सरकार जब कोई योजना लाती है तो उसे जनकल्याण बताकर लाती है। हो सकता है बाद में उसका कल्याण किसी और का हो। ऐसी ही एक योजना है जिसे हम सब ‘आधार’ के नाम से जानते हैं। जब इसे लाया गया तो इसके बारे में कहा गया कि इससे उन लोगों को फायदा मिलेगा, जिनके पास पहचान पत्र नहीं है। समय बीतता गया और आधार का मकसद भी। आधार बनाया तो गया तो लोगों का उद्धार करने के लिए। लेकिन इसने कई समस्याओं को खड़ा कर दिया और कई सवालों को जन्म दिया। आधार, उसकी खामियां और उससे पैदा हुई समस्याओं के बारे में विस्तार से बताती है ये किताब ‘आधार से किसका उद्धार’।
यूपीए-2 के समय यानी कि 2009 में सरकार ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यानी कि यूआईडीएआई का गठन किया। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को एक आईडी नबंर देना था। जो नंबर आधार कार्ड के रूप में आया और वो आधार प्रोजेक्ट बन गया। इस पहचान को देने के लिए बायोमैट्रिक सत्यापन कराया गया। जिसमें आपको अपनी कुछ जानकारी देनी होती है। इसके अलावा फोटो, उंगलियों के निशान और आंखों की रेटिना के छाप देने होते हैं। इसको सरकार ने एक व्यक्ति से लोगों के बीच फैलाया, नाम- नंदन नीलेकणी। 2015 तक बिना किसी कानून के आधार लोगों तक पहुंचाया दिया गया। जब इस पर सवाल उठने लगे तो 2015 में इसे बिल बनाने की बात कही गई। लेकिन बीजेपी सरकार के पास बहुमत नहीं था इसलिए इसे मनी बिल से पास किया गया। इस पर 2018 में सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया। जिसने आधार परियोजना को वैधानिक बताया।
आधार पर इस शानदार किताब की लेखिका हैं, रीतिका खेड़ा। रीतिका खेड़ा इस समय आई.आई.एम. अहमदाबाद में इकाॅनाॅमिक्स और पब्लिक सिस्टम ग्रुप की सहायक प्रोफेसर हैं। रीतिका ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकाॅनाॅमिक्स से पी.एच.डी. की है और सात सालों तक आई.आई.टी. दिल्ली में अध्यापन कर चुकी है। रीतिका के शोधकार्य ने भारत की अनेक नीतियों पर बहस को जन्म दिया। रीतिका कई अखबारों, मैग्जीन और बेबसाइटों के लिए लेख लिखती रहती हैं।
किताब शुरू होती है अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज की प्रस्तावना से। जिसमें वो आधार के मकसद को बताते हैं। उसके स्वैच्छिक से अनिवार्य होने की कहानी को बताते हैं। आधार की समस्याओं और इस किताब के बारे में कुछ अच्छी बातें बताते हैं। वो इस किताब के बारे में लिखते हैं, ‘इस विचोरोत्तेजक पुस्तक में उनके लेखों के पढ़ने पर आप खुद महसूस करेंगे कि आपने एक संग्रहणीय पुस्तक हाथ में उठाई है’। इस किताब में रीतिका खेड़ा के कई लेख हैं जो उनके मीडिया में छपे हैं। जो 2012 से मार्च 2019 के बीच के हैं। आधार किसलिए आया था? उसका मकसद क्या था? उसे लोगों के बीच कैसे पहुंचाया? ये सब आपको शुरूआत में पढ़ने को मिल जाएगा।
