Wednesday, 17 June 2020

इंडिया ऑफ्टर गांधीः आजादी के बाद के कुछ सालों की कहानी, जिसमें बहुत कुछ बना और बहुत कुछ बिगड़ा!

जैसे ही आखिरी ब्रिटिश सिपाही बंबई या कराची बंदरगाह से रवाना होगा। हिन्दुस्तान परस्पर विरोधी धार्मिक और नस्लीय समूहों के लोगों की लड़ाई का अखाड़ा बन जाएगा। 
                                      - जे. ई. वेल्डन, 1915।

इंडिया ऑफ्टर गांधी जिसका हिंदी अनुवाद भारत गांधी के बाद है। आजादी के बाद के भारत के इतिहास को बेहतरीन तरीके से बताया है। ऐसा लगता है कि हम किसी किताब की अलग-अलग कहानी पढ़ रहे हैं जो घूम-फिरके एक ही किरदार पर आकर ठहर जाती है, जवाहर लाल नेहरू। 1947 में नेहरू कैसे थे और 1964 में आते-आते क्या थे? इस किताब को पढ़ने के बाद समझ आता है। ये किताब दुनिया के विशालतम लोकतंत्र का सिर्फ इतिहास नहीं है। ये किताब आज की सरकार और राजनेताओं के लिए एक सबक भी है। उन्हें इस किताब से सीखना चाहिए कि जब संकट आए, समस्याएं आएं तो क्या नहीं करना है? हमारे सामने उस समय कुछ समस्याएं थीं, हमने तब क्या किया और क्या नहीं करना चाहिए था? दोनों ही बातें बताती है ये किताब।

लेखक के बारे में


रामचन्द्र गुहा।

रामचन्द्र गुहा देश के जाने-माने इतिहासकार हैं। वे देश के बड़े मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं और लोग उनको सुनते हैं। उनका जन्म 1958 में देहरादून में हुआ। दिल्ली और कलकत्ता से पढ़ाई की। कई जगह प्रोफेसर भी रहे। दस साल तीन महाद्वीपों में पांच अकादमिक पदों पर रहने के बाद वे अब पूरी तरह से लेखक बन चुके हैं। उनकी लिखी किताबों को 20 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इस किताब के अलावा भारत नेहरू के बाद भी काफी चर्चित रही है। रामचन्द्र गुहा ने बैंगलोर को अपना ठिकाना बना लिया है। अब वे वहीं से लेखन का काम करते हैं।

क्या है किताब में


किताब में आजादी के समय से लेकर नेहरू के निधन तक ही कहानी है। उस दौरान जो भी बड़े और जरूरी मुद्दे, घटनाएं हुईं। वो सब इस किताब में है। किताब शुरू होती है एक प्रस्तावना से जिसकी कुछ पंक्तियों के बाद गालिब का एक शेर आता है। फिर हिन्दुस्तान के बारे में काफी कुछ बताया जाता है। जिसमें लेखक के खुद के विचार है। वो भारत को अस्वाभाविक राष्ट्र कहते हैं, इस प्रस्तावना में वे इसकी वजह भी बताते हैं। उसके बाद शुरू होती है किताब।

इंडिया आॅफ्टर गांधी में पहला चैप्टर है आजादी और  
राष्ट्रपिता की हत्या। आजादी के समय देश का क्या माहौल था? देश के आंदोलनकारी जो अब नेता बन चुके थे, वे क्या कर रहे थे? गांधी जी देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर शांति बहाल करने की कोशिश में लगे थे। आजादी मिली और उसके बाद देश की सबसे बड़ी त्रासदी हुई। जिसमें लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा, देश में हिंसा का माहौल था। उस दौर को लेखक ने आंकड़ों, बयान, संस्मरण से बताने की कोशिश की है। इसके अलावा किताब में विभाजन, 565 रियासतों को एक करना, कश्मीर समस्या, शरणार्थी, कुछ विकास की घटनाएं, आदिवासी समस्या, राज्यों का पुनर्गठन और चीन से युद्ध के बारे में विस्तार से बताया है।

किताब में 17 चैप्टर हैं। हर अध्याय में देश की एक कहानी है, एक समस्या है और उन पर लिए कुछ कदम हैं। जो पढ़ते हुए कभी सही लगता है तो कभी लगता है ये नहीं होना चाहिए। फिर चाहे केरल सरकार को बर्खास्त करना हो या आंध्र प्रदेश के शख्स का अनशन करते हुए मर जाना हो या फिर बात हो नेहरू का हमेशा वी के मेनन के पीछे खड़ा रहना हो। जिसका नतीजा निकला भारत का 1962 में चीन से पराजय का मुंह देखना पड़ा। देश के कई राज्य उसी 17 सालों में बने। वो कैसे बने? क्या समस्याएं आई? बंबई महाराष्ट्र का हो, गुजरात में जाए या अलग ही रहे? ये सब जानकारी ये किताब देती है।

