ। इस किताब के अलावा कुलदीप नैयर ने लगभग 17 किताबें लिखीं। जिनमें सबसे चर्चित स्कूप और एक जिंदगी काफी नहीं है।
इमरजेंसी पर बहुत सारी किताबें लिखी गई हैं, जैसे काॅमी कपूर की द इमरजेंसी, बिपिन चन्द्रा की इन द नेम ऑफ डेमोक्रेसी, ऐसी ही अनगिनत किताबें हैं। मैंने इनमें से कोई भी किताब नहीं पढ़ी है। लेकिन इस एक किताब ने मुझे इमरजेंसी के बारे में सब कुछ बता दिया। मैं ये तो नहीं कह सकता कि ये किताब आपातकाल पर सबसे अच्छी किताब है। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि इसको पढ़ने के बाद आप आपातकाल को अच्छी तरह से समझ पाएंगे। कुलदीप नैयर ने इस किताब में आपातकाल की हर महत्वपूर्ण घटना के बारे में बताया है और उसके पीछे की कहानी को भी बताया है। किताब बड़े ही सुनियोजित शैली में लिखी गई है जो उस फैसले के दिन से शुरू होती है और खत्म होती है और खत्म होती है जनता पार्टी के टकराव पर।
इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी, बुक के नाम से ही पता चल रहा है कि किताब में बहुत कुछ ऐसा है जो बहुत अंदर का है। किताब शुरू होती है 12 जून 1975 से। जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला आने वाला था। इसके पीछे की कहानी आपको इस किताब में पता चलेगी। आपको पता चलेगा कि क्यों जस्टिस सिन्हा 20 दिनों तक अपने घर से नहीं निकले थे? क्यों सिन्हा का टाइपराइटर फैसले के एक दिन पहले घर छोड़कर भाग गया था? इसके बाद ऐतहासिक फैसला आता है और उसी फैसले की वजह से देश में लगता है आपातकाल। आपातकाल और इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले के बीच 13 दिन तक समय था। उस 13 दिन की कहानी भी इस किताब में है।
इसके बाद आपातकाल लगा और पूरे देश से नेताओं और लोगों को जेल में ठूंस दिया गया। अखबारों पर सेंसरशिप लागू कर दी गई। जो नहीं मानता उसका लाइसेंस रद्द कर दिया गया। उसके बाद दो साल तक जो तानाशाही चली उसकी पूरी कहानी इस किताब में है। सरकार कितनी क्रूर हो सकती है, ये इस किताब को पढ़कर समझ में आता है। कई लोगों को तो मौत के घाट उतार दिया गया। इसमें एक नाम जरूर याद रखा जाना चाहिए, स्नेहलता रेड्डी। जो एक कन्नड़ फिल्म अभिनेत्री थी। उसकी दोस्ती जाॅर्ज फर्नांडिस से थी। उसी दोस्ती ने उसे पहले जेल पहले पहुंचाया और यातनाएं दी गईं कि वो मर गई। इससे भी दर्दनाक जाॅर्ज फर्नांडिस के भाई लाॅरेंस फर्नाडिंस के साथ हुआ। ऐसे ही तमाम किस्से इसमें दिये गये हैं। संविधान जो इस देश की आत्मा है। उसे छलनी करने का काम इस इमरजेंसी ने किया। एक व्यक्ति को बचाने के लिए संशोधन किये। ये तब हुआ, जब उसके आधे से ज्यादा सदस्य तो जेल में था। विपक्ष न होने के बावजूद विपक्ष संसद में था। ये उन दिनों के संसद के भाषणों से समझा जा सकता है। इसके बाद अचानक जाने क्या हुआ और तानाशाह ने सबको रिहा कर दिया। 1977 के चुनाव होने वाले थे। लोकतंत्र बनाम तानाशाह की लड़ाई हुई, जीता लोकतंत्र।
किताब कई लिहाज से अच्छी है। कुलदीप नैयर ने जिस प्रकार से इस किताब को लिखा है, वो लाजवाब है। लिखने की भाषा और शैली साधारण और सरल है। किताब जानकारियों से भरी हुई है। चाहे वो इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला हो, संजय का बेबाक रवैया हो, सारे नेताओं की चमचागिरी हो या फिर संविधान में संशोधन की बात हो। ये सारी बातें आपको किताब में किस्से के रूप में मिलेंगी। जो आपको बहूत कुछ सोचने और समझने में मदद करेगी। किताब में ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपको कन्फ्यूज करेगा।
किताब में कुछ खामी हैं जो मुझे लगती हैं। कहीं-कहीं पर किसी जानकारी को सपाट तरीके से दिया गया है। जबकि वो किस्सा थोड़ा बड़ा हो सकता था। लेकिन ये लेखक की समझ पर निर्भर करता है कि वो क्या रखना चाहता है। दूसरी और अंतिम खामी मुझे ये लगी कि किताब में सत्ता पक्ष के बारे में बहुत बताया गया है। लेकिन जिन कैदियों को जेल में रखा गया था उनके साथ जेल में क्या हुआ था? उनके ढाई साल जेल में कैसे गुजरे? एक पाठक के तौर पर मैं उस पहलू को भी जानना चाहता था कि लेकिन वो बहुत कम है।
