Thursday, 31 January 2019

चौरासीः उस सन्नाटे भरी रात में उस शहर से प्रेम और विश्वास छिटक गया

हर शहर की एक अपनी कहानी होती है, हर शहर कुछ कहता है। लोग उनको किस्सों में याद रखें या न रखें पर शहर अपनी कहता रहेगा। कभी वो कहानी प्यार की होगी तो कभी कोई तारीख होगी जिसे शहर याद करता रहेगा। सत्य व्यास की ‘चौरासी’ एक शहर की कहानी है जिसमें दो प्रेमियों की जुगलबंदी है, मनाना-रूठना है और स्वच्छंद प्यार है।


चौरासी से याद आता है 1984। जब एक घटना ने पूरे देश को तोड़ दिया था। उसी चौरासी के प्रभाव में स्टील प्लांट शहर बोकारो भी आ जाता है। इस किताब में  उसी बोकारो ने अपनी कहानी खुद बताई है जिसमें प्यार से लेकर वो क्रूरता, निर्दयता है। जिसके ख्याल से आप खिन्न हो उठेंगे। चौरासी, वो साल जिसने एक अपने ने, दूसरे अपने का विश्वास खो दिया था।

सत्य व्यास मूल रूप से बलिया उत्तर प्र्देश के रहने वाले हैं। आज की पीढ़ी के सबसे पढ़े जाने वाले लेखकों में से एक। सत्य व्यास अपनी पहली किताब ‘बनारस टाॅकीज’ से ही चर्चा में आ गये थे। दिल्ली दरबार के बाद, चौरासी उनकी कलम से निकली तीसरी किताब है। उनकी लेखनी में गजब का जादू है जो पाठक में एक जुड़ाव बनाये रखती है। चौरासी में पहली बार उन्होंने उस मजाकिया और भदेस अंदाज को छोड़ा है। जो बनारस टाॅकीज और दिल्ली दरबार में दिखा था।

चौरासी 


शहर है बोकारो। दौर है चौरासी का। उसी शहर में ऋषि पंजाबी किराएदार के यहां रहता है। उनकी लड़की भी है, मनु। लड़का जो पूरे शहर पर तो रौब जमाता है लेकिन लड़की के सामने फुस्स हो जाता है। मनु, ऋषि की ऐसी गलती पकड़ लेती है। जिस पर वह कुछ भी करवा सकती है। अगले दिन से ऋषि हर रोज मनु के घर जाता और ट्यूशन पढ़ाने की हाजिरी लगाता।

कहानी चौरासी  की है लेकिन घूमती ऋषि और मनु के बीच ही है। एक और किरदार होता है मकान मालिक छावड़ा, जो मनु के पिता भी हैं। ऋषि और मनु के बीच रोज का मिलना और ख्याल रखना, उनके बीच एक नये एहसास के बीज बो देता है।

वो एहसास प्रेम में बदल जाता है और प्रेम शरारतों में बदल जाता है। दुनिया से छुपकर प्रेम की सारी कलाएं दोनों बिखरते हैं। कभी कबूतर उड़ाने के बहाने तो कभी छठ की पूजा के बहाने। दोनों की गलबगियों के बीच स्वर्ण मंदिर पर हमले की खबरें आती रहती हैं। जिससे छावड़ा जी तो परेशान हो जाते हैं लेकिन वो प्रेमी-जोड़े नहीं जिन्हें दुनिया से मतलब ही नहीं था। वो तो अपने प्यार में घुल-मिल रहे थे। उसके बाद किताब का पन्ना पलटता है जिसमें अखबार की एक खबर लगी होती है और तारीख दर्ज होती है, 31 अक्टूबर 1984।

