मुझे यात्रा का विवरण तभी पसंद आता है। जब उसके शब्द मुझे उसी यात्रा पर ले चलें, जिन पर वो घंटो चलता रहा है। मुझे भी उसी उमड़-घुमड़ गलियों के चक्कर लगाये और वो अपने मन की परतें खोल कर रख दे। ऐसा यात्रा विवरण कुछ आर्टिकलों में मिल जाता है लेकिन घुमक्कड़ अपनी कलम में वो जादू किताब में नहीं दिखा पाते। ‘इनरलाइन पास’ किताब ऊपर लिखी सारी बातों पर फिट बैठती है। इनरलाइन पास एक बेहतरीन यात्रा का रोमांच भरा विवरण है जो आपको शब्दों से अपने कैमरे की ओर खींच लेता है।
इस किताब के लेखक हैं उमेश पंत। उमेश पंत उत्तराखंड के रहने वाले हैं। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर से मास कम्युनिकेशन में एम.ए. किया। उमेश ने मुंबई की बालाजी टेलीफिल्म्स में बतौर एसोसिएट राइटर काम किया। उन्होंने रेडियो पर कहानी सुनाने वाले नीलेश मिसरा के लिए कहानी भी लिखीं। ग्रामीण अखबार गांव कनेक्शन के लिए लेखन कार्य करते रहे। उनकी ‘गुल्लक’ नाम की एक बेबसाइट भी है और हाल ही ‘यात्राकार’ नाम की बेबसाइट चला रहे हैं। जिसमें घुमक्कड़ों के यात्रा वृतांत पढ़े जा सकते हैं।
इनरलाइन पास में उमेश पंत का एक यात्रा विवरण है। विवरण मैदानी इलाके से पहाड़ी की चोटी तक पहुंचने का विवरण। लेकिन इसे सिर्फ यात्रा वृतांत या विवरण नहीं कहा जा सकता। ये तो अनुभव की एक श्रृंखला है जो मैदानी इलाके से होकर पहाड़, गलियारों, बुग्यालों में मिलते हैं। उसी अनुभव को लेखक ने इनरलाइन पास में रखा है। आदि कैलाश की यात्रा का एक बेहतरीन एहसासों वाला विवरण है जो लेखक के साथ-साथ विचरण करता है।
अपनी 200 किमी. की पैदल यात्रा का हर अनुभव, हर चित्र अपनी एहसासों से भर देते। उनकी इस यात्रा के बीच कई कहानियां भी हैं। इसमें एक मां की अपनी बेबसी की कहानी है, एक फौजी की मजबूरी की कहानी है और एक बाप भी है जो अपने बच्चे के भविष्य को सुरक्षित करना चाहता है। शुरूआती सफर में लेखक अपने घुमक्कड़पने की बातें करते हैं, अपने बारे में बताते हैं, शहर के बारे में बताते हैं और फिर जहां जैसी जगह मिले चल पड़ते हैं।
किताब का पहला पड़ाव बड़ा आसान सा दिखता है। जिसमें पहाड़ों की खूबसूरती है, वो हरे-भरे बुग्याल हैं जो सफर की थकान दूर कर देते हैं, रास्ते में मिलते नए चेहरे हैं जो अपने में एक कहानी लेकर बैठे हैं। ऐसे ही कुछ बातों और खुशफहमी के साथ वो आदि कैलाश की बर्फ वाली पहाड़ देखते हैं। जो बिल्कुल स्वर्ग के समान है, जहां इंसान तो नहीं रहते लेकिन रहती है इस प्रकृति की झलक।
लेखक के लिए वो रात सबसे लंबी और दर्दनाक थी। जब उनको एक सुनसान जंगल में गुजारनी पड़ी। ठंड, बारिश और उनका बदन सब उस दास्तां के गवाह थे। पहले जिस लेखक को प्रकृति में रस, सुन्दरता नजर आ रही थी। अब वो बस उस जगह से निकलने की सोच रहा था, वो नई सुबह का इंतजार कर रहा था। वहां से निकलने के बाद किताब अब डर और हिम्मत की लड़ाई के बीच चलने लगी थी। ये लड़ाई खत्म हुई धारचूला में जाकर, जहां सब शांत था प्रकृति भी और लोग भी।
