यात्रा करना हर किसी को अच्छा लगता है लेकिन उसे ठीक वैसे ही शब्दों में बयां करना थोड़ा कठिन होता है। कई यात्रा वृतांत कलम की जादू की वजह से अच्छे लगते हैं तो कुछ अनुभव और किस्सों से। ऐसे ही कई मनोरंजक और छोटे-छोटे किस्से, कहानियों से अमृतलाल वेगड़ की किताब मुझे पसंद आई। कहते हैं कि अच्छी किताब वो है जो एक ही बार में पढ़ ली गई हो। वो अच्छी किताब हो सकती है लेकिन कुछ किताबों को पढ़ते हुए लगता है कि इसे आराम-आराम से पढ़ा जाए। ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’ ऐसी ही एक किताब है।
‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’, अमृतलाल वेगड़ की नर्मदा यात्रा का अनुभव है। नर्मदा, भारत की पांचवी सबसे बड़ी नदी है। इसे मध्य प्रदेश की जीवन रेखा भी कहा जाता है। नर्मदा अमरकंटक से अरब सागर तक 1,312 किमी. की यात्रा करती है। अमृतलाल वेगड़ ने भी नर्मदा के किनारे-किनारे पैदल यात्रा की। उन्होंने ये यात्रा एक ही बार में पूरी नहीं की। उन्होंने नर्मदा यात्रा 1977 से 1987 के बीच में की। उस यात्रा को और उसके अनुभव को अमृतलाल वेगड़ ने अपनी किताब में समेटा है।
अमृतलाल वेगड़ अच्छे साहित्यकार और चित्रकार रहे। वे मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले थे। उन्होंने नर्मदा संरक्षण के लिए आवाज उठाई। 47 साल की उम्र से उन्होंने नर्मदा की यात्रा शुरू की और 2009 तक करते रहे। उन्होंने नर्मदा की कई बार यात्रा की और उसके बारे में पूरी दुनिया को बताया। सौंदर्य की नदी नर्मदा के लिए उन्हें 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया। इस किताब के अलावा उन्होंने नर्मदा पर ही दो किताबें ‘अमृतस्य नर्मदा’ और ‘तीरे-तीरे नर्मदा’ लिखी है। 6 जुलाई 2008 को उनका देहांत हो गया।
लेखक अपनी यात्रा शुरू करता है अपने घर जबलपुर से। लेखक शुरू में अपने जाने की वजह और साथियों के बारे में बताता है। पूरी यात्रा में हर बार लेखक के साथी बदलते रहते हैं। नर्मदा के किनारे-किनारे पैदल यात्रा करते हैं। वो नर्मदा के गांवों, आसपास के इलाके और लोगों के बारे में बताते जाते हैं। अपने अनुभवों को भी लेखक अच्छे से बताता है। पढ़ते हुए लगता है कि हम भी लेखक के साथ नर्मदा यात्रा पर निकल गए हैं। नर्मदा के बारे में लेखक बहुत कुछ बताते हैं। वो कहते हैं, गंगा श्रेष्ठ है लेकिन ज्येष्ठ नर्मदा है। नर्मदा, गंगा से पहले की है और लाखों लोगों की जीवन रेखा है।
इस किताब को पढ़ते हुए आपको नर्मदा के स्वरूप को समझ में आएगा। नर्मदा, किस जगह कैसी है, उसकी सहायक नदियों का स्वरूप क्या है? गर्मियों में नर्मदा कैसी बहती है और जब सूख जाती है तब कैसी उजाड़ लगती है। नर्मदा के बारे में सब कुछ किताब को पढ़ते हुए समझ में आता है। उस समय गांव कैसे होते थे, वहां का परिवेश और लोगों के बारे में बताते हैं। बीच-बीच लोगों से हुई बातचीत को डालकर इसे और अच्छा बनाते है। इस किताब से ही पता चलता है 80 के दशक में गांव के लोग स्टोव देखकर कितने खुश होते थे। आज तो हमारी जिंदगी से स्टोव पूरी तरह से गायब हो चुका है।
नर्मदा की यात्रा बढ़ती जाती है लेखक नई जानकारी देता रहता है। कभी झाड़ी में रहने वाले भीलों के बारे में, जो वहां आने वाले लोगों को पूरी तरह लूट लेते। शरीर से सारे कपड़े तक उतार लेते। तब लगता कि भील उस जमाने के चोर हैं लेकिन आगे जाकर उनकी भुखमरी और गरीबी को देखकर दुख होता। इसके अलावा नर्मदा अपने वाले डैम के बारे में भी बताते। जो आसपास के इलाके को डुबा देगा। अमृतलाल वेगड़ कहते हैं, ’आज जैसी नर्मदा मैं देख रहा हूं, जिस रास्ते पर मैं चल रहा हूं। कुछ सालों बाद इन पर कोई नहीं चल पाएगा। यहां दूर-दूर तक पानी होगा’। बातचीत में लेखक को गांव वाले डैम से होने वाले नुकसान के बारे में भी बताते हैं। हालांकि लेखक डैम का बनाना अच्छा मानते हैं।
