घुमक्कड़ स्वभाव जिंदगी में नयी-नयी चीजें, नये अनुभव, नये रास्ते दिखाता है। जब लगे कि जिंदगी ठहर गई कि वो घुमक्कड़ वाला स्वभाव आ जाना चाहिये। जो कल की न सोचे, बस चल दे। मुझे लगता है नई-नई जगह जाने से आप तरोताजा हो जाते हैं, कुछ अच्छा और बेहतर करने के लिये। उन्हीं घुमक्कड़ स्वभाव के लिये पहाड़ सबसे बढ़िया जगह होती है। वो गगन छूती पहाड़ियां, वो कलकल करती नदियां और हिचकोले लेते रास्ते जैसे हमारी जिंदगी लेती है। इस सफर में कभी अच्छा लगता है, कभी बुरा लगता है। लगता है बहुत हो गया, अब लौट लेते हैं कि फिर मन कहता है ‘अभी नही तो कभी नहीं’। ऐसी ही दो सैलानियों की यात्रा की कहानी है ‘हमसफर एवरेस्ट’।
हमसफर एवरेस्ट को लिखा है नीरज मुसाफिर ने। नाम ही कह रहा है कि ये घूमते-फिरते रहते हैं। नीरज मेरठ के रहने वाले हैं। मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया है और दिल्ली में नौकरी कर रहे हैं। उसी नौकरी में से समय निकालकर भारत के हिस्सों में घूमते-फिरते रहते हैं। साल 2008 से अपनी तमाम यात्राओं के बारे में अपने ब्लाॅग में लिखते आ रहे हैं। नीरज ब्लाॅग और फेसबुक पर खासे एक्टिव रहते हैं। उन्होंने इस किताब के अलावा ‘सुनो लद्दाख’ और ‘पैडल-पैडल भी लिख चुके हैं।
हमसफर एवरेस्ट एक ऐसे मुसाफिर का यात्रा वृतांत है। जो दिल्ली से मोटर साइकिल से शुरू होता है और नेपाल होते हुये एवरेस्ट बेसकैंप तक पहुंचता है। इस किताब में बारीकी से हर दिन और मिनट की चर्चा है। मतलब कि कहां-कहां रूके, कहां गये, क्या खाया? सबसे बड़ी बात हर जगह की कीमत दी हुई थी। लेखक कोई बड़े साहित्यक नहीं हैं न ही किताब में बनने की कोशिश करते हैं। वे अपनी यात्रा को सीधे-सीधे समझाते हैं और बताते हैं। उनके दिमाग में उस समय क्या चल रहा था। उसको भी किताब में उकेर देते हैं।
अगर किसी को एवरेस्ट या बेस कैंप तक जाना है तो ये किताब वाकई बहुत ही उपयोगी है। लेकिन सुंदरता और लेखन के हिसाब से पढ़ेंगे तो बोर हो उठेंगे। शुरूआत में आप बोर भी हो सकते हैं क्योंकि उसमें पहाड़ नहीं मिलता, नेपाल नहीं मिलता। लेखक गाड़ियों से हमें उत्तर प्रदेश ले जाते हैं यानि कि किताब की शुरूआत थोड़ी लंबी है लेकिन नेपाल में आने के बाद किताब आपको बांधने लगती है। इसमें जानकारी तो होती ही है और लेखनी भी ऐसी होती है जो आपको अच्छी लगती है।
किताब में छब्बीस दिनों की कहानी है जिसमें बीस दिनों में एवरेस्ट तक चढ़ने की बातें हैं। उसके बीच में सुंदर दृश्य और कठिनाई भी हैं जो दिमाग में घूमते रहते हैं। लेखक अपनी यात्रा को आराम से पूरा करता है और चलता जाता है। हर चीज का प्लान बनाता है कि आज यहां पहुंचना है और अगर वो पूरा नहीं होता है तो अगले दिन फिर प्लान होता है। किताब में बताया जाता है नेपाल के पहाड़ तो सुंदर हैं लेकिल लोग भारत के ही अच्छे है। भारत सस्ता और अच्छा दोनों हैं।
एवरेस्ट का रास्ता होने के कारण नेपाल महंगा है। लेकिन एक बात अच्छी थी कि होटल फ्री में मिल जाते थे लेकिन शर्त रहती थी कि खाना होटल में ही खाना पड़ेगा। अच्छा तरीका है बिजनेस चलाने का।
27 मई 2016
सुबह साढ़े छः बजे क आसपास आंख खुली। बाहर निकले तो नजारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। हो भी क्यों न? हम 4800 मीटर पर थे और आसमानों में बादलों का नाम तक नहीं था। दो चोटियों ने सारी महफिल अपने नाम कर रखी थी। एक तो यही बराबर में थी चोला-चे। इसे चोलात्से भी लिख देते हैं, लेकिन कहते चोला-चे ही हैं। 6300 मीटर पर यह चोटी बर्फ से लकदक थी। यह हमसे केवल इतनी दूर थी कि लगता कि हम तबियत से पत्थर फेकेंगे तो उससे पार परली पार जा गिरेगा।
