कश्मीर को जन्नत कहा गया है, जिन्होंने देखा उन्होंने माना भी। इसके बावजूद वहां हिंसा का दौर चलता रहता है। न्यूज चैनल और अखबार हमें बता देते हैं कि कश्मीर में क्या हो रहा है? हम हमेशा एक पक्ष की कहानी सुनते आए हैं। अब एक किताब आई गर-फिरदौस। इसमें उस कश्मीर की कहानी है जिसे अभी तक किसी ने नहीं कहा। ये किताब बताती है कि कश्मीर जन्नत है लेकिन वहां के लोग उससे दूर हैं।
ऐसा भी नहीं है गर-फिरदौस में किसी का पक्ष रखा गया है, किसी की बात कही गई है। वो तो बस एक कहानी है जो अपना काम कर रही है। ये कहानी कश्मीरियत के होने की भी है। कुछ सालों में कश्मीर में बहुत कुछ घटा है। लेखिका ने उन्हीं घटनाओं को कहानी के रूप में बताया है। इस किताब को पढ़ने के बाद आप भी कश्मीर के गम में थोड़ा डूबेंगे और सोचने पर मजबूर हो जाएंगे।
इस किताब की लेखिका हैं प्रदीपिका सारस्वत। प्रदीपिका पेशे से पत्रकार हैं। मीडिया नौकरी छोड़कर अब वे फ्रीलांस राइटर बन गई हैं। कश्मीर को उन्होंने बहुत करीब से देखा है। वहीं से देश भर को वहां के हालात के बारे में बताती रही हैं। प्रदीपिका वैसे तो आगरा की हैं मगर वे घर पर रहती कम हैं। वे कहती भी हैं कि मैं घुमक्कड़ हूं। जहां होती हूं, वहीं की हो जाती हूं। मास कम्यूनिशेन की पढ़ाई की और डेस्क के पीछे बैठने वाले मीडिया में आ गईं। वहां टिक नहीं पाईं तो नौकरी छोड़ी और कश्मीर चली गईं। वहां कुछ महीने रहीं और फिर सबके सामने किताब लेकर आईं, प्रदीपिका सारस्वत।
गर फिरदौस में एक कहानी है जिसके तीन मुख्य किरदार हैं, इकरा, शौकत और फिरदौस। किताब में इन्हीं के नाम से तीन अलग-अलग चैप्टर हैं। अपने चैप्टर में वे अपनी-अपनी कहानी बताते हैं, अपने-अपने कश्मीर को बताते हैं। इकरा एक काॅलेज में पढ़ने वाली लड़की है जिसे एक लड़का पसंद है। जिसे अपने दोस्तों के साथ रहना पसंद है, जो कुछ देखती है उसे अपने ब्रश से कोरे कागज पर उतारती है। जिसे शाम को डल झील के किनारे घूमना पसंद है। फिरदौस, एक पढ़ा-लिखा नौजवान है जो दिल्ली से पढ़कर आया है। उसने कश्मीर से बाहर के हिन्दुस्तान को देखा है। उसे घुटन महसूस होती है जब वो दोनों जगह अंतर पाता है। तीसरा किरदार है, शौकत। शौकत वो कश्मीरी है जो आतंकवादी और सेना के बीच पिस रहा है। वही डर उसके अंदर बना रहता है।
कहानी कुछ ऐसे शुरू होती है कि फिरदौस और इकरा अपने कुछ दोस्तों के साथ श्रीनगर जाते हैं। रास्ते में सेना फिरदौस को पकड़ ले जाती है और उसके बाद कहानी कश्मीर को बताती है। कभी इकरा के कश्मीर को दिखाया जाता है जिसे न कोई सही लगता है और न ही कुछ गलत। उस घटना के बाद फिरदौस की जिंदगी पूरी तरह से बदल जाती है। उसे अपनी पढ़ाई बेमानी लगने लगती है। शौकत कहानी में थोड़ी देर से आता है मगर बहुत जरूरी बातें बताता है। उसी के माध्यम से लेखिका कश्मीर में आतंकवाद और सेना को लेकर आती है। मुजाहिदीन क्या सोचते हैं? सेना इनका क्या करती है? ये सब किताब में पढ़ने को मिलता है।
गर फिरदौस सिर्फ कहानी नहीं है कि पढ़ा जाए और भूला दिया जाए। ये तो कश्मीर की कहानी है, वहां के लोगों की कहानी है। इसमें बताया गया है कि कोई कश्मीरी हथियार उठाता है तो क्यों उठाता है? किताब में बहुत अच्छी तरह से बताया गया है कि कश्मीर के लोग क्यों सेना से डरते हैं? किताब में एक जगह जिक्र भी है जब फिरदौस सोचता है कि बदन पर वर्दी और हाथों में बंदूक लिए लोग सबके लिए आम नहीं थे। डर और मौत के साये सिर्फ उसके ही मुल्क के हिस्से आए थे। ये एक ही देश के दो जगहों के बारे में बताता है। इसके अलावा पाकिस्तान से आने वाले लोगों के बारे में भी काफी कुछ कहा गया है। शौकत के किरदार इस कश्मीर से रूबरू कराता है। इसी के बारे में एक जगह शौकत सोचता है, परदेसी मुल्क में कोई आखिर क्यों अपना सब कुछ छोड़कर जान हथेली पर लिए इस तरह फिरेगा। जब ये सब पढ़ते हैं तो लगता है अब तक कश्मीर के बारे में कुछ और ही सुनते आए थे।