आप जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं आपको आधार का वो स्याह पक्ष पता चलता है जो सरकार जनता से दूर रखती है। आधार इसलिए बनाया गया था ताकि लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले, बिचौलिये खत्म हों, भ्रष्टाचार खत्म हो। ऐसा तो कुछ हुआ नहीं लेकिन कई सारी समस्याएं लोगों के सामने आ गईं। कई राज्यों में लोगों को राशन नहीं मिला क्योंकि उनका राशन काॅर्ड आधार से लिंक नहीं था। जिनका आधार लिंक था कई बार उनको भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता। इस वजह से कई लोगों की मौत भी हुई। तथ्य, कहानियां और आंकड़े सभी आपको इस किताब में मिल जाएंगे।
रीतिका इस किताब में लिखती है आधार हमेशा-से स्वैच्छिक था लेकिन उसे इस तरह प्रसार किया गया कि आधार बहुत जरूरी है। अगर आपके पास आधार नहीं है तो आपका जीवन मुश्किल में पड़ जाएगा। कई उदाहरण ऐसे हैं जो बताते हैं कि आधार आने से लोगों का जीवन खराब ही हुआ। पहले एक बुजुर्ग का पैसा डाकिया गांव देने आता था। अब उसे बैंक जाना पड़ता है और अगर बायोमैट्रक सही काम नहीं की तो उसे खाली हाथ वापस लौटना पड़ता है। रीतिका बताती है आधार आने से न भ्रष्टाचार कम हुआ और न ही बिचौलिये लिए भागे। अगर कुछ हुआ तो डाटा को जुटाया गया। आधार प्रोजेक्ट से सरकार के पास हर किसी की प्रोफाइल है। अब वो हर व्यक्ति के बारे में पूरी जानकारी जानता है। आप क्या खा रहे हैं? कहां जा रहे हैं? किस से बात कर रहे हैं? पैसों का लेन-देन। सब कुछ आपने सरकार को आधार के जरिये बता दिया है। क्या ये निजता का हनन नहीं है? क्या ये हमारी जिंदगी में तांक-झांक नहीं हैं।
डेटा क्या कर सकता है? इस बारे में रीतिका दो शख्स का जिक्र इस किताब में करती हैं, एडवर्ड स्नोडेन और क्रिस वाइली। इन दो लोगों ने अलग-अलग समय पर लोगों को बताया कि कैसे निजी जानकारी का इस्तेमाल किया जा सकता है? वो आशंका जाहिर करती हैं कि आधार से हमारा डाटा बहुत बड़ा हो गया है और इसका उपयोग किया जा रहा है। वो बताती हैं कि कंपनियां इसका उपयोग कर रही हैं, वे एयरटेल पेमेंट्स का उदाहरण देती हैं। रीतिका किताब में बार-बार इस बात पर जोर देती हैं कि लगातार दस सालों से सरकार हमें बता रही है कि आधार जीने के लिए, गरीबों तक हक पहुंचाने के लिए जरूरी है। जिस मकसद का हवाला देकर सरकार इसे लाई थी, वो आधार के बिना भी हो सकता है। वो छत्तीसगढ़ और झारखंड का उदाहरण इस बारे में देती हैं। कुल मिलाकर किताब में साफ-साफ लिखा है कि आधार से लोगों का उद्धार तो बिल्कुल भी नहीं हुआ है।
आधार से आजकल हर कोई जुड़ा हुआ है। उससे क्या नुकसान है? उससे क्या समस्या आ रही हैं? वो हमारी निजता का हनन कैसे है? ये सब जानने के लिए आपको ये किताब जरूर पढ़नी चाहिए। तथ्यों और आंकड़ों से भरी पड़ी है ये किताब। जानकारी के लिए, जागरूकता के लिए आपको इस किताब को पढ़ना चाहिए। आप ज्यों-ज्यों इस किताब को पढ़ेंगे, आपके मन में कई सवाल आएंगे। आप आधार के बारे में सोचना शुरू कर देंगे और शायद यही तो उद्देश्य है इस किताब का। किताब में अगर मैं खामी की बात करूं तो सिर्फ बर्तनी ही बहुत कम जगह पर गड़बड़ है। इतनी महत्वपूर्ण जानकारी वाली किताब में ऐसी त्रुटियों को अनदेखा किया जा सकता है।
