Wednesday, 2 September 2020

रसीदी टिकट: अमृता प्रीतम को जानना हो तो इस आइने को उठा लेना

अमृता प्रीतम जिनके लिखे को पढ़कर सुकून मिलता है। जिनकी कविताओं, शायरी और नज्म में कभी प्रेम होता तो कभी दुख भी होता है। मगर इन सबके इतर अगर अमृता प्रीतम को जानना है तो रसीदी टिकट को पढ़ना चाहिए। इस किताब को पढ़कर आपको अमृता प्रीतम की जिंदगी के बारे में पता चलेगा उनके अच्छे और दुख के बारे में जान पाएंगे। रसीदी टिकट अमृता प्रीतम की आत्मकथा है। आत्मकथाएं अक्सर बहुत लंबी होती है लेकिन अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथाओं बहुत कम शब्दों में समेटी है।


रसीदी टिकट को पढ़कर उस एहसास से रूबरू होते हैं जिसे अमृता प्रीतम ने बताने की कोशिश की है। अमृता प्रीतम ने अपनी जिंदगी की उन सच्चाई को पाठकों के सामने रखा है जिन्होंने उसे किसी को नहीं बताया था। इस किताब में अमृता प्रीतम के संस्मरण है, कविताएं, सपने, यात्राएं और सच्चाई है। रसीदी टिकट पढ़ते हुए आप बहुत हद तक इससे जुड़ाव महसूस कर पाएंगे। रसीदी टिकट एक लेखिका के निजी पलों की कहानी है, जिसे उन्होंने खुद बताया है। 

लेखिका के बारे में

रसीदी टिकट में अमृता प्रीतम की आत्मकथा है। अमृता प्रीतम वैसे तो पंजाबी लेखिका थीं लेकिन उनका लिखा अलग-अलग भाषा में पूरा भारत पढ़ता है। अमृता प्रीतम को जन्म 31 अगस्त 1919 को गुजरांवाला में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। उनका बचपन लाहौर में बीता और वही शिक्षा प्राप्त की। अमृता प्रीतम को छोटे-से ही लिखना पसंद था। शुरूआत में वो कविताएं और कहानी लिखा करती थीं। बाद के दिनों में वे उपन्यास लिखने लगीं। अमृता प्रीतम ने पचास से अधिक किताबें लिखीं। कई उपन्यासों का विदेशी भाषाओ में अनुवाद भी किया गया। अमृता को 1957 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1988 में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार और 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अमृता प्रीतम ने इस दुनिया को 31 अक्टूबर, 2005 को अलविदा कह दिया।

किताब के बारे में

रसीदी टिकट शुरू होती है लेखिका के जन्म के साल से। अपने माता-पिता और बचपन के बारे में कुछ पन्ने रहते हैं। फिर एक कल्पना एक शख्स की जिससे वो प्रेम करना शुरू कर देती है और फिर कुछ विश्वासघात के बारे में होता है। उसके बाद साहिर का जिक्र आता है। साहिर से पहली मुलाकात, उनके बची हुई सिगरेट का कश लगाना। लेखिका किताब में एक जगह साहिर से अपने रिश्ते के बारे में बताती हैं, मेरी और साहिर की दोस्ती में कभी लफ्ज हायल नहीं हुए थे। यह खामोशी का हसीन रिश्ता था।

आगे बढ़ने पर किताब में विभाजन के बारे में बताया है। विभाजन की उस त्रासदी के बारे में पढ़कर दुख जरूर होता है। किताब में लेखिका बार-बार इंसानियत को हिन्दू-मुसलमान से बड़ा बताती हैं। तभी वो किताब में एक संस्मरण बताती हैं जिसमें धर्म की जगह रूहानियत का जिक्र करती हैं। मैं किताब में अमृता प्रीतम के प्रेम के बारे में जानना चाहता था लेकिन उस प्रेम का जिक्र बहुत कम है। हालांकि इस किताब को पढ़ने के बाद आपको इस किताब से प्यार हो जाएगा।

किताब के भीतर से।


ज्यादातर लोगों को अमृता प्रीतम की जिंदगी के दो शख्स के बारे में ही पता है, साहिर और इमरोज। इस किताब में लेखिका के बहुत खास लोगों के बारे में पता चलता है जैसे कि सज्जाद हैदर। सज्जाद पाकिस्तान से थे इसके बावजूद दोनों के बीच अच्छा रिश्ता था। दोनों एक-दूसरे का हाल लिया करते थे और मदद भी किया करते थे। इसके अलावा अवतार और सारा के बारे में भी किताब में पढ़कर जान पाते हैं। रसीदी टिकट में इमरोज के बारे में बहुत कम लिखा है। एक जगह लेखिका इमरोज के बारे में बताती हैं, इमरोज एक दूधिया बादल है। चलने के लिए वह सारा आसमान भी खुद ही है और पवन भी खुद है जो बादल को दिशा मुक्त करती है। इसके अलावा लेखिका के जीवन में जो तमाम महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं, उन घटनाओं के बारे में रसीदी टिकट में जिक्र मिलता है।

रसीदी टिकट एक लेखिका की बेबाकी से लिखी गई अपनी कहानी है। जिसमें वो अपने डर को भी उतनी ही सच्चाई से बताती हैं जितनी अपने नफरत करने वालों के बारे में। इसमें वो अपने प्रेम के बारे में भी बताती हैं और उन व्यक्तियों के बारे में भी, जिनका अमृता के प्रति झुकाव था। इतना बेबाकी-सी लिखी इस आत्मकथा से जुड़ाव स्वभाविक है। रसीदी टिकट सिर्फ एक आत्मकथा नहीं है ये अमृता प्रीतम को जानने का एक दस्तावेज है।

किताब की खूबी

इस किताब को पढ़ना जितना अच्छा लगता है लिखना उतना ही कठिन। किताब हर तरह से बेहतरीन है। एक लेखिका जिसकी लेखनी और प्रेम के बारे में पढ़कर ही सुखद अनुभव होता है तो उनके बारे में जानने को मौका मिले तो कौन छोड़ेगा? रसीदी टिकट आत्मकथा तो है लेकिन कुछ अलग। लेखिका ने अपनी जिंदगी को 139 पेज में समेटा है। किताब में बहुत कुछ बताया गया है और कुछ के बारे में पढ़कर लगता कि इस पर और ज्यादा बताया जाना चाहिए था। लेखनी की बात करें तो भाषा बेहद सटीक और समझने वाली है हालांकि उर्दू के बहुत सारे शब्द आपको मिलेंगे। कुछेक के मतलब आपको पता होंगे और बहुत सारे ऐसे हों जिनके लिए आपको किसी का सहारा लेना पड़ेगा।

दर्द की एक सूरत होती है जो आज कोई और दे रहा होता है और कल कोई और। उस दर्द के सारे पन्नों को खोलकर रख देती है रसीदी टिकट। ये किताब अमृता प्रीतम के अंदर और बाहर घट रही घटनाओं का एक आवरण है जिसे हर किसी को पढना चाहिए। अमृता प्रीतम की एक पंक्ति है जो किताब में सबसे पहले लिखी है। जो हर किसी की जिंदगी के बारे में बताती है।

परछाइयों को पकड़ने वालों! छाती में जलती हुई आग की कोई परछाई नहीं होती।

किताब-रसीदी टिकट

लेखिका- अमृता प्रीतम

प्रकाशक- किताबघर प्रकाशन

कीमत- 200 रुपए।


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