कहानी में मोड़ आता है और जो एक रात लेकर आता है। बस वो रात हिंदुओं और सिखों को अलग कर देती है। एक भीड़ जो सिखों को नोच-खा रही थी, जो अचानक से निर्दयी हो गई थी। उनके हाथों में हथियार नहीं था लेकिन एक शैतान था जो बदला लेने की बात कर रहे थे। वो सड़कों पर निकल आये, घरों में घुसने लगे और लोगों को जलाने-मारने लगे और उसकी शुरूआत हुई गुरनामे से। वो बोकारो शहर खून से लाल होने लगा जो सुबह तक हंस रहा था।


कहानी अपनी निर्ममता पर आ जाती है और एक प्रेमी को मजबूर होकर भीड़ में शामिल कर देती है। ऋषि को अपने परिवार को बचाना था। उसका परिवार मनु थी। उस प्यार के लिए वो उन दंगई में शामिल हो गया। वो रात भर घूमता रहा एक राॅड लेकर जिसने अपने सामने ही कितने को ही जलते देखा। वो लंबी रात जब खत्म हुई थी तो काफी कुछ बदल चुका था। उसके बाद बोकारो न मनु का रहा और न ऋषि का।

प्रेम और भीड़ की क्रूरता के बाद कहानी का तीसरा और आखिरी पड़ाव भी है। मनु और ऋषि के बिछड़ने का और फिर उसके गम में रोने का। पाने के लिए भरसक कोशिश करना और बदनाम होना। आखिर में एक झोंका आता है। जो मनु और ऋषि को कहीं दूर ले जाता है।

किताब की खूबी


किताब की सबसे बड़ी खूबी है इसकी कहानी। जब आप प्रेम के पड़ाव में होंगे तो आप दर-दर मुस्कुराएंगे लेकिन फिर वो रात का दौर आता है जिसे पढ़कर मन खिन्न-खिन्न होने लगता है, कुलबुलाहट होने लगती है और मन कह रहा होता है ‘जल्दी सुबह हो जा’। इसके अलावा शब्द और वाक्य बड़े मजेदार हैं, कुछ तो प्रेम के डायलाॅग हैं। किताब में बार-बार बताया जाता है प्रेम से सीखना।

कुछ अंश ‘चौरासी’ से


साले गद्दार! राज करेंगे! सुन बे! पगड़ी खोल साले की। चीखते हुए तीसरे ने सुक्खा की पगड़ी खोलनी शुरू कर दी। सुक्खा में प्रतिरोध करने की शक्ति भी नहीं बची थी। उसने सुक्खा की पगड़ी उसक गले में ही बांध दी और दूसरा सिरा बस के पीछे बांधकर चला दी। दस फर्लांग चलने के बाद बस पीपल के पेड़ से टकराकर रूक गई। सुक्खा मर गया। वह घिसनटने के पहले मरा या बाद में मरा; यह जानने में किसी की भी दिलचस्पी नहीं थी। न ही फायदा। फायदा बटुए में था जिसका नुकसान हो चुका था।

सत्य व्यास की ये किताब लेखनी और कहानी में अव्वल है। ‘बनारस टाॅकीज’ और ‘दिल्ली दरबार’ अलग विषय की कहानी थी। जिसमें प्यार और दोस्ती थी। उसको अलग तरीके से लिखा गया था लेकिन ‘चौरासी’ एक अलग कहानी है। ये उस दौर के प्रेम की, डर की और सन्नाटे की कहानी है जो एक रात में पसर गया था। लेखक ने उस समय के हालात से हमें रूबरू कराया। लेखक की ये कहानी पहले प्रेम से रौनक लाती है और फिर क्रूरता से कुलबुलाहट करने की कोशिश करते हैं। कहानी का अंत ऐसा है कि पढ़ने वाला आगे के बारे में अंदाजा लगाएगा। मानो लेखक ने पाठक पर छोड़ दिया हो जो अच्छा लगे वो रख लो।

बुक- चौरासीलेखक- सत्य व्यासप्रकाशन- हिंद युग्म।



No comments:

Post a Comment