आखिर में बस इतना ही कहना चाहूंगा कि आधार पर रीतिका खेड़ा ने बेहतरीन किताब लिखी है। ये किताब आधार की पूरी कहानी को बताती है। उसके आर्थिक, तकनीकी और सामाजिक पक्षों के बारे में भी बताती है। रीतिका इस किताब में बताती है कि आप आधार के बारे में सोचती भी नहीं अगर उनके पास 2010 में आधार के ही दो अधिकारी नहीं आते। अगर आप आधार को सुधार समझते हैं तो आपको जानना चाहिए कि आधार से किसका उद्धार हुआ है।
किताब- आधार से किसका उद्धार
लेखिका- रीतिका खेड़ा
प्रकाशक- सार्थक राजकमल प्रकाशन का उपक्रम
कीमत- 125 रुपए।
यूपीए-2 के समय यानी कि 2009 में सरकार ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यानी कि यूआईडीएआई का गठन किया। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को एक आईडी नबंर देना था। जो नंबर आधार कार्ड के रूप में आया और वो आधार प्रोजेक्ट बन गया। इस पहचान को देने के लिए बायोमैट्रिक सत्यापन कराया गया। जिसमें आपको अपनी कुछ जानकारी देनी होती है। इसके अलावा फोटो, उंगलियों के निशान और आंखों की रेटिना के छाप देने होते हैं। इसको सरकार ने एक व्यक्ति से लोगों के बीच फैलाया, नाम- नंदन नीलेकणी। 2015 तक बिना किसी कानून के आधार लोगों तक पहुंचाया दिया गया। जब इस पर सवाल उठने लगे तो 2015 में इसे बिल बनाने की बात कही गई। लेकिन बीजेपी सरकार के पास बहुमत नहीं था इसलिए इसे मनी बिल से पास किया गया। इस पर 2018 में सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया। जिसने आधार परियोजना को वैधानिक बताया।
लेखक के बारे में
लेखिका। |
किताब एक नजर में
किताब शुरू होती है अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज की प्रस्तावना से। जिसमें वो आधार के मकसद को बताते हैं। उसके स्वैच्छिक से अनिवार्य होने की कहानी को बताते हैं। आधार की समस्याओं और इस किताब के बारे में कुछ अच्छी बातें बताते हैं। वो इस किताब के बारे में लिखते हैं, ‘इस विचोरोत्तेजक पुस्तक में उनके लेखों के पढ़ने पर आप खुद महसूस करेंगे कि आपने एक संग्रहणीय पुस्तक हाथ में उठाई है’। इस किताब में रीतिका खेड़ा के कई लेख हैं जो उनके मीडिया में छपे हैं। जो 2012 से मार्च 2019 के बीच के हैं। आधार किसलिए आया था? उसका मकसद क्या था? उसे लोगों के बीच कैसे पहुंचाया? ये सब आपको शुरूआत में पढ़ने को मिल जाएगा।
आप जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं आपको आधार का वो स्याह पक्ष पता चलता है जो सरकार जनता से दूर रखती है। आधार इसलिए बनाया गया था ताकि लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले, बिचौलिये खत्म हों, भ्रष्टाचार खत्म हो। ऐसा तो कुछ हुआ नहीं लेकिन कई सारी समस्याएं लोगों के सामने आ गईं। कई राज्यों में लोगों को राशन नहीं मिला क्योंकि उनका राशन काॅर्ड आधार से लिंक नहीं था। जिनका आधार लिंक था कई बार उनको भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता। इस वजह से कई लोगों की मौत भी हुई। तथ्य, कहानियां और आंकड़े सभी आपको इस किताब में मिल जाएंगे।