किताब में इसके अलावा कश्मीर की सुंदरता का खूब जिक्र है। इसमें सुंदरता के नाम पर सिर्फ डल झील, श्रीनगर और शिकारा नहीं है। इसके अलावा कश्मीरी पकवानों के बारे में भी बीच-बीच में जिक्र होता रहता है। उर्दू शब्द तो इतने ज्यादा हैं कि आपको हर लाइन में उर्दू शब्द मिल जाएंगे। किताब में सब बुरा ही बुरा नहीं है। गर फिरदौस बताती है कि कश्मीर बंद होने के बावजूद उनकी जिंदगी बंद नहीं हुई थी। इंटरनेट बंद होने के बाद भी उन्होंने लोगों से बात करना बंद नहीं किया था। हर वीकेंड पर साथ बैठकर दावत करना फिर भी नहीं भूले थे। कर्फ्यू के बीच भी प्रेमी, प्यार करना नहीं छोड़े थे। गर फिरदौस, उस कश्मीर की कहानी है जिसके बारे में कोई नहीं बताता। जहां जिंदगी तो सरपट से दौड़ रही है लेकिन बेबसी और चुभन भी है।
ऐसा भी नहीं है गर-फिरदौस में किसी का पक्ष रखा गया है, किसी की बात कही गई है। वो तो बस एक कहानी है जो अपना काम कर रही है। ये कहानी कश्मीरियत के होने की भी है। कुछ सालों में कश्मीर में बहुत कुछ घटा है। लेखिका ने उन्हीं घटनाओं को कहानी के रूप में बताया है। इस किताब को पढ़ने के बाद आप भी कश्मीर के गम में थोड़ा डूबेंगे और सोचने पर मजबूर हो जाएंगे।
लेखिका के बारे में
लेखिका प्रदीपिका सारस्वत। |
इस किताब की लेखिका हैं प्रदीपिका सारस्वत। प्रदीपिका पेशे से पत्रकार हैं। मीडिया नौकरी छोड़कर अब वे फ्रीलांस राइटर बन गई हैं। कश्मीर को उन्होंने बहुत करीब से देखा है। वहीं से देश भर को वहां के हालात के बारे में बताती रही हैं। प्रदीपिका वैसे तो आगरा की हैं मगर वे घर पर रहती कम हैं। वे कहती भी हैं कि मैं घुमक्कड़ हूं। जहां होती हूं, वहीं की हो जाती हूं। मास कम्यूनिशेन की पढ़ाई की और डेस्क के पीछे बैठने वाले मीडिया में आ गईं। वहां टिक नहीं पाईं तो नौकरी छोड़ी और कश्मीर चली गईं। वहां कुछ महीने रहीं और फिर सबके सामने किताब लेकर आईं, प्रदीपिका सारस्वत।
किताब के बारे में
गर फिरदौस में एक कहानी है जिसके तीन मुख्य किरदार हैं, इकरा, शौकत और फिरदौस। किताब में इन्हीं के नाम से तीन अलग-अलग चैप्टर हैं। अपने चैप्टर में वे अपनी-अपनी कहानी बताते हैं, अपने-अपने कश्मीर को बताते हैं। इकरा एक काॅलेज में पढ़ने वाली लड़की है जिसे एक लड़का पसंद है। जिसे अपने दोस्तों के साथ रहना पसंद है, जो कुछ देखती है उसे अपने ब्रश से कोरे कागज पर उतारती है। जिसे शाम को डल झील के किनारे घूमना पसंद है। फिरदौस, एक पढ़ा-लिखा नौजवान है जो दिल्ली से पढ़कर आया है। उसने कश्मीर से बाहर के हिन्दुस्तान को देखा है। उसे घुटन महसूस होती है जब वो दोनों जगह अंतर पाता है। तीसरा किरदार है, शौकत। शौकत वो कश्मीरी है जो आतंकवादी और सेना के बीच पिस रहा है। वही डर उसके अंदर बना रहता है।
कहानी कुछ ऐसे शुरू होती है कि फिरदौस और इकरा अपने कुछ दोस्तों के साथ श्रीनगर जाते हैं। रास्ते में सेना फिरदौस को पकड़ ले जाती है और उसके बाद कहानी कश्मीर को बताती है। कभी इकरा के कश्मीर को दिखाया जाता है जिसे न कोई सही लगता है और न ही कुछ गलत। उस घटना के बाद फिरदौस की जिंदगी पूरी तरह से बदल जाती है। उसे अपनी पढ़ाई बेमानी लगने लगती है। शौकत कहानी में थोड़ी देर से आता है मगर बहुत जरूरी बातें बताता है। उसी के माध्यम से लेखिका कश्मीर में आतंकवाद और सेना को लेकर आती है। मुजाहिदीन क्या सोचते हैं? सेना इनका क्या करती है? ये सब किताब में पढ़ने को मिलता है।
