महात्मा गांधी के बारे में इस समय दो विचार बार-बार टकराते हैं। एक जो कहते हैं गांधी जैसा महान दूजा कोई नहीं है। दूसरा इसके विपरीत है जिसमें वे अंग्रेजों के साथ का और भगत सिंह की फांसी को वजह बता देते। गांधी महान थे इस बात में कोई संदेह नहीं है। गांधी को सबसे ज्यादा कौन जानता है? हम, जिन्होंने सिर्फ किताबों और भाषणों में गांधी को देखा है। मोहनदास को महात्मा बनते देखने वाला एक ही व्यक्ति है, कस्तूरबा गांधी।
कस्तूरबा गांधी की डायरी में महात्मा गांधी की वो बातें हैं जिसको पढ़कर महात्मा गांधी के बारे में एक अलग सी जानकारी मिलती है। जो बा के हर कदम-कदम की कहानी है। जिसके हर फेस में महात्मा गांधी हैं। कस्तूरबा ने वो रात देखी जब हताशा से गांधी रो रहे थे, एक कठोर पिता और पति बनते देखा है और फिर देश की आजादी के लिये हर पल-पल लड़ते रहे।
इस किताब की लेखिका हैं नीलिमा डालमिया आधार। नीलिमा ने दिल्ली के काॅन्वेंट स्कूल से स्कूलिंग की और मनोविज्ञान से मास्टर्स किया। नीलिमा ने 2003 में फादर डियरेस्टः द लाइफ एंड टाइम्स आॅॅ आर के डालमिया लिखी। जो उस साल बेस्टसेलर किताबों में शामिल हो गई। उसके बाद 2007 में मर्चेंट्स आॅफ डेथ लिखी। ‘कस्तूरबा की रहस्मयी डायरी’ किताब का हिन्दी अनुवाद शुचिता मीतल ने किया है।
किताब शुरू होती है एक तारीख से, एक कमरे से। जो अगरबत्ती की खुशबू से भरा रहता है। उस कमरे में कई लोग जमा हैं लेकिन दो बुत ऐसे हैं जिन्होंने कई साल एक साथ बिताये हैं। एक शरीर जो सफेद कपड़े में लपेटा जा चुका है और दूसरा जो उसे अपना फैसला न सुना सका।
कहानी अचानक से पीछे चली जाती है। जब एक तरफ एक लड़की का जन्म होता है और कुछ सालों बाद उसी लड़की के पति का। जो आगे चलकर अपने कई फैसले उस पर थोप देता है और दुनिया के सामने महान बन जाता है। ये कस्तूरबा गांधी की डायरी है जो सिर्फ कस्तूरबा गांधी की डायरी नहीं है। इसमें महात्मा गांधी की महानता की बात भी है, उनका संघर्ष और परिवार के प्रति दिखता कठोर रूप। इसमें एक बेटे की कहानी भी है जो बापू जैसा होने के कारण बापू का आलोचक बना।
इस डायरी में शुरूआती जीवन गांधी का बिल्कुल सामान्य ही था। जो टूटने पर अपनी पत्नी के सामने रोता था, जिसे बस पैसे कमाने थे। उन्हीं दिनों महात्मा अफ्रीका गये और पढ़कर लौटे। वे अपनी पत्नी पर नियंत्रण रखना चाहते थे। जो उनके पितृसत्तामक बनने की शुरूआत थी। ये तब तक चलता रहा, जब तक आगा खां के महल में कस्तूरबा गांधी की मृत्यु नहीं हो गई।
अचानक महात्मा गांधी समाज के कल्याण में लग जाते हैं और यही सादापन उनको महानता की ओर ले जाता है। लेकिन उनका सादापन उनके तक सीमित नहीं था। वो पूरे परिवार, समाज पर लागू कर देते। ये नियम एक प्रकार से थोपे गये होते हैं जिनकी पीठ पीछे बुराई की जाती। वही सादापन उनको बेटों के प्रति कठोर बना देता। वे अपने बेटों को पढ़ाने के लिए स्कूल नहीं भेजते और उसी कठोरता का नाशक बना, बड़ा बेटा हरिलाल। कठोर पिता का एक और किस्सा है जब गांधीजी को पता चला कि उनका बेटा प्रेम में है तो उन्होंने उसे 12 साल के लिए आश्रम से निकाल दिया।
पूरी किताब गांधी को महान बताती आई। लेकिन समाज से एक अलग रूप उनका परिवार के प्रति दिखता, एकदम कठोर। अपने बेटों और पत्नी के लिख पत्र बताते कि अब उनकी लेखनी और दिल निष्ठुर हो चुके हैं। महात्मा गांधी बाल विवाह के विरोधी तो दिखते हैं लेकिन दूसरी जाति के विवाह की बात आती है तो उनमें एक अलग सा गुस्सा दिखाई पड़ता है।