लेखक एक बार में जहां तक की यात्रा करता, अगली बार वहीं से शुरू करता। ऐसे में उसने नर्मदा को अलग-अलग साल और अलग-अलग महीनों में देखा। नर्मदा कैसे बढ़ती है और कैसे बदल जाती है लेखक ने अच्छी तरह से वर्णन किया है। नर्मदा पहाड़ और मैदान दोनों से होकर गुजरती है। लेखक ने जिस कुशलता से नदी के बारे में बताते चले हैं वो वाकई बेहतरीन है। मैंने कभी नदियों के किनारे-किनारे यात्रा नहीं की लेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद ऐसी ही किसी यात्रा पर जाने का मन करता है।
जैसे-जैसे नर्मदा मध्य प्रदेश छोड़कर गुजरात पहुंचती है तो पढ़ने में और मजा आने लगता है। नर्मदा का उद्गम है मध्य प्रदेश के अमरकंटक में और समुद्र में मिलने से पहले आखिरी पड़ाव है, गुजरात का विमलेश्वर गांव। समुद की झलक, अमरकंटक का उद्गम, ओंकरेश्वर का मन मोहने वाला नजारा, ये सब पढ़कर लगता है नर्मदा की यात्रा करनी चाहिए। नदी के बारे में अमृतलाल वेगड़ किताब में लिखते हैं, ‘नदी है- जन्मजात यात्री। जन्म लेते ही चल पड़ती है और एक बार जो चली तो एक क्षण के लिए भी नहीं रूकती।’ इसके अलावा हर चैप्टर के पीछे उनका स्केच बना है। जो उन्होंने अपनी नर्मदा यात्रा में बनाया था। उन्होंने ये यात्रा किन मुश्किलों का सामना करते हुए की? खाना कैसे खाते थे? ठहरते कहां थे? ये सब आपको इस किताब में पढ़ते हुए आनंद आएगा।
पुजारी जी से खूब बातें होती हैं। नवागाम बांध की बात चली तो कहने लगे, ‘बांध के बन जाने पर सबसे पहले डूबेगा शूलपाणेश्वर मंदिर। शूलपाण की पूरी झाड़ी डूब जाएगी।’ जाने-अनजाने में मेरे मन मे यह बात है कि इस सुंदर, एकांत स्थान में जितना हो सके, रह लो। जी भरकर देख लो। पन्द्रह वर्ष के बाद तो इसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। शायद इसलिए चार दिन से मैं यहां घूम रहा हूं।
किताब की सबसे बड़ी खूबी तो ये यात्रा है जो लेखक ने पैदल की। उसे जिस तरह से बताया है वो भी काफी रोचक है। इसमें जो जानकारी हैं, भीलों क बारे में , बैगा स्त्रियों के बारे में, उस समय के रीति-रिवाजों के बारे में, ये सब इस किताब को और रोचक बनाते हैं। इसके अलावा नर्मदा यात्रा के लिए ये किताब एक नक्शे की तरह है हालांकि डैम बनने के बाद इसमें काफी कुछ बदलाव आ गया है। अगर आप घुमक्कड़ हैं तो आपको इसे जरूर पढ़ना चाहिए। अगर आप नहीं घूमते हैं तो इस किताब से आप नर्मदा यात्रा कर सकते हैं।
इस किताब में मुझे कमी तो नहीं लगी लेकिन भाषा पूरी तरह से साहित्यक है। शायद जिस समय ये यात्रा हुई तब ऐसे ही बोलचाल हो। ये भी हो सकता है कि पहले किताबों की भाषा साहित्यक होती थी। इसी वजह से कुछ-कुछ शब्दों का अर्थ पता ही नहीं होता है। जिसे समझने में थोड़ी मुश्किल आती है। ऐसे यात्रा वृतांत आज के समय में नहीं लिखे जाते। तब के यात्रा वृतांत की भाषा और आज के यात्रा वृतांत की भाषा में आया बदलाव इस किताब को पढ़कर समझ सकते हैं।
इस किताब को पढ़ने के बाद सच में समझ में आता है कि नर्मदा, सौंदर्य की नदी है। अमृतलाल वेगड़ ने इस किताब से हमें अपनी यात्रा के बारे में नहीं बताया। इससे हमने नर्मदा को समझा, नर्मदा के किनारे रहने वाले लोगों के जीवन के बारे में पता चला। किताब इतनी अच्छी तरह से लिखी गई है लेखक के साथ पाठक भी नर्मदा की यात्रा कर लेता है।