गर फिरदौस सिर्फ कहानी नहीं है कि पढ़ा जाए और भूला दिया जाए। ये तो कश्मीर की कहानी है, वहां के लोगों की कहानी है। इसमें बताया गया है कि कोई कश्मीरी हथियार उठाता है तो क्यों उठाता है? किताब में बहुत अच्छी तरह से बताया गया है कि कश्मीर के लोग क्यों सेना से डरते हैं? किताब में एक जगह जिक्र भी है जब फिरदौस सोचता है कि बदन पर वर्दी और हाथों में बंदूक लिए लोग सबके लिए आम नहीं थे। डर और मौत के साये सिर्फ उसके ही मुल्क के हिस्से आए थे। ये एक ही देश के दो जगहों के बारे में बताता है। इसके अलावा पाकिस्तान से आने वाले लोगों के बारे में भी काफी कुछ कहा गया है। शौकत के किरदार इस कश्मीर से रूबरू कराता है। इसी के बारे में एक जगह शौकत सोचता है, परदेसी मुल्क में कोई आखिर क्यों अपना सब कुछ छोड़कर जान हथेली पर लिए इस तरह फिरेगा। जब ये सब पढ़ते हैं तो लगता है अब तक कश्मीर के बारे में कुछ और ही सुनते आए थे।
किताब में इसके अलावा कश्मीर की सुंदरता का खूब जिक्र है। इसमें सुंदरता के नाम पर सिर्फ डल झील, श्रीनगर और शिकारा नहीं है। इसके अलावा कश्मीरी पकवानों के बारे में भी बीच-बीच में जिक्र होता रहता है। उर्दू शब्द तो इतने ज्यादा हैं कि आपको हर लाइन में उर्दू शब्द मिल जाएंगे। किताब में सब बुरा ही बुरा नहीं है। गर फिरदौस बताती है कि कश्मीर बंद होने के बावजूद उनकी जिंदगी बंद नहीं हुई थी। इंटरनेट बंद होने के बाद भी उन्होंने लोगों से बात करना बंद नहीं किया था। हर वीकेंड पर साथ बैठकर दावत करना फिर भी नहीं भूले थे। कर्फ्यू के बीच भी प्रेमी, प्यार करना नहीं छोड़े थे। गर फिरदौस, उस कश्मीर की कहानी है जिसके बारे में कोई नहीं बताता। जहां जिंदगी तो सरपट से दौड़ रही है लेकिन बेबसी और चुभन भी है।
किताब की खूबी
गर फिरदौस की सबसे बड़ी खूबी तो उसकी कहानी का ढंग है। जिसमें सिर्फ कहानी नहीं, कश्मीर को भी कह दिया है। उसके बाद भाषा बहुत सरल है। उर्दू के बहुत शब्द हैं लेकिन इतने भी कठिन नहीं कि समझ में न आएं। पूरी किताब में सिर्फ तीन तस्वीरें हैं, जो आपको तीनों चैप्टर में मिल जाएंगी। शायद लेखिका ने उसे कश्मी में रहते हुए कैद किया होगा। कमियां तो आपको इसमे ढूढ़ने से भी नहीं मिलेंगी। हो सकता आपको लगे कि ये काल्पनिक भी हो सकता है। फिर भी नहीं भूलना चाहिए कि लेखिका एक पत्रकार हैं। ये कश्मीर का रिपोर्ताज है बस उन्होंने इसे कहा कहानी के ढंग में है। क्योंकिा घटनाएं भुला दी जाती हैं लेकिन किस्से और कहानी जेहन में बने रहते हैं। इस किताब को पढ़ने के बाद शौकत, इकरा और फिरदौस भी आपके जेहन में बना रहेगा।
गर फिरदौस डिजिटल संस्करण में है। इसे आप किंडल पर जाकर पढ़ सकते हैं। बहुत ज्यादा मोटी भी नहीं हो तो आप एक बैठक में ही इसे पढ़ डालेंगे। गर फिरदौस जैसी किताबें दिमाग को सोचने पर मजबूर करती हैं। मेरा विश्वास है कि किताब खत्म होने के बाद भी आप कश्मीर के बारे में सोचते रहेंगे। जिसके बाद शायद आप कश्मीर को कुछ अलग नजर से देखेंगे। किताब पढ़ने के बाद मुझे फिरदौस की एक बात याद रहती है, जो कश्मीर के लोगों की कहानी भी है।
रोज मुर्दे की तरह जीने से एक दिन सचमुच का मर जाना बेहतर है।
किताब- गर फिरदौस।
लेखिका- प्रदीपिका सारस्वत
प्रकाशन- एमेजाॅन किंडल।
कीमत- 29 रुपए।