एक घंटे तक पुलिस ने मेरा बयान दर्ज किया और फिर मुझे जासूसों के एक दल के पास ले गए। वहां मुझे अचानक किसी ने थप्पड़ जड़ दिया। जब मुझे होश आया वे मुझे निर्वस्त्र कर चुके थे। वहां करीब 10 लोग थे और उन्होंने मुझे पीटना शुरू कर दिया। चार लाठियां टूट गईं। वे मेरे शरीर के हर एक अंग पर वार कर रहे थे। मैं फर्श पर पड़ा कराह रहा था। मैंने भीख मांगी, रेंगने लगा और फिर रहम की भीख मांगी। इस बीच वे मुझे फुटबाल की तरह लातों से मारते रहे।
ऊपर जो किस्सा दिया गया है वो लाॅरेंस फर्नांडिस का है। जिन्हें बहुत दर्दनाक यातना दी गई थी। ये तो बस एक छोटा-सी झलक है। आखिर में यही कहना चाहूंगा कि हर भारतीय को इस किताब को पढ़ना चाहिए। हमें पढ़ना चाहिए क्योंकि हम समझ पाएंगे उस दौर के बारे में। किताब को पढ़ने के बाद यही लगता है कि क्या सच में सरकार कितनी क्रूर हो सकती है? इसलिए सवाल करने बहुत जरूरी है तभी तो सरकार जनता की कीमत समझेगी। जो कहते हैं इमरजेंसी, अनुशासन की कार्रवाई थी उनको इस किताब को जरूर पढ़नी चाहिए। आजाद भारत के सबसे काले अध्याय पर लिखी ये सबसे जरूरी किताब है।
किताब- इमरजेंसी का इनसाइड स्टोरी।
लेखक- कुलदीप नैयर।
प्रकाशक- प्रभात पेपरबैक्स।
कीमत- 250 रुपए।
कुलदीप नैयर की इस किताब को यहां खरीदें-
इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी
लेखक के बारे में
लेखक |
इमरजेंसीः किताब की नजर से
इमरजेंसी पर बहुत सारी किताबें लिखी गई हैं, जैसे काॅमी कपूर की द इमरजेंसी, बिपिन चन्द्रा की इन द नेम ऑफ डेमोक्रेसी, ऐसी ही अनगिनत किताबें हैं। मैंने इनमें से कोई भी किताब नहीं पढ़ी है। लेकिन इस एक किताब ने मुझे इमरजेंसी के बारे में सब कुछ बता दिया। मैं ये तो नहीं कह सकता कि ये किताब आपातकाल पर सबसे अच्छी किताब है। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि इसको पढ़ने के बाद आप आपातकाल को अच्छी तरह से समझ पाएंगे। कुलदीप नैयर ने इस किताब में आपातकाल की हर महत्वपूर्ण घटना के बारे में बताया है और उसके पीछे की कहानी को भी बताया है। किताब बड़े ही सुनियोजित शैली में लिखी गई है जो उस फैसले के दिन से शुरू होती है और खत्म होती है और खत्म होती है जनता पार्टी के टकराव पर।
इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी, बुक के नाम से ही पता चल रहा है कि किताब में बहुत कुछ ऐसा है जो बहुत अंदर का है। किताब शुरू होती है 12 जून 1975 से। जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला आने वाला था। इसके पीछे की कहानी आपको इस किताब में पता चलेगी। आपको पता चलेगा कि क्यों जस्टिस सिन्हा 20 दिनों तक अपने घर से नहीं निकले थे? क्यों सिन्हा का टाइपराइटर फैसले के एक दिन पहले घर छोड़कर भाग गया था? इसके बाद ऐतहासिक फैसला आता है और उसी फैसले की वजह से देश में लगता है आपातकाल। आपातकाल और इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले के बीच 13 दिन तक समय था। उस 13 दिन की कहानी भी इस किताब में है।
इसके बाद आपातकाल लगा और पूरे देश से नेताओं और लोगों को जेल में ठूंस दिया गया। अखबारों पर सेंसरशिप लागू कर दी गई। जो नहीं मानता उसका लाइसेंस रद्द कर दिया गया। उसके बाद दो साल तक जो तानाशाही चली उसकी पूरी कहानी इस किताब में है। सरकार कितनी क्रूर हो सकती है, ये इस किताब को पढ़कर समझ में आता है। कई लोगों को तो मौत के घाट उतार दिया गया। इसमें एक नाम जरूर याद रखा जाना चाहिए, स्नेहलता रेड्डी। जो एक कन्नड़ फिल्म अभिनेत्री थी। उसकी दोस्ती जाॅर्ज फर्नांडिस से थी। उसी दोस्ती ने उसे पहले जेल पहले पहुंचाया और यातनाएं दी गईं कि वो मर गई। इससे भी दर्दनाक जाॅर्ज फर्नांडिस के भाई लाॅरेंस फर्नाडिंस के साथ हुआ। ऐसे ही तमाम किस्से इसमें दिये गये हैं। संविधान जो इस देश की आत्मा है। उसे छलनी करने का काम इस इमरजेंसी ने किया। एक व्यक्ति को बचाने के लिए संशोधन किये। ये तब हुआ, जब उसके आधे से ज्यादा सदस्य तो जेल में था। विपक्ष न होने के बावजूद विपक्ष संसद में था। ये उन दिनों के संसद के भाषणों से समझा जा सकता है। इसके बाद अचानक जाने क्या हुआ और तानाशाह ने सबको रिहा कर दिया। 1977 के चुनाव होने वाले थे। लोकतंत्र बनाम तानाशाह की लड़ाई हुई, जीता लोकतंत्र।
क्या अच्छा, क्या कमी?