महात्मा गांधी एक महापुरूष थे। जिन्होंने देश और देशवासियों के भले के लिए अपना और अपने परिवार का जीवन न्यौछावर कर दिया। एक समय तो ऐसा था जब पूरा गांधी परिवार जेल में था। महात्मा गांधी ने अफ्रीका जाकर अपने देशवासियों के लिए लड़ाई लड़ी। वे चाहते पैसे कमाकर देश वापिस लौट सकते थे। लेकिन वहीं सीढ़ी तो उनको महानता के पायदान पर ले गई।
जब उनका बेटा उनको गाली दे रहा था। तब वे एक तरफ रात को उसका दुख मनाते और सुबह देश की आजादी के लिए लग जाते। ये किताब गांधी से ज्यादा कस्तूरबा गांधी के संघर्ष की कहानी है। जो एक कमरे से निकलकर जेल गईं और पित्तसत्तामक वाली धारणा को तोड़कर रख दिया। गांधीजी एक अच्छे पति नहीं बन सके लेकिन बा एक अच्छी पत्नी भी थीं और उम्दा समाजसेविका।
किताब की खूबी इसकी लेखनी है। एक अलग सा ही धारा प्रवाह है, जो आपको पढ़ने पर मजबूर कर देता है। एक समालोचना के तहत इस किताब को लिखा गया है। वो भाव लेखिका पाठक तक पहुंचाना चाहती हैं। उसे आराम से पाठक खुद पर हावी होते पा सकता है। 550 पेज की मोटी किताब आपको आगे बढ़ने पर मजबूर कर ही देती है। किताब सिर्फ एक ही पक्ष नहीं बताती है, सारे पक्षों पर ध्यान देकर लिखा गया है।
रुकिए! मैं भीड़ वाला भाग देखती हूं। मैं गोडसे को ग्रे टी शर्ट और ढीली-ढीली पैंट पहने देखती हूं जिसका एक हाथ जेब में है। मैं उसके बैरेटा का सेफ्टी कैच रिलीज होने का क्लिक सुनती हूं। यह मानव दीवार से कुल दो कदम दूर है। दो सेकेंड में ही वह करीब आ जाता है। मनु भी उसी देखती है। उसे लगता है वो भी भीड़ का ही भक्त है। उसने उसे छिपे हुए बेरेटा पर उसकी उंगलियों की गिरफ्त मजबूत करते नहीं देखा है।
कस्तूरबा गांधी पर ये किताब शानदार है जो दर दर बढ़ती है और चरम पर ले जाती है। जो हमें महात्मा गांधी के कई रूपों से मिलाती है। एक खराब पति और पिता के रूप में, एक अच्छे देशभक्त के रूप में। किताब में कस्तूरबा हर बात अपने ही नजरिये से बताती हैं। वे महात्मा गांधी की छाया बनी रहती हैं अंत तक। जब तक वे गोडसे की गोली से गिरकर हे राम नहीं बोल देते। महात्मा गांधी महान बन पाये क्योंकि उनके साथ बा थीं।
किताब- कस्तूरबा की रहस्मयी डायरी
लेखिका- नीलिमा डालमिया आधार
अनुवाद हिंदी- शुचिता मीतल
प्रकाशन- वैस्टलैंड पब्लिकेशन लिमिटेड।
कस्तूरबा गांधी की डायरी में महात्मा गांधी की वो बातें हैं जिसको पढ़कर महात्मा गांधी के बारे में एक अलग सी जानकारी मिलती है। जो बा के हर कदम-कदम की कहानी है। जिसके हर फेस में महात्मा गांधी हैं। कस्तूरबा ने वो रात देखी जब हताशा से गांधी रो रहे थे, एक कठोर पिता और पति बनते देखा है और फिर देश की आजादी के लिये हर पल-पल लड़ते रहे।
किताब की लेखिका। |
किताब के बारे में
किताब शुरू होती है एक तारीख से, एक कमरे से। जो अगरबत्ती की खुशबू से भरा रहता है। उस कमरे में कई लोग जमा हैं लेकिन दो बुत ऐसे हैं जिन्होंने कई साल एक साथ बिताये हैं। एक शरीर जो सफेद कपड़े में लपेटा जा चुका है और दूसरा जो उसे अपना फैसला न सुना सका।
कहानी अचानक से पीछे चली जाती है। जब एक तरफ एक लड़की का जन्म होता है और कुछ सालों बाद उसी लड़की के पति का। जो आगे चलकर अपने कई फैसले उस पर थोप देता है और दुनिया के सामने महान बन जाता है। ये कस्तूरबा गांधी की डायरी है जो सिर्फ कस्तूरबा गांधी की डायरी नहीं है। इसमें महात्मा गांधी की महानता की बात भी है, उनका संघर्ष और परिवार के प्रति दिखता कठोर रूप। इसमें एक बेटे की कहानी भी है जो बापू जैसा होने के कारण बापू का आलोचक बना।
इस डायरी में शुरूआती जीवन गांधी का बिल्कुल सामान्य ही था। जो टूटने पर अपनी पत्नी के सामने रोता था, जिसे बस पैसे कमाने थे। उन्हीं दिनों महात्मा अफ्रीका गये और पढ़कर लौटे। वे अपनी पत्नी पर नियंत्रण रखना चाहते थे। जो उनके पितृसत्तामक बनने की शुरूआत थी। ये तब तक चलता रहा, जब तक आगा खां के महल में कस्तूरबा गांधी की मृत्यु नहीं हो गई।
एक कठोर पिता
अचानक महात्मा गांधी समाज के कल्याण में लग जाते हैं और यही सादापन उनको महानता की ओर ले जाता है। लेकिन उनका सादापन उनके तक सीमित नहीं था। वो पूरे परिवार, समाज पर लागू कर देते। ये नियम एक प्रकार से थोपे गये होते हैं जिनकी पीठ पीछे बुराई की जाती। वही सादापन उनको बेटों के प्रति कठोर बना देता। वे अपने बेटों को पढ़ाने के लिए स्कूल नहीं भेजते और उसी कठोरता का नाशक बना, बड़ा बेटा हरिलाल। कठोर पिता का एक और किस्सा है जब गांधीजी को पता चला कि उनका बेटा प्रेम में है तो उन्होंने उसे 12 साल के लिए आश्रम से निकाल दिया।
पूरी किताब गांधी को महान बताती आई। लेकिन समाज से एक अलग रूप उनका परिवार के प्रति दिखता, एकदम कठोर। अपने बेटों और पत्नी के लिख पत्र बताते कि अब उनकी लेखनी और दिल निष्ठुर हो चुके हैं। महात्मा गांधी बाल विवाह के विरोधी तो दिखते हैं लेकिन दूसरी जाति के विवाह की बात आती है तो उनमें एक अलग सा गुस्सा दिखाई पड़ता है।
महात्मा गांधी महान
महात्मा गांधी एक महापुरूष थे। जिन्होंने देश और देशवासियों के भले के लिए अपना और अपने परिवार का जीवन न्यौछावर कर दिया। एक समय तो ऐसा था जब पूरा गांधी परिवार जेल में था। महात्मा गांधी ने अफ्रीका जाकर अपने देशवासियों के लिए लड़ाई लड़ी। वे चाहते पैसे कमाकर देश वापिस लौट सकते थे। लेकिन वहीं सीढ़ी तो उनको महानता के पायदान पर ले गई।
जब उनका बेटा उनको गाली दे रहा था। तब वे एक तरफ रात को उसका दुख मनाते और सुबह देश की आजादी के लिए लग जाते। ये किताब गांधी से ज्यादा कस्तूरबा गांधी के संघर्ष की कहानी है। जो एक कमरे से निकलकर जेल गईं और पित्तसत्तामक वाली धारणा को तोड़कर रख दिया। गांधीजी एक अच्छे पति नहीं बन सके लेकिन बा एक अच्छी पत्नी भी थीं और उम्दा समाजसेविका।
किताब की खूबी
किताब की खूबी इसकी लेखनी है। एक अलग सा ही धारा प्रवाह है, जो आपको पढ़ने पर मजबूर कर देता है। एक समालोचना के तहत इस किताब को लिखा गया है। वो भाव लेखिका पाठक तक पहुंचाना चाहती हैं। उसे आराम से पाठक खुद पर हावी होते पा सकता है। 550 पेज की मोटी किताब आपको आगे बढ़ने पर मजबूर कर ही देती है। किताब सिर्फ एक ही पक्ष नहीं बताती है, सारे पक्षों पर ध्यान देकर लिखा गया है।
किताब का अंश
रुकिए! मैं भीड़ वाला भाग देखती हूं। मैं गोडसे को ग्रे टी शर्ट और ढीली-ढीली पैंट पहने देखती हूं जिसका एक हाथ जेब में है। मैं उसके बैरेटा का सेफ्टी कैच रिलीज होने का क्लिक सुनती हूं। यह मानव दीवार से कुल दो कदम दूर है। दो सेकेंड में ही वह करीब आ जाता है। मनु भी उसी देखती है। उसे लगता है वो भी भीड़ का ही भक्त है। उसने उसे छिपे हुए बेरेटा पर उसकी उंगलियों की गिरफ्त मजबूत करते नहीं देखा है।
कस्तूरबा गांधी पर ये किताब शानदार है जो दर दर बढ़ती है और चरम पर ले जाती है। जो हमें महात्मा गांधी के कई रूपों से मिलाती है। एक खराब पति और पिता के रूप में, एक अच्छे देशभक्त के रूप में। किताब में कस्तूरबा हर बात अपने ही नजरिये से बताती हैं। वे महात्मा गांधी की छाया बनी रहती हैं अंत तक। जब तक वे गोडसे की गोली से गिरकर हे राम नहीं बोल देते। महात्मा गांधी महान बन पाये क्योंकि उनके साथ बा थीं।
किताब- कस्तूरबा की रहस्मयी डायरी
लेखिका- नीलिमा डालमिया आधार
अनुवाद हिंदी- शुचिता मीतल
प्रकाशन- वैस्टलैंड पब्लिकेशन लिमिटेड।
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