Thursday, 31 January 2019

नेताओं के पीछे नारे लगाने वाले गुम हो जाते हैं, बस ऐसी ही है ‘जनता स्टोर’

राजनीति पर काफी कुछ कहा जाता है और कहा गया है। राजनीति पर किस्से भी बहुत लिखे गये हैं लेकिन किताब वाली कहानी कम ही गढ़ी गई है। जो राजनीति का हर पैंतरा करीब से बताए, हर तोड़-मोड़ को सही बिठाये। ये सब बताने के लिए एक किताब आई है- जनता स्टोर।

जनता स्टोर राजस्थान की युवा राजनीति पर एक उपन्यास है। जो काफी चक्कर लगाती है, हर सीन में सिर्फ राजनीति ही घुली होती है। चाहे दोस्त के लिए लड़ाई हो या प्यार का कोई किनारा। ये गली के नुक्कड़ से, सीएम के दफ्तर तक की कहानी को बयां करती है।
इस किताब को लिखा है नवीन चौधरी ने। नवीन चौधरी मधुबनी बिहार में पैदा हुये। लेकिन परवरिश और पढ़ाई जयपुर में हुई। उसी दौरान छात्र राजनीति को बड़े करीब से देखा और उसी को माध्यम बनाकर एक बेहतरीन किताब लिख डाली। पेशे से मार्केटिंग हेड नवीन चौधरी को फोटोग्राफी और व्यंग्य लेखन का भी शौक है। इनके लेखन को इनके ब्लाॅग ‘हिंदीवाला ब्लाॅगर’ पर पढ़ सकते हैं।


किताब की कहानी

किताब में छात्र राजनीति है लेकिन राजनीति में छात्र ऐसे ही नहीं घुसते। एक टर्निंग प्वाइंट होता है जो कुछ लड़कों को राजनीति में धकेल ले जाता है। कहानी बस उन्हीं लड़कों के माध्यम से चलने लगती है। कहानी में बहुत सारे किरदार हैं और सब के सब राजनीति के मोहरे। सब अपना फायदा देखते हैं। राजनीति को बिना तले का लोटा कहा गया है वो इस कहानी में बखूबी दिखाई देता है।
कहानी दो एंगलों से चलनी शुरु होती है। एक नजरिया होता है छात्रों की तरफ से और दूसरा नजरिया, राज्य की मुख्य राजनीति का। इसलिए ये कहना गलत है कि ये सिर्फ छात्र राजनीति की कहानी है। ये कहानी राजनीति की धरा है जिसमें छात्र भी किरदार है और नेता भी।
कहानी तारीख बदलते ही किस्सा बदल लेती है। लेकिन बाद में किस्से और तारीख एक होने लगते हैं और राजनीति की चालें भी। कहानी में चुनाव होते हैं और उन्हीं चुनाव के लिए रणनीति बनने लगती है। कुर्सी का मोह इस कहानी से अच्छी तरह समझा जा सकता है। हर दिन नई चालें और हर दिन हार-जीत के गठजोड़। कहानी पढ़ते हुये लगता है कि सबसे मजबूत मयूर का पक्ष रखा जा रहा है लेकिन कहानी बढ़ने के साथ ही उसका असल पक्ष समझ में आता है।
कहानी में सबसे ज्यादा जोर जाति पर ही दिया गया है। जाति के लिए ही हर किस्से को गढ़ा गया। हर कोई जाति को वोट बैंक बनाने के लिए दौड़ता है। ऐसा लगता है कि कहानी और वास्तविक राजनीति यही है। कहानी कुछ इस तरह लिखी गई है कि पढ़ने के साथ आप उसमें डूबने लगते हैं, एक सस्पेंस आपको आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करता है। कहानी में जब-जब मयूर के साथ गलत होता है लगता है पाठक के साथ भी गलत हो रहा है।
लेखक ने कहानी के दृश्यों को अच्छी तरह से दिखाया है। उसे पढ़कर हर किरदार को समझा जा सकता है। पढ़ते-पढ़ते मयूर से लेकर सिकंदर बेनीवाल तक सब किरदार हमारे मन में बैठने लगते हैं। कहानी का अंत चौंकाने वाला है। कहानी अंत में किरदारों से सपोलों में बदल जाती है। जिसके लिए कहानी शुरु हुई थी हर किरदार वो सब पाकर भी कुछ नहीं पा पाता। कहानी खत्म हो जाती है और नेता के पीछे नारे लगाने वाले गुम हो जाते हैं।

हर बात राजनीति

जनता स्टोर कहती है कि राजनीति में सिर्फ राजनीति होती है। आपका कुछ पर्सनल नहीं होता। आप चाहे प्यार कर लो या दोस्ती। आपका प्यार भी राजनीति बन जायेगा और दोस्ती भी। किताब में हर व्यक्ति राजनीति ही करते नजर आयेगा। एक लाइन में कहें तो अपने से आगे वाले को पीछे धकेलना ही राजनीति है। कहानी में ढेर सारे किरदार होने के बाद भी, पाठक कहीं उलझता नहीं है क्योंकि सारे किरदार आपसें में जुड़े ही रहते हैं।

किताब से कुछ

चुनाव हारने के बाद मयूर को इतना सदमा लगा कि वह बीमार हो गया। एक हफ्ते तक घर से नहीं निकला और न ही हम लोगों से बात की। हम बीच में मिलने गए तो ऐसा लगा, जैसे रो देगा। देवदास भी पारो के गम में इतना उदास नहीं हुआ, जितना मयूर चुनाव से। एक हफ्ते बाद जब वो घर से बाहर आया तो रोज हम सबको लेकर किसी-न-किसी थियेटर में फिल्म देखने जाता। तीन दिन के अंदर थियेटर में लगी सभी फिल्में देख डालीं।

किताब की खूबी

किताब की खूबी इसकी कहानी के फ्लो में है। जो आपको बांधे रखती है। किताब का कोई न कोई किरदार पाठक को प्रभावित करेगा। बतौर पाठक मेरे लिए वो किरदार मयूर है। कहानी का उतार-चढ़ाव भी कहानी की ताकत बन जाता है। कहानी में मैं इस तरह बंधा था कि मैं हर रोज मेट्रो में किताब को पढ़ता और फिर मेट्रो में पहुंचने के वक्त का इंतजार करता। इसलिए क्योंकि जनता स्टोर मेरा इंतजार कर रहा होता है।
इस किताब को वो पाठक पढ़ना पसंद करेंगे जो राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं, खासकर छात्र राजनीति वाले। जो राजनीति से इत्तेफाक नहीं रखते वो भी पढ़ सकते हैं क्योंकि अच्छी किताब पढ़ते रहना चाहिए। इस किताब को वो लोग भी पढ़ सकते हैं जिन्हें अमूमन हिंदी की किताबों में दिलचस्पी नहीं होती। इसकी खास वजह है कि किताब की भाषा आम बोलचाल की भाषा है। जिसे समझने में आपको दिक्कत नहीं आयेगी।
राजनीति पर कहानी के रूप में एक बेहतरीन किताब है, जनता स्टोर। इसे पढ़ा जाना चाहिए। कहानी बोरिंग वाली बिल्कुल नहीं है। एक बार पढ़ने पर आप कहानी के अंत तक जरुर जाना चाहेंगे। ये शायद लेखक की खूबी है कहानी राजनीति पर होते हुए भी बेहतरीन तरीके से लिखी गई है। जिससे पाठक मोबाइल में उंगली सरकाने की बजाय, किताबों के पन्नों पर सरकायें।

किताब- जनता स्टोर,
लेखक- नवीन चैधरी,
प्रकाशक- फंडा(राधाकृष्ण का उपक्रम)

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