किताब जानकारी से लदालद भरी पड़ी है। किसी को अगर नेपाल होते ही एवरेस्ट या एवरेस्ट बेस कैंप जाना है तो नक्शे से ज्यादा यह किताब महत्ववपूर्ण है। किताब पुरानी नहीं है तो आराम से पहुंचा देगी। आपको उसमें बांधे रखती है। अगर कोई घुमक्कड़ स्वभाव का है, पहाड़ों में जाना अच्छा लगता है तो उसे यह किताब बढ़िया लग सकती है। कुल मिलाकर मुसाफिरों के लिये एक मुसाफिर खाना है।
जानकारी के हिसाब से अच्छा कहा जा सकता है लेकिन कुछ कमी भी हैं जो मुझे लगी। शुरूआत कुछ ज्यादा लंबी हो गई, जिसमें लग रहा था कि ये सब है ही क्यों? पाठक के हिसाब से थोड़ा साहित्यक होना चाहिये था। पहाड़ों और दृश्यों का वर्णन अच्छे से किया जाता है तो मजा ही आ जाता। यह किताब उनको अच्छी नहीं लगेगी जा घूमते नहीं हैं या जिनको घूमना पसंद ही नहीं है।
हमसफर एवरेस्ट कुल मिलाकर एक मुसाफिर का मुसाफिर खाना है जिसने कुछ दिनों में बहुत कुछ पाया और उसे पाने में क्या-क्या कठिनाईयां आई वो सब उसने अपने मुसाफिर खाने में रखी हुई है। मैं अक्सर यही सोचता हूं कि कहीं जाने के लिये सच में प्लान बनाना चाहिये या फिर कहीं जाने के लिये साथी होना जरूरी है। मैं हमेशा से नहीं ही कहता था, अब भी कहता हूं लेकिन अगर साथी हो तो क्या खराबी है? हमसफर मुसाफिर में भी लेखक का एक साथी है जो उसके साथ हमेशा चलते ही रहता है बिल्कुल हमसफर मुसाफिर की तरह।
एवरेस्ट बेस कैंप तक का यात्रा वृतांत है इस किताब में। |
हमसफर एवरेस्ट को लिखा है नीरज मुसाफिर ने। नाम ही कह रहा है कि ये घूमते-फिरते रहते हैं। नीरज मेरठ के रहने वाले हैं। मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया है और दिल्ली में नौकरी कर रहे हैं। उसी नौकरी में से समय निकालकर भारत के हिस्सों में घूमते-फिरते रहते हैं। साल 2008 से अपनी तमाम यात्राओं के बारे में अपने ब्लाॅग में लिखते आ रहे हैं। नीरज ब्लाॅग और फेसबुक पर खासे एक्टिव रहते हैं। उन्होंने इस किताब के अलावा ‘सुनो लद्दाख’ और ‘पैडल-पैडल भी लिख चुके हैं।
हमसफर एवरेस्ट
हमसफर एवरेस्ट एक ऐसे मुसाफिर का यात्रा वृतांत है। जो दिल्ली से मोटर साइकिल से शुरू होता है और नेपाल होते हुये एवरेस्ट बेसकैंप तक पहुंचता है। इस किताब में बारीकी से हर दिन और मिनट की चर्चा है। मतलब कि कहां-कहां रूके, कहां गये, क्या खाया? सबसे बड़ी बात हर जगह की कीमत दी हुई थी। लेखक कोई बड़े साहित्यक नहीं हैं न ही किताब में बनने की कोशिश करते हैं। वे अपनी यात्रा को सीधे-सीधे समझाते हैं और बताते हैं। उनके दिमाग में उस समय क्या चल रहा था। उसको भी किताब में उकेर देते हैं।
अगर किसी को एवरेस्ट या बेस कैंप तक जाना है तो ये किताब वाकई बहुत ही उपयोगी है। लेकिन सुंदरता और लेखन के हिसाब से पढ़ेंगे तो बोर हो उठेंगे। शुरूआत में आप बोर भी हो सकते हैं क्योंकि उसमें पहाड़ नहीं मिलता, नेपाल नहीं मिलता। लेखक गाड़ियों से हमें उत्तर प्रदेश ले जाते हैं यानि कि किताब की शुरूआत थोड़ी लंबी है लेकिन नेपाल में आने के बाद किताब आपको बांधने लगती है। इसमें जानकारी तो होती ही है और लेखनी भी ऐसी होती है जो आपको अच्छी लगती है।