हर चैप्टर की शुरूआत में ऐसे ही कथन हैं।

ये किताब कुल मिलाकर हमें जागरूक करती है। हमें वो सब जानकारी देती है। जिनके बारे में या तो बहुत कम पता है या पता ही नहीं है। मुझे नहीं पता था कि जवाहर लाल नेहरू ने अपने खास दोस्त शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार करवाया। मुझे नहीं पता था जब नेहरू की मौत हुई तो शेख फूट-फूटकर रो रहे थे। मुझे नहीं पता था कि चीन और भारत के बीच क्या बातें हुईं थी? ये किताब संविधान में बने कुछ प्रमुख कानूनों की भी बात करता है। जिनको लेकर संविधान सभा में बहुत बहस हुई। चाहे भाषा का मामला हो, अल्पसंख्यकों के अधिकार का मामला हो या झंडे पर विचार की बात हो। संविधान सभा के स्वरूप और उस समय दिए गए बहुत सारे कथनों को भी किताब में डाला गया है।

रामचन्द्र गुहा ने ये किताब बहुत रिसर्च के बाद लिखी है। जो पढ़ते हुए समझ में भी आता है। उन्होंने इसके लिए कितनी मेहनत की है, ये किताब के आखिर में संदर्भ देखने के बाद समझ आता है। 525 पेज की इस किताब के आखिरी 47 पेज में सिर्फ संदर्भ हैं। लेखक ने हर चैप्टर के अलग-अलग संदर्भ लिखे हैं। जो इस किताब को और भी विश्वसीन बनाता है। आप इस किताब को पढ़ने के बाद सिर्फ उस दौर के इतिहास, परिस्थितियों और घटनाओं को ही नहीं समझते। आपको समझ आता है भारत, आप खोज पाते हैं भारत। भारत को जानने और समझने के लिए एक मुकम्मल किताब है, भारत गांधी के बाद।

क्यों पढ़ें?


वैसे तो मुझे ये बताना नहीं चाहिए क्योंकि अब तक बहुत सारे लोग इसको पढ़ चुके हैं। इस किताब को कई अवाॅर्ड भी मिल चुके हैं। आउटलुक ने तो इसे बुक आॅफ द् ईयर से नवाजा है। फिर भी मुझे ये अच्छी लगी क्योंकि इसमें जानकारी बहुत है, वो भी रोचक तरीके से। पढ़ते हुए मैं कभी बोर नहीं हुआ। आगे पढ़ने की लालियत बनी ही रहती थी। ये किताब लेखक ने अंग्रेजी में लिखी। इसका हिन्दी अनुवाद सुशांत झा ने किया। मैंने ये किताब हिन्दी में ही पढ़ी। भाषा बिल्कुल सहज और सरल है। आपको पढ़ते हुए दिक्कत नहीं आएगी। लेखक ने किताब में कुछ ऐसे लोगों के बारे में बताया है। जिन्होंने बहुत जरूरी काम किए हैं लेकिन उनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है।

किताब में बहुत कम चित्र हैं।

किताब में तस्वीरें बहुत कम हैं। लेखक ने पूरी किताब में तस्वीरें रखने की बजाय, कुछ पेज तस्वीरों के लिए छोड़ दिए हैं। ये तस्वीर उन लोगों की हैं जिनका किताब में जिक्र है। तस्वीरें सिर्फ लोगों की नहीं हैं कुछ घटनाओं की तस्वीरें है। तस्वरों के अलावा कुछ नक्शे भी किताब में दिए हुए हैं। किताब को एक और चीज रोचक बनाती है। हर चैप्टर की शुरूआत में किसी न किसी व्यक्ति का कथन है। जो उस चैप्टर के मुद्दे से संबंधित होता है। भारत गांधी के बाद मुझे काफी कुछ जानने को मिला। ये किताब ज्ञान का एक भंडार है जिसे हर किसी को पढ़ना चाहिए। ये उस दौर की समस्याओं को भी बताता है, हमारी कमियों को भी बताता है और हमने क्या किया वो भी। आखिर में किताब में दिए एक अमेरिकी पत्रकार की टिप्प्पणी, जो कछ हद तक सही है और कुछ हद तक गलत।

हमारे लिए हिन्दुस्तान का सिर्फ दो ही मतलब हैं, अकाल और जवाहर लाल नेहरू।

किताबः इंडिया ऑफ्टर गांधी।
लेखक- रामचन्द्र गुहा।
अनुवादक- सुशांत झा हिन्दी।
प्रकाशक- पेंगुइन बुक्स।
कीमत- 399 रुपए।


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