रीतिका इस किताब में लिखती है आधार हमेशा-से स्वैच्छिक था लेकिन उसे इस तरह प्रसार किया गया कि आधार बहुत जरूरी है। अगर आपके पास आधार नहीं है तो आपका जीवन मुश्किल में पड़ जाएगा। कई उदाहरण ऐसे हैं जो बताते हैं कि आधार आने से लोगों का जीवन खराब ही हुआ। पहले एक बुजुर्ग का पैसा डाकिया गांव देने आता था। अब उसे बैंक जाना पड़ता है और अगर बायोमैट्रक सही काम नहीं की तो उसे खाली हाथ वापस लौटना पड़ता है। रीतिका बताती है आधार आने से न भ्रष्टाचार कम हुआ और न ही बिचौलिये लिए भागे। अगर कुछ हुआ तो डाटा को जुटाया गया। आधार प्रोजेक्ट से सरकार के पास हर किसी की प्रोफाइल है। अब वो हर व्यक्ति के बारे में पूरी जानकारी जानता है। आप क्या खा रहे हैं? कहां जा रहे हैं? किस से बात कर रहे हैं? पैसों का लेन-देन। सब कुछ आपने सरकार को आधार के जरिये बता दिया है। क्या ये निजता का हनन नहीं है? क्या ये हमारी जिंदगी में तांक-झांक नहीं हैं।
डेटा क्या कर सकता है? इस बारे में रीतिका दो शख्स का जिक्र इस किताब में करती हैं, एडवर्ड स्नोडेन और क्रिस वाइली। इन दो लोगों ने अलग-अलग समय पर लोगों को बताया कि कैसे निजी जानकारी का इस्तेमाल किया जा सकता है? वो आशंका जाहिर करती हैं कि आधार से हमारा डाटा बहुत बड़ा हो गया है और इसका उपयोग किया जा रहा है। वो बताती हैं कि कंपनियां इसका उपयोग कर रही हैं, वे एयरटेल पेमेंट्स का उदाहरण देती हैं। रीतिका किताब में बार-बार इस बात पर जोर देती हैं कि लगातार दस सालों से सरकार हमें बता रही है कि आधार जीने के लिए, गरीबों तक हक पहुंचाने के लिए जरूरी है। जिस मकसद का हवाला देकर सरकार इसे लाई थी, वो आधार के बिना भी हो सकता है। वो छत्तीसगढ़ और झारखंड का उदाहरण इस बारे में देती हैं। कुल मिलाकर किताब में साफ-साफ लिखा है कि आधार से लोगों का उद्धार तो बिल्कुल भी नहीं हुआ है।
क्यों पढ़ें इसे?
आधार से आजकल हर कोई जुड़ा हुआ है। उससे क्या नुकसान है? उससे क्या समस्या आ रही हैं? वो हमारी निजता का हनन कैसे है? ये सब जानने के लिए आपको ये किताब जरूर पढ़नी चाहिए। तथ्यों और आंकड़ों से भरी पड़ी है ये किताब। जानकारी के लिए, जागरूकता के लिए आपको इस किताब को पढ़ना चाहिए। आप ज्यों-ज्यों इस किताब को पढ़ेंगे, आपके मन में कई सवाल आएंगे। आप आधार के बारे में सोचना शुरू कर देंगे और शायद यही तो उद्देश्य है इस किताब का। किताब में अगर मैं खामी की बात करूं तो सिर्फ बर्तनी ही बहुत कम जगह पर गड़बड़ है। इतनी महत्वपूर्ण जानकारी वाली किताब में ऐसी त्रुटियों को अनदेखा किया जा सकता है।
आखिर में बस इतना ही कहना चाहूंगा कि आधार पर रीतिका खेड़ा ने बेहतरीन किताब लिखी है। ये किताब आधार की पूरी कहानी को बताती है। उसके आर्थिक, तकनीकी और सामाजिक पक्षों के बारे में भी बताती है। रीतिका इस किताब में बताती है कि आप आधार के बारे में सोचती भी नहीं अगर उनके पास 2010 में आधार के ही दो अधिकारी नहीं आते। अगर आप आधार को सुधार समझते हैं तो आपको जानना चाहिए कि आधार से किसका उद्धार हुआ है।
किताब- आधार से किसका उद्धार
लेखिका- रीतिका खेड़ा
प्रकाशक- सार्थक राजकमल प्रकाशन का उपक्रम
कीमत- 125 रुपए।