चलो इस नदी के स्त्रोत की तरफ चलते हैं। हो सकता है किसी जगह पर यह संकरी हो और हमें फांदकर पार करने का मौका मिल जाए। हमारे दिमाग में आया यही ख्याल हमें सबसे मुफीद जान पड़ा। अपने बैग उठाए और नदी के किनारे-किनारे उस पहाड़ी पर चढ़ने लगे जहां से वो नदी आती हुई दिख रही थी।
कुछ देर में हम नदी के एक किनारे एक पहाड़ी पर खड़े थे और अंदाजा लगा रहे थे कि कहां से कहां कूदकर हम नदी पार कर सकते हैं। जितनी देर में हम तय करते कि यहां से यहां कूदेंगे और फिर यहां से यहां। उतनी देर में नदी उस यहां का अस्तित्व मिटा देती। ऐसा लग रहा था कि वो हमारे मनुष्य होने का मजाक उड़ा रही हो। मैं अपने पर आ गई तो तुम्हारी कोई औकात नहीं।
किताब की खूबी उसकी भाषा है जो सीधे-सीधे चलते हुए भी सीधी नहीं होती। लेखक हर वक्त-बेवक्त कुछ न कुछ बताता रहता है। वो सफर के छोर से लेकर, हर संभावना पर बात करता है। उसके यही भाषा और शब्द पाठक को बांधने में एक आकर्षण ला देते हैं। इसके अलावा किताब जानकारी से भरी हुई है। अगर आपको आदि कैलाश जाना है तो इस किताब को साथ में रख लेना चाहिए।
इस किताब को कौन पढ़े? जो घुमक्कड़ हैं, जो घूमने की सोच रहे हैं, जिन्हें घूमना पसंद है उन सबके लिए ये किताब है। इस किताब को पढ़कर एकबारगी लगेगा जाना चाहिए फिर ख्याल आयेगा कि कहीं हम जंगल में फंस गये तो?
इनरलाइन पास, उमेश पंत की एक बेहतरीन किताब है। मैंने अभी तक पहाड़ों के यात्रा वृतांत की किताबें पढ़ी हैं। उसमें सबसे अच्छी किताब मुझे यही लगी। इस किताब ने मुझे अपने में ऐसा बांधा कि एक बार किताब शुरू की तो लगातार घंटों पढ़ता रहा और उस सफर के अंत के साथ ही किताब पूरी की। किताब का लेखक पत्रकार है, कहानी भी लिखता है। शायद इसलिए किताब को बेहतरीन ढंग से लिख पाया, बिल्कुल एक कहानी की तरह।
लेखकः उमेश पंत। |
इनरलाइन पास
इनरलाइन पास में उमेश पंत का एक यात्रा विवरण है। विवरण मैदानी इलाके से पहाड़ी की चोटी तक पहुंचने का विवरण। लेकिन इसे सिर्फ यात्रा वृतांत या विवरण नहीं कहा जा सकता। ये तो अनुभव की एक श्रृंखला है जो मैदानी इलाके से होकर पहाड़, गलियारों, बुग्यालों में मिलते हैं। उसी अनुभव को लेखक ने इनरलाइन पास में रखा है। आदि कैलाश की यात्रा का एक बेहतरीन एहसासों वाला विवरण है जो लेखक के साथ-साथ विचरण करता है।
लेखक ने इसमें सिर्फ ये नहीं बताया कि मैं कहां था, कैसे पहुंचा? उन्होंने तो एक वक्त को थामकर पूरी यात्रा बताई है। मानों अपने हर एक कदम की जानकारी हमें दे रहे हों। वे जो देख रहे थे और जो सोच रहे थे उस सब को इस किताब मेें वे रखते गये हैं।
अपनी 200 किमी. की पैदल यात्रा का हर अनुभव, हर चित्र अपनी एहसासों से भर देते। उनकी इस यात्रा के बीच कई कहानियां भी हैं। इसमें एक मां की अपनी बेबसी की कहानी है, एक फौजी की मजबूरी की कहानी है और एक बाप भी है जो अपने बच्चे के भविष्य को सुरक्षित करना चाहता है। शुरूआती सफर में लेखक अपने घुमक्कड़पने की बातें करते हैं, अपने बारे में बताते हैं, शहर के बारे में बताते हैं और फिर जहां जैसी जगह मिले चल पड़ते हैं।
किताब का पहला पड़ाव बड़ा आसान सा दिखता है। जिसमें पहाड़ों की खूबसूरती है, वो हरे-भरे बुग्याल हैं जो सफर की थकान दूर कर देते हैं, रास्ते में मिलते नए चेहरे हैं जो अपने में एक कहानी लेकर बैठे हैं। ऐसे ही कुछ बातों और खुशफहमी के साथ वो आदि कैलाश की बर्फ वाली पहाड़ देखते हैं। जो बिल्कुल स्वर्ग के समान है, जहां इंसान तो नहीं रहते लेकिन रहती है इस प्रकृति की झलक।
खूबसूरत प्रकृति। |
किताब का दूसरा पड़ाव अचानक बदल जाता है। जो मौसम उनके साथ था वो उनके विपरीत हो जाता है। हर पल, हर घड़ी उनको एक खतरा मिलता है। कभी वो बारिश के रूप में, कभी दरकती चट्टानों में और वो उफनती नदी जिसके आगे सब बेबस थे।
लेखक के लिए वो रात सबसे लंबी और दर्दनाक थी। जब उनको एक सुनसान जंगल में गुजारनी पड़ी। ठंड, बारिश और उनका बदन सब उस दास्तां के गवाह थे। पहले जिस लेखक को प्रकृति में रस, सुन्दरता नजर आ रही थी। अब वो बस उस जगह से निकलने की सोच रहा था, वो नई सुबह का इंतजार कर रहा था। वहां से निकलने के बाद किताब अब डर और हिम्मत की लड़ाई के बीच चलने लगी थी। ये लड़ाई खत्म हुई धारचूला में जाकर, जहां सब शांत था प्रकृति भी और लोग भी।
किताब से कुछ
चलो इस नदी के स्त्रोत की तरफ चलते हैं। हो सकता है किसी जगह पर यह संकरी हो और हमें फांदकर पार करने का मौका मिल जाए। हमारे दिमाग में आया यही ख्याल हमें सबसे मुफीद जान पड़ा। अपने बैग उठाए और नदी के किनारे-किनारे उस पहाड़ी पर चढ़ने लगे जहां से वो नदी आती हुई दिख रही थी।
कुछ देर में हम नदी के एक किनारे एक पहाड़ी पर खड़े थे और अंदाजा लगा रहे थे कि कहां से कहां कूदकर हम नदी पार कर सकते हैं। जितनी देर में हम तय करते कि यहां से यहां कूदेंगे और फिर यहां से यहां। उतनी देर में नदी उस यहां का अस्तित्व मिटा देती। ऐसा लग रहा था कि वो हमारे मनुष्य होने का मजाक उड़ा रही हो। मैं अपने पर आ गई तो तुम्हारी कोई औकात नहीं।
किताब की खूबी
किताब की खूबी उसकी भाषा है जो सीधे-सीधे चलते हुए भी सीधी नहीं होती। लेखक हर वक्त-बेवक्त कुछ न कुछ बताता रहता है। वो सफर के छोर से लेकर, हर संभावना पर बात करता है। उसके यही भाषा और शब्द पाठक को बांधने में एक आकर्षण ला देते हैं। इसके अलावा किताब जानकारी से भरी हुई है। अगर आपको आदि कैलाश जाना है तो इस किताब को साथ में रख लेना चाहिए।
इस किताब को कौन पढ़े? जो घुमक्कड़ हैं, जो घूमने की सोच रहे हैं, जिन्हें घूमना पसंद है उन सबके लिए ये किताब है। इस किताब को पढ़कर एकबारगी लगेगा जाना चाहिए फिर ख्याल आयेगा कि कहीं हम जंगल में फंस गये तो?
इनरलाइन पास, उमेश पंत की एक बेहतरीन किताब है। मैंने अभी तक पहाड़ों के यात्रा वृतांत की किताबें पढ़ी हैं। उसमें सबसे अच्छी किताब मुझे यही लगी। इस किताब ने मुझे अपने में ऐसा बांधा कि एक बार किताब शुरू की तो लगातार घंटों पढ़ता रहा और उस सफर के अंत के साथ ही किताब पूरी की। किताब का लेखक पत्रकार है, कहानी भी लिखता है। शायद इसलिए किताब को बेहतरीन ढंग से लिख पाया, बिल्कुल एक कहानी की तरह।
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