किताब- सौंदर्य की नदी नर्मदा,
लेखक- अर्मतलाल वेगड़,
प्रकाशन- पेंगुइन बुक्स,
कुल पेज- 176,
लागत- 199 रुपए।
‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’, अमृतलाल वेगड़ की नर्मदा यात्रा का अनुभव है। नर्मदा, भारत की पांचवी सबसे बड़ी नदी है। इसे मध्य प्रदेश की जीवन रेखा भी कहा जाता है। नर्मदा अमरकंटक से अरब सागर तक 1,312 किमी. की यात्रा करती है। अमृतलाल वेगड़ ने भी नर्मदा के किनारे-किनारे पैदल यात्रा की। उन्होंने ये यात्रा एक ही बार में पूरी नहीं की। उन्होंने नर्मदा यात्रा 1977 से 1987 के बीच में की। उस यात्रा को और उसके अनुभव को अमृतलाल वेगड़ ने अपनी किताब में समेटा है।
लेखक के बारे में
लेखक अर्मतलाल वेगड़। |
अमृतलाल वेगड़ अच्छे साहित्यकार और चित्रकार रहे। वे मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले थे। उन्होंने नर्मदा संरक्षण के लिए आवाज उठाई। 47 साल की उम्र से उन्होंने नर्मदा की यात्रा शुरू की और 2009 तक करते रहे। उन्होंने नर्मदा की कई बार यात्रा की और उसके बारे में पूरी दुनिया को बताया। सौंदर्य की नदी नर्मदा के लिए उन्हें 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया। इस किताब के अलावा उन्होंने नर्मदा पर ही दो किताबें ‘अमृतस्य नर्मदा’ और ‘तीरे-तीरे नर्मदा’ लिखी है। 6 जुलाई 2008 को उनका देहांत हो गया।
किताब के बारे में
लेखक अपनी यात्रा शुरू करता है अपने घर जबलपुर से। लेखक शुरू में अपने जाने की वजह और साथियों के बारे में बताता है। पूरी यात्रा में हर बार लेखक के साथी बदलते रहते हैं। नर्मदा के किनारे-किनारे पैदल यात्रा करते हैं। वो नर्मदा के गांवों, आसपास के इलाके और लोगों के बारे में बताते जाते हैं। अपने अनुभवों को भी लेखक अच्छे से बताता है। पढ़ते हुए लगता है कि हम भी लेखक के साथ नर्मदा यात्रा पर निकल गए हैं। नर्मदा के बारे में लेखक बहुत कुछ बताते हैं। वो कहते हैं, गंगा श्रेष्ठ है लेकिन ज्येष्ठ नर्मदा है। नर्मदा, गंगा से पहले की है और लाखों लोगों की जीवन रेखा है।
इस किताब को पढ़ते हुए आपको नर्मदा के स्वरूप को समझ में आएगा। नर्मदा, किस जगह कैसी है, उसकी सहायक नदियों का स्वरूप क्या है? गर्मियों में नर्मदा कैसी बहती है और जब सूख जाती है तब कैसी उजाड़ लगती है। नर्मदा के बारे में सब कुछ किताब को पढ़ते हुए समझ में आता है। उस समय गांव कैसे होते थे, वहां का परिवेश और लोगों के बारे में बताते हैं। बीच-बीच लोगों से हुई बातचीत को डालकर इसे और अच्छा बनाते है। इस किताब से ही पता चलता है 80 के दशक में गांव के लोग स्टोव देखकर कितने खुश होते थे। आज तो हमारी जिंदगी से स्टोव पूरी तरह से गायब हो चुका है।
लेखक की यात्रा का पूरा रूट। |
नर्मदा की यात्रा बढ़ती जाती है लेखक नई जानकारी देता रहता है। कभी झाड़ी में रहने वाले भीलों के बारे में, जो वहां आने वाले लोगों को पूरी तरह लूट लेते। शरीर से सारे कपड़े तक उतार लेते। तब लगता कि भील उस जमाने के चोर हैं लेकिन आगे जाकर उनकी भुखमरी और गरीबी को देखकर दुख होता। इसके अलावा नर्मदा अपने वाले डैम के बारे में भी बताते। जो आसपास के इलाके को डुबा देगा। अमृतलाल वेगड़ कहते हैं, ’आज जैसी नर्मदा मैं देख रहा हूं, जिस रास्ते पर मैं चल रहा हूं। कुछ सालों बाद इन पर कोई नहीं चल पाएगा। यहां दूर-दूर तक पानी होगा’। बातचीत में लेखक को गांव वाले डैम से होने वाले नुकसान के बारे में भी बताते हैं। हालांकि लेखक डैम का बनाना अच्छा मानते हैं।
लेखक एक बार में जहां तक की यात्रा करता, अगली बार वहीं से शुरू करता। ऐसे में उसने नर्मदा को अलग-अलग साल और अलग-अलग महीनों में देखा। नर्मदा कैसे बढ़ती है और कैसे बदल जाती है लेखक ने अच्छी तरह से वर्णन किया है। नर्मदा पहाड़ और मैदान दोनों से होकर गुजरती है। लेखक ने जिस कुशलता से नदी के बारे में बताते चले हैं वो वाकई बेहतरीन है। मैंने कभी नदियों के किनारे-किनारे यात्रा नहीं की लेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद ऐसी ही किसी यात्रा पर जाने का मन करता है।
जैसे-जैसे नर्मदा मध्य प्रदेश छोड़कर गुजरात पहुंचती है तो पढ़ने में और मजा आने लगता है। नर्मदा का उद्गम है मध्य प्रदेश के अमरकंटक में और समुद्र में मिलने से पहले आखिरी पड़ाव है, गुजरात का विमलेश्वर गांव। समुद की झलक, अमरकंटक का उद्गम, ओंकरेश्वर का मन मोहने वाला नजारा, ये सब पढ़कर लगता है नर्मदा की यात्रा करनी चाहिए। नदी के बारे में अमृतलाल वेगड़ किताब में लिखते हैं, ‘नदी है- जन्मजात यात्री। जन्म लेते ही चल पड़ती है और एक बार जो चली तो एक क्षण के लिए भी नहीं रूकती।’ इसके अलावा हर चैप्टर के पीछे उनका स्केच बना है। जो उन्होंने अपनी नर्मदा यात्रा में बनाया था। उन्होंने ये यात्रा किन मुश्किलों का सामना करते हुए की? खाना कैसे खाते थे? ठहरते कहां थे? ये सब आपको इस किताब में पढ़ते हुए आनंद आएगा।
सौंदर्य की नदी नर्मदा। |
किताब से कुछ
पुजारी जी से खूब बातें होती हैं। नवागाम बांध की बात चली तो कहने लगे, ‘बांध के बन जाने पर सबसे पहले डूबेगा शूलपाणेश्वर मंदिर। शूलपाण की पूरी झाड़ी डूब जाएगी।’ जाने-अनजाने में मेरे मन मे यह बात है कि इस सुंदर, एकांत स्थान में जितना हो सके, रह लो। जी भरकर देख लो। पन्द्रह वर्ष के बाद तो इसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। शायद इसलिए चार दिन से मैं यहां घूम रहा हूं।
किताब की खूबी और कमी
किताब की सबसे बड़ी खूबी तो ये यात्रा है जो लेखक ने पैदल की। उसे जिस तरह से बताया है वो भी काफी रोचक है। इसमें जो जानकारी हैं, भीलों क बारे में , बैगा स्त्रियों के बारे में, उस समय के रीति-रिवाजों के बारे में, ये सब इस किताब को और रोचक बनाते हैं। इसके अलावा नर्मदा यात्रा के लिए ये किताब एक नक्शे की तरह है हालांकि डैम बनने के बाद इसमें काफी कुछ बदलाव आ गया है। अगर आप घुमक्कड़ हैं तो आपको इसे जरूर पढ़ना चाहिए। अगर आप नहीं घूमते हैं तो इस किताब से आप नर्मदा यात्रा कर सकते हैं।
इस किताब में मुझे कमी तो नहीं लगी लेकिन भाषा पूरी तरह से साहित्यक है। शायद जिस समय ये यात्रा हुई तब ऐसे ही बोलचाल हो। ये भी हो सकता है कि पहले किताबों की भाषा साहित्यक होती थी। इसी वजह से कुछ-कुछ शब्दों का अर्थ पता ही नहीं होता है। जिसे समझने में थोड़ी मुश्किल आती है। ऐसे यात्रा वृतांत आज के समय में नहीं लिखे जाते। तब के यात्रा वृतांत की भाषा और आज के यात्रा वृतांत की भाषा में आया बदलाव इस किताब को पढ़कर समझ सकते हैं।
इस किताब को पढ़ने के बाद सच में समझ में आता है कि नर्मदा, सौंदर्य की नदी है। अमृतलाल वेगड़ ने इस किताब से हमें अपनी यात्रा के बारे में नहीं बताया। इससे हमने नर्मदा को समझा, नर्मदा के किनारे रहने वाले लोगों के जीवन के बारे में पता चला। किताब इतनी अच्छी तरह से लिखी गई है लेखक के साथ पाठक भी नर्मदा की यात्रा कर लेता है।
किताब- सौंदर्य की नदी नर्मदा,
लेखक- अर्मतलाल वेगड़,
प्रकाशन- पेंगुइन बुक्स,
कुल पेज- 176,
लागत- 199 रुपए।