Monday, 4 March 2019

''मैं ही मुद्दा हूं, इंदिरा ही मुद्दा है''

इस किताब से पहले मैंने इंदिरा गांधी पर लिखी कोई किताब नहीं पढ़ी। इंदिरा गांधी के बारे में बचपन से ही सुना था। हमारे देश की महानतम नेता और प्रधानमंत्री। जिन्होंने देश के लिये अपनी जान दे दी। हमारी हिंदी की गाइड के बैक कवर पर उनके वो शब्द लिखे रहते ‘मेरे खून का आखिरी कतरा’। जब काॅलेज लाइफ में आया तो आपातकाल के बारे में पता चला। सबने कहा, इंदिरा गांधी ने जीवन भर अच्छा काम किया बस आपातकाल लगाकर गलती कर दी। किताबें पढ़ने लगा तो पता चला कि आपातकाल क्यों लगाया था? उसके बाद कोई कहता कि इंदिरा महान थीं तो मुझे जाने क्यों नहीं लगता कि वो महान थीं। बहुत सारी किताबों में इंदिरा गांधी के बारे में फुटकर-फुटकर पढ़ा और इंदिरा गांधी बेहतरीन नेता थी। इस किताब को पढ़ने के बाद मैंने इंदिरा गांधी को नहीं, इंदिरा गांधी की कहानी को जान लिया है। उसके बाद मैं कह सकता हूं कि पहले वे एक नेता बनना चाहती थी और बाद के दिनों में हर कीमत पर सिर्फ सत्ता।


देश की पहली प्रधानमंत्री पर लिखी किताब ‘इंदिरा’। जिसे जानी-मानी पत्रकार और लेखक सागरिका घोष ने लिखा है। जब मैं किताब को पढ़ना शुरू करने वाला था। तब मुझे लग रहा था कि किताब में इंदिरा गांधी के बारे में अच्छा-अच्छा लिख दिया गया हो। शुक्र है कि मैं गलत निकला। लेखिका ने इंदिरा के बारे में वैसा ही लिखा है शायद जैसी वे थीं। शुरूआत के दिनों से लेकर अपने अंतिम दिनों की पूरी कहानी। किताब में अलग ये भी है कि वो बीच-बीच में एक पत्र लिखती हैं। जिसमें वो इंदिरा गांधी से सवाल पूछती हैं। सवाल उनकी जिंदगी में जो हो रहा था, सवाल जो वो आगे करने वाली थीं। वे सवाल जो शायद इंदिरा गांधी से तब पूछे जाने चाहिये थे।

इस किताब की लेखिका।
किताब इंदिरा गांधी के जीवन को कुछ भागों में बांटती है। शुरूआत उस बुरी घटना से होती है जो देश की राजनीति को हिला देता है। 31 अक्टूबर 1984 की तारीख की घटना। जिस दिन देश के प्रधानमंत्री को उसके ही अंगरक्षक गोली मारकर हत्या कर देते हैं। उसके बाद कहानी इलाहाबाद के आनंद भवन में चली जाती है। मैंने इंदिरा गांधी की राजनीति के बारे में पढ़ा था, आपातकाल के बारे में पढ़ा था। लेकिन बचपन कैसा था इस बारे में मुझे नहीं पता था। कुछ दिन पहले मैं प्रयागराज इलाहाबाद गया था। आनंद भवन में एक तस्वीर देखी थी जिसमें महात्मा गांधी के साथ छोटी-सी इंदिरा हैं। वहां से आने के बाद ही इंदिरा गांधी के बारे में पढ़ने का मन किया था।

इस किताब में इंदिरा का बचपन बताया गया है। बताया गया है कि वे जवाहर लाल नेहरु की प्यारी नहीं थीं बल्कि अपनी मां की प्यारी थी। इस किताब में सिर्फ इंदिरा की कहानी नहीं हैं। ये किताब जवाहर लाल नेहरू के बारे में है, कमला नेहरू के बारे में, फिरोज गांधी के बारे में है। इसमें वो किस्सा भी है जब एक जगह नेहरू अपने मित्र से कहते हैं कि क्या कोई मेरी पत्नी से प्रेम कर सकता है? उन्हीं दिनो फिरोज और कमला के प्रेम की बातें हो रही थीं। ऐसे ही बहुत सारे किस्से हैं उनके बचपन के। बचपन में इंदिरा अपनी मां की तरह थीं और बाद में भी वे अपनी मां की तरह बन जाती थीं। जो इंतजार करतीं और लड़ने के लिये तैयार रहतीं अपने आप से।


वे विदेश चलीं जाती हैं। वहां प्रेम की नैय्या में बैठती हैं, जिसके लिये वे अपने पिता से विद्रोह कर लेती हैं। महात्मा गांधी तभी बीच में आते हैं और फिरोज-इंदिरा की शादी कराते हैं। फिर पिता की संरक्षक बनती हैं, फिरोज की विद्रोही। इन सबके बीच एक किस्सा आता है इंदिरा गांधी के प्रेम का। वे प्रधानमंत्री बनती हैं और फिर जननायक। इसके बाद वे पुत्र प्रेम में ऐसी गिरती हैं कि उठ ही नहीं पाती हैं। आखिर में वे किस्से दिये हैं जो बताते हैं वे सत्ता में तो थीं लेकिन कमजोर थीं। आॅपरेशन ब्लूस्टार उनकी मौत की कारण बनता है। उनकी मौत उनके बेटे को सत्ता दे जाती है। इन सबके बीच में इंदिरा गांधी के बारे में न जाने कितने किस्से हैं। उनके उठने के, फिर तानाशाह के और फिर सत्ताबेदखली। आखिर में फिर से सबको पटखनी देने के बारे में बताती है ये किताब।

ये किताब जब तक इंदिरा हैं। इंदिरा की मौत से लेकर किताब शुरू होती है लेकिन इंदिरा की मौत पर ये किताब खत्म नहीं होती है। आखिर में लेखिका ने एक अध्याय जोड़ा है इंदिरा के बारे में। जिसमें इंदिरा गांधी का कला प्रेम, धर्म-अध्यात्म के बारे में बताया गया है। ये सब मुझे पढ़ने में मजेदार नहीं थे। उसके पहले तक मैं किताब पढ़ता रहा और इंदिरा गांधी को जानता रहा। कभी कमला नेहरु के बेटी के रूप में तो कभी ‘मैं ही मुद्दा के रूप में’।

बुक- इंदिरा
लेखिका- सागरिका घोष
अनुवाद- अनंत मित्तल
प्रकाशक- जगरनाॅट बुक्स
कुल पेज- 389।

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