Thursday, 11 June 2020

वन लाइनर के अलावा मुसाफिर कैफे में मुसाफिर जैसा कुछ भी नहीं है

असल में किताबें दोस्त तब बनती हैं जब हम सालों बाद उन्हें पहली बार की तरह छूते हैं। किताबें खोलकर अपनी पुरानी अंडरलाइन्स को ढूंढ़-ढूंढ़कर छूने की कोशिश करते हैं। किसी को समझना हो तो उसकी शेल्फ में लगी किताबों को देख लेना चाहिए। किसी की आत्मा समझनी हो तो उन किताबों में लगी अंडरलाइन को पढ़ना चाहिए।

ऐसी गहरी और अच्छी बातें किताब को रोचक बनाती हैं। दिव्य प्रकाश दुबे इस काम को बहुत अच्छी तरह से करते हैं। उनकी हर किताब में ऐसी ही बातें मिल जाती हैं जिनको नोटडाउन करने का मन करता है। आज मैं जिस किताब के बारे में बात कर रहा हूं वो है, मुसाफिर कैफे।

लड़की देखने गए और वहां वो पहले से ही ...

किताब का नाम उसके बारे में काफी कुछ बता देता है। उसी को देखकर हम किताब को पढ़ने या न पढ़ने का मन बनाते हैं। मुसाफिर कैफे को मैंने उसके नाम से ही पसंद किया था। पूरी किताब में मुसाफिर खोजता रहा मगर मिला नहीं। मुसाफिर कैफे में एक कहानी है जो कुछ हद तक लव स्टोरी है और कुछ हद तक आज की जिंदगानी है। मुसाफिर कैफे में लेखक ने बहुत हद तक आज के नौजवानों की रग पकड़ने की कोशिश की है। शायद इसलिए ये किताब युवाओं को पसंद आई है।

लेखक के बारे में 

Divya Prakash Dubey (@divyapdubey) | Twitter                                                             
मुसाफिर कैफे को लिखा है दिव्य प्रकाश दुबे ने। दिव्य प्रकाश चार किताबें लिख चुके हैं। हाल ही में उनकी किताब अक्टूबर जंक्शन आई है। मुसाफिर कैफे उनकी तीसरी किताब है। इसके अलावा उनकी दो किताबें शर्तें लागू और मसाला चाय है। उनकी स्टोरीबाजी और संडे वाली चिट्ठी काफी पापुलर रही है। पढ़ने-लिखने में उन्होंने बीटेक और एमबीए किया है। 2017 में अपनी नौकरी छोड़कर पूरी तरह से लेखक बन चुके हैं। इन दिनों सोशल मीडिया पर लाइव करके लोगों से बात करते हैं। वहां अपना कुछ सुनाते हैं और दूसरों का सुनते भी हैं।


कहानी


ये कहानी है तीन नौजवानों की, सुधा, चंदर और पम्मी की। लेखक ने धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों के देवता के तीन मुख्य पात्रों को आज के समय में दिखाने की कोशिश की है। सुधा, चंदर और पम्मी के अपने सपने हैं और अपनी जिंदगी से कुछ अलग चाहते हैं। इसके बावजूद तीनों की जिंदगी एक-दूसरे से जुड़ी रहती है। ये कहानी कोई ट्राइंग्ल लव स्टोरी नहीं है कि कोई किसी को प्यार करता है तो कोई किसी से। सुधा वकील है जो तलाक दिलवाती है। जिससे उसका शादी से विश्वास उठ चुका है इसलिए वो शादी नहीं करना चाहती। चंदर थोड़ा कन्फ्यूज्ड है वो जिंदगी से क्या चाहता है? उसे खुद नहीं पता। पम्मी कहानी में थोड़ा देर से आती है। सुधा और चंदर की मुलाकात मुंबई के एक काॅफी हाउस में होती है। दोनों जल्दी दोस्त बनते हैं और फिर साथ रहने लगते हैं।

साथ रहते हुए चंदर को लगता है कि अब उसे शादी कर लेनी चाहिए जबकि सुधा का मानना है कि हम बिना शादी के भी साथ रह सकते हैं। चंदर मुंबई और सुधा को छोड़कर  निकल पड़ता है एक सफर पर। ये सफर उसे मसूरी पहुंचाता है। यहीं उसकी मुलाकात छोड़कर पम्मी से होती है। दोनों मिलकर मसूरी में ही कैफे खोलते हैं मुसाफिर कैफे। कहानी फिर सीधे दस साल आगे जंप करती है। उसके बाद सुधा और चंदर कैसे मिलते हैं। दोनों शादी करते हैं या नहीं, अगर करते हैं पम्मी का क्या होता है? ये सब जानने के लिए आपको मुसाफिर कैफे पढ़नी होगी।

किताब के बारे में


किताब में कहानी क्या है? उसको शाॅर्ट में बताने की कोशिश की है। किताब को इस प्रकार रोचक तरीके से लिखा गया है कि आप एक बार में पढ़ लेंगे। किसी किताब को अच्छा बनाती है कहानी के बीच की बातचीत। इस किताब में वो बातचीत पढ़ने में तो अच्छी लगती है लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। वो सब फसाना-सा लगता है, खासकर सुधा और चंदर की बातचीत। पढ़ते हुए लगता है कि ऐसा सिर्फ मूवीज में हो सकता है वास्तव में नहीं। चाहे फिर वो दोस्त बनने की बात हो या फिर बिना शादी के हनीमून जाने की बात। हो सकता है कि बहुत-से लोगों को ये पसंद आया हो लेकिन ये मुझे किताब की सबसे बड़ी कमी लगी।

                                    मुसाफिर कैफे : दिव्य प्रकाश ने ...

किताब की भाषा बहुत सहज और सरल है। जिसे पढ़ने में आसानी होती है। इसके अलावा बहुत सारे वन लाइनर हैं और बहुत सारी ऐसी बातें हैं जिनको आप अंडरलाइन जरूर करना चाहेंगे। बीच-बीच में अंग्रेजी शब्द और अंग्रेजी भी है मगर वो खटकती नहीं है। इसके अलावा टाइटल भी अनोखे ढंगे से लिखे गए हैं जैसे कि ‘उ से उस दिन की बात’, ‘अ से अंडमान निकोबार’।

लेखक अपनी किताब को बहुत मेहनत से लिखता है। मगर पाठक को कैसी लगेगी? ये उसके हाथ मे नहीं होता है। दिव्य प्रकाश दुबे की अक्टूबर जंक्शन पढ़ने के बाद मुझे मुसाफिर कैफे थोड़ी कम पसंद आई। मुसाफिर कैफे मेरे लिए वो पहली किताब है जिसे मैंने किंडल पर पढ़ा। इसके बावजूद जिन्होंने ये किताब नहीं पढ़ी है उनको पढ़नी चाहिए। मगर ये सोचकर मत पढ़िए कि इसमें यात्रा और मुसाफिर जैसा कुछ होगा। 

सबकी मंजिल भटकना है, कहीं पहुंचना नहीं।

किताब- मुसाफिर कैफे।
लेखक- दिव्य प्रकाश दुबे।
प्रकाशक- हिन्दी युग्म और वेस्टलैंड लिमिटेड।
कीमत- 150 रुपए।
किंडल प्राइस- 115 रुपए।

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