किताब में नेपाल-भारत की दोस्ती का जिक्र है। जिक्र है कि एवरेस्ट पर जाना भी इतना भी आसान नहीं है। सब सोचते हैं कि पहाड़ पर चढ़ना आसान है बस हमें समय नहीं मिलता है लेकिन जब आप पढ़ते हैं कि ठंड की वजह से हाथ-पैर भी कांटने पड़ते है तब पता चलता है कि ये बच्चों का खेल नहीं है। किताब में ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे कि चढ़ाई के दौरान क्या-क्या परेशानी आती है? इन परेशानियों का सामना करने वाले ही उस चढ़ाई तक पहुंच जाते हैं और जो डर जाते हैं वे बीच में ही लौट आते हैं।
किताब में छब्बीस दिनों की कहानी है जिसमें बीस दिनों में एवरेस्ट तक चढ़ने की बातें हैं। उसके बीच में सुंदर दृश्य और कठिनाई भी हैं जो दिमाग में घूमते रहते हैं। लेखक अपनी यात्रा को आराम से पूरा करता है और चलता जाता है। हर चीज का प्लान बनाता है कि आज यहां पहुंचना है और अगर वो पूरा नहीं होता है तो अगले दिन फिर प्लान होता है। किताब में बताया जाता है नेपाल के पहाड़ तो सुंदर हैं लेकिल लोग भारत के ही अच्छे है। भारत सस्ता और अच्छा दोनों हैं।
एवरेस्ट का रास्ता होने के कारण नेपाल महंगा है। लेकिन एक बात अच्छी थी कि होटल फ्री में मिल जाते थे लेकिन शर्त रहती थी कि खाना होटल में ही खाना पड़ेगा। अच्छा तरीका है बिजनेस चलाने का।
एवरेस्ट तक जाने का बढ़िया जरिया है ये किताब। |
अदना-सा अंश
27 मई 2016
सुबह साढ़े छः बजे क आसपास आंख खुली। बाहर निकले तो नजारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। हो भी क्यों न? हम 4800 मीटर पर थे और आसमानों में बादलों का नाम तक नहीं था। दो चोटियों ने सारी महफिल अपने नाम कर रखी थी। एक तो यही बराबर में थी चोला-चे। इसे चोलात्से भी लिख देते हैं, लेकिन कहते चोला-चे ही हैं। 6300 मीटर पर यह चोटी बर्फ से लकदक थी। यह हमसे केवल इतनी दूर थी कि लगता कि हम तबियत से पत्थर फेकेंगे तो उससे पार परली पार जा गिरेगा।
किताब की खूबी
किताब जानकारी से लदालद भरी पड़ी है। किसी को अगर नेपाल होते ही एवरेस्ट या एवरेस्ट बेस कैंप जाना है तो नक्शे से ज्यादा यह किताब महत्ववपूर्ण है। किताब पुरानी नहीं है तो आराम से पहुंचा देगी। आपको उसमें बांधे रखती है। अगर कोई घुमक्कड़ स्वभाव का है, पहाड़ों में जाना अच्छा लगता है तो उसे यह किताब बढ़िया लग सकती है। कुल मिलाकर मुसाफिरों के लिये एक मुसाफिर खाना है।
किताब की कमी
जानकारी के हिसाब से अच्छा कहा जा सकता है लेकिन कुछ कमी भी हैं जो मुझे लगी। शुरूआत कुछ ज्यादा लंबी हो गई, जिसमें लग रहा था कि ये सब है ही क्यों? पाठक के हिसाब से थोड़ा साहित्यक होना चाहिये था। पहाड़ों और दृश्यों का वर्णन अच्छे से किया जाता है तो मजा ही आ जाता। यह किताब उनको अच्छी नहीं लगेगी जा घूमते नहीं हैं या जिनको घूमना पसंद ही नहीं है।
हमसफर एवरेस्ट कुल मिलाकर एक मुसाफिर का मुसाफिर खाना है जिसने कुछ दिनों में बहुत कुछ पाया और उसे पाने में क्या-क्या कठिनाईयां आई वो सब उसने अपने मुसाफिर खाने में रखी हुई है। मैं अक्सर यही सोचता हूं कि कहीं जाने के लिये सच में प्लान बनाना चाहिये या फिर कहीं जाने के लिये साथी होना जरूरी है। मैं हमेशा से नहीं ही कहता था, अब भी कहता हूं लेकिन अगर साथी हो तो क्या खराबी है? हमसफर मुसाफिर में भी लेखक का एक साथी है जो उसके साथ हमेशा चलते ही रहता है बिल्कुल हमसफर मुसाफिर की तरह।
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