किताब कई लिहाज से अच्छी है। कुलदीप नैयर ने जिस प्रकार से इस किताब को लिखा है, वो लाजवाब है। लिखने की भाषा और शैली साधारण और सरल है। किताब जानकारियों से भरी हुई है। चाहे वो इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला हो, संजय का बेबाक रवैया हो, सारे नेताओं की चमचागिरी हो या फिर संविधान में संशोधन की बात हो। ये सारी बातें आपको किताब में किस्से के रूप में मिलेंगी। जो आपको बहूत कुछ सोचने और समझने में मदद करेगी। किताब में ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपको कन्फ्यूज करेगा।
किताब में कुछ खामी हैं जो मुझे लगती हैं। कहीं-कहीं पर किसी जानकारी को सपाट तरीके से दिया गया है। जबकि वो किस्सा थोड़ा बड़ा हो सकता था। लेकिन ये लेखक की समझ पर निर्भर करता है कि वो क्या रखना चाहता है। दूसरी और अंतिम खामी मुझे ये लगी कि किताब में सत्ता पक्ष के बारे में बहुत बताया गया है। लेकिन जिन कैदियों को जेल में रखा गया था उनके साथ जेल में क्या हुआ था? उनके ढाई साल जेल में कैसे गुजरे? एक पाठक के तौर पर मैं उस पहलू को भी जानना चाहता था कि लेकिन वो बहुत कम है।
किताब से कुछ अंश
एक घंटे तक पुलिस ने मेरा बयान दर्ज किया और फिर मुझे जासूसों के एक दल के पास ले गए। वहां मुझे अचानक किसी ने थप्पड़ जड़ दिया। जब मुझे होश आया वे मुझे निर्वस्त्र कर चुके थे। वहां करीब 10 लोग थे और उन्होंने मुझे पीटना शुरू कर दिया। चार लाठियां टूट गईं। वे मेरे शरीर के हर एक अंग पर वार कर रहे थे। मैं फर्श पर पड़ा कराह रहा था। मैंने भीख मांगी, रेंगने लगा और फिर रहम की भीख मांगी। इस बीच वे मुझे फुटबाल की तरह लातों से मारते रहे।
ऊपर जो किस्सा दिया गया है वो लाॅरेंस फर्नांडिस का है। जिन्हें बहुत दर्दनाक यातना दी गई थी। ये तो बस एक छोटा-सी झलक है। आखिर में यही कहना चाहूंगा कि हर भारतीय को इस किताब को पढ़ना चाहिए। हमें पढ़ना चाहिए क्योंकि हम समझ पाएंगे उस दौर के बारे में। किताब को पढ़ने के बाद यही लगता है कि क्या सच में सरकार कितनी क्रूर हो सकती है? इसलिए सवाल करने बहुत जरूरी है तभी तो सरकार जनता की कीमत समझेगी। जो कहते हैं इमरजेंसी, अनुशासन की कार्रवाई थी उनको इस किताब को जरूर पढ़नी चाहिए। आजाद भारत के सबसे काले अध्याय पर लिखी ये सबसे जरूरी किताब है।
किताब- इमरजेंसी का इनसाइड स्टोरी।
लेखक- कुलदीप नैयर।
प्रकाशक- प्रभात पेपरबैक्स।
कीमत- 250 रुपए।
कुलदीप नैयर की इस किताब को यहां खरीदें-
इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी