किताबों के दौर में लेखकों ने अपने दायरे बना लिये हैं। जिसमें किताबें प्रेम पर आ रही है या दोस्तों पर। शायद लेखकों का मानना है कि प्रेम को सभी पढ़ते हैं, सही है। लेकिन अगर आप अच्छे विषयों पर भी लिखें तो पाठक क्यों नहीं पढ़ेंगे? प्रेम पर पढ़ने वाले पाठक बंधे होंगे। लेकिन पढ़ने वाले सिर्फ पढ़ते हैं। विषय और भाषा अच्छी मिले तो सोने पर सुहागा हो जाती है। ऐसे ही ऐसी ही एक किताब आई है, औघड़।
औघड़ किताब के बारे में अगर कुछ वाक्यों में कहना हो। तो मैं कहूंगा कि ये सिर्फ किताब नहीं है, ये सच्चाई है। ये सच्चाई बताती है हमारे समाज की, ये सच्चाई बताती है हमारे व्यवहारिकता की। ये सच्चाई बताती है कि समाज आज भी गंदा है। ये किताब बताती है कि कोई भी औघड़ यू ही नहीं हो जाता। ये किताब ग्रामीण परिवेश पर आधारित है। जिसकी भाषा व्यंग्य की तरह लिखी है, जिसको पढ़कर आप हंसते भी हैं और दुखी भी होते हैं और अंत में रह जाती है एक दीवार।
इस किताब को लिखा है नीलोत्पल मृणाल ने। नीलोत्पल की ये दूसरी किताब है। इसके पहले वे डार्क हाॅर्स लिख चुके हैं। जो काफी पढ़ी जाने वाली किताब रही। जिसके लिये नीलोत्पल मृणाल को साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया था। नीलोत्पल मृणाल साहित्य जीवन से लेकर युवाओं के बीच काफी पसंद किये जाते हैं। पहले वे डार्क हाॅर्स फेम लेखक कहे जाते थे। इस किताब के बाद वे औघड़ फेम लेखक कहे जाने लगे हैं। वे आपको हर साहित्यक मंच पर मिल ही जायेंगे।
औघड़ ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास है। जिसमें आज का गांव है। जो आज भी बहुत कुछ बदला नहीं है। आज भी गांव में लोग भोर होने से पहले उठ जाते हैं। आज भी एक जगह ऐसी होती है जहां पंचायत बैठती हैं। जहां एक-दूसरे पर ठहाके लगाये जाते हैं। गांव में सुविधाओं का अभाव है लेकिन भाव है। जहां आज भी जाति है और जाति ही सब कुछ है। जहां पर्दा है तो महिला है और महिला न बोले यही सशक्तिकरण है। जहां बुजुर्गों का सम्मान उनकी मर्जी पर चलना है। जहां गांव की प्रधानी की राजनीति है और थोड़ा प्रपंच है।
कहानी गांव के परिवेश से शुरू होती है और धीरे-धीरे सबकी बातें होती हैं। धीरे-धीरे सबका परिचय होता है और परिचय के साथ जुड़ी होती है उसकी जाति। इसी तरह कहानी धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। जिसमें एक तरफ कुछ बड़े लोगों की पंचायतें होती हैं जिसमें सब एक-दूसरे को हांकने का काम करते हैं। उस बातचीत को पढ़ने में रस आता है क्योंकि जिस हास्य तरीके से लिखा गया है। उसे पढ़ते रहने का मन करता है, पूरी किताब में हास्य और बहुत जगहों पर होता है। दूसरी तरफ एक और पंचायत लगी होती है जो फायदे के लिये नहीं अपना टाइम पास कर रहे होते हैं।
आधी किताब पढ़ने के बाद भी पता नहीं चलता कि कहानी का कोई नायक होगा या नहीं। लगता है कि किताब बिना नायक के गांव के परिवेश और उबड-खाबड़ में चलती रहेगी। लेकिन फिर नायक बनकर उभरता है वो जो जाति की दीवार गिराना चाहता है। जाति की वो दीवार गिराने का तरीका बनता है जनतंत्र। लेकिन गांव में जनतंत्र से ज्यादा मूल्य होता है व्यवहार का। आखिर में कहानी अपनी अंत तक पहुंचती है। अंत यानि कि प्रस्थान पर। एक सफल कहानी वही होती है जो अंत आपको कचोटे और कहे। मैं तो कहानी को ऐसे खत्म नहीं करना चाहता था। वही अच्छी कहानी होती है, वैसी ही ये कहानी है। एक औघड़ की कहानी।
गांव के बारे में प्रेमचंद्र के उपन्यास बेहतरीन हैं। लेकिन आज के दौर में ऐसी ही किताबों की आवश्यकता हैं जो हमें समाज को दिखायें। गांव का परिवेश और हमारी संस्कृति सब कुछ ये कहानी बताती है। किताब में है बहुत सारे विरोधाभाष। संस्कृति को लेकर, समाज को लेकर, जाति को लेकर, शिक्षा को लेकर राजनीति को लेकर और शहर भी। कहानी में लेखक अपनी बात भी रखता है और सवाल भी करता है। सवाल पितृसत्ता समाज, सवाल उन लोगों से जो चुप रहना ही बेहतर समझते हैं। सवाल पैसा और जाति की लड़ाई के बीच में।
इस किताब को हर किसी को पढ़ना चाहिये। प्रेम, दोस्ती और कल्पना बहुत पढ़ा गया है। अब थोड़ा अपने गांव की ओर, खुद की ओर आओ। औघड़ किताब को हमेशा याद रखने के लिये है। जब भी लगे कि कुछ अच्छा पढ़ना है तो औघड़ पढ़ डालो। निरंतरता और संजीवता सब इस किताब में है। बस किताब थोड़ी मोटी है, वक्त लग सकता है लेकिन बोर नहीं हो सकते।
बुक- औघड़
लेखक- नीलोत्पल मृणाल
प्रकाशक- हिंदी युग्म
कुल पृष्ठ- 388।
औघड़ किताब के बारे में अगर कुछ वाक्यों में कहना हो। तो मैं कहूंगा कि ये सिर्फ किताब नहीं है, ये सच्चाई है। ये सच्चाई बताती है हमारे समाज की, ये सच्चाई बताती है हमारे व्यवहारिकता की। ये सच्चाई बताती है कि समाज आज भी गंदा है। ये किताब बताती है कि कोई भी औघड़ यू ही नहीं हो जाता। ये किताब ग्रामीण परिवेश पर आधारित है। जिसकी भाषा व्यंग्य की तरह लिखी है, जिसको पढ़कर आप हंसते भी हैं और दुखी भी होते हैं और अंत में रह जाती है एक दीवार।
इस किताब को लिखा है नीलोत्पल मृणाल ने। नीलोत्पल की ये दूसरी किताब है। इसके पहले वे डार्क हाॅर्स लिख चुके हैं। जो काफी पढ़ी जाने वाली किताब रही। जिसके लिये नीलोत्पल मृणाल को साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया था। नीलोत्पल मृणाल साहित्य जीवन से लेकर युवाओं के बीच काफी पसंद किये जाते हैं। पहले वे डार्क हाॅर्स फेम लेखक कहे जाते थे। इस किताब के बाद वे औघड़ फेम लेखक कहे जाने लगे हैं। वे आपको हर साहित्यक मंच पर मिल ही जायेंगे।
किताब के बारे में
औघड़ ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास है। जिसमें आज का गांव है। जो आज भी बहुत कुछ बदला नहीं है। आज भी गांव में लोग भोर होने से पहले उठ जाते हैं। आज भी एक जगह ऐसी होती है जहां पंचायत बैठती हैं। जहां एक-दूसरे पर ठहाके लगाये जाते हैं। गांव में सुविधाओं का अभाव है लेकिन भाव है। जहां आज भी जाति है और जाति ही सब कुछ है। जहां पर्दा है तो महिला है और महिला न बोले यही सशक्तिकरण है। जहां बुजुर्गों का सम्मान उनकी मर्जी पर चलना है। जहां गांव की प्रधानी की राजनीति है और थोड़ा प्रपंच है।
कहानी गांव के परिवेश से शुरू होती है और धीरे-धीरे सबकी बातें होती हैं। धीरे-धीरे सबका परिचय होता है और परिचय के साथ जुड़ी होती है उसकी जाति। इसी तरह कहानी धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। जिसमें एक तरफ कुछ बड़े लोगों की पंचायतें होती हैं जिसमें सब एक-दूसरे को हांकने का काम करते हैं। उस बातचीत को पढ़ने में रस आता है क्योंकि जिस हास्य तरीके से लिखा गया है। उसे पढ़ते रहने का मन करता है, पूरी किताब में हास्य और बहुत जगहों पर होता है। दूसरी तरफ एक और पंचायत लगी होती है जो फायदे के लिये नहीं अपना टाइम पास कर रहे होते हैं।
आधी किताब पढ़ने के बाद भी पता नहीं चलता कि कहानी का कोई नायक होगा या नहीं। लगता है कि किताब बिना नायक के गांव के परिवेश और उबड-खाबड़ में चलती रहेगी। लेकिन फिर नायक बनकर उभरता है वो जो जाति की दीवार गिराना चाहता है। जाति की वो दीवार गिराने का तरीका बनता है जनतंत्र। लेकिन गांव में जनतंत्र से ज्यादा मूल्य होता है व्यवहार का। आखिर में कहानी अपनी अंत तक पहुंचती है। अंत यानि कि प्रस्थान पर। एक सफल कहानी वही होती है जो अंत आपको कचोटे और कहे। मैं तो कहानी को ऐसे खत्म नहीं करना चाहता था। वही अच्छी कहानी होती है, वैसी ही ये कहानी है। एक औघड़ की कहानी।
गांव के बारे में प्रेमचंद्र के उपन्यास बेहतरीन हैं। लेकिन आज के दौर में ऐसी ही किताबों की आवश्यकता हैं जो हमें समाज को दिखायें। गांव का परिवेश और हमारी संस्कृति सब कुछ ये कहानी बताती है। किताब में है बहुत सारे विरोधाभाष। संस्कृति को लेकर, समाज को लेकर, जाति को लेकर, शिक्षा को लेकर राजनीति को लेकर और शहर भी। कहानी में लेखक अपनी बात भी रखता है और सवाल भी करता है। सवाल पितृसत्ता समाज, सवाल उन लोगों से जो चुप रहना ही बेहतर समझते हैं। सवाल पैसा और जाति की लड़ाई के बीच में।
इस किताब को हर किसी को पढ़ना चाहिये। प्रेम, दोस्ती और कल्पना बहुत पढ़ा गया है। अब थोड़ा अपने गांव की ओर, खुद की ओर आओ। औघड़ किताब को हमेशा याद रखने के लिये है। जब भी लगे कि कुछ अच्छा पढ़ना है तो औघड़ पढ़ डालो। निरंतरता और संजीवता सब इस किताब में है। बस किताब थोड़ी मोटी है, वक्त लग सकता है लेकिन बोर नहीं हो सकते।
बुक- औघड़
लेखक- नीलोत्पल मृणाल
प्रकाशक- हिंदी युग्म
कुल पृष्ठ- 388।
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