Thursday, 31 January 2019

नाॅन रेजिडेंट बिहारी, कैरियर और प्यार के बीच मस्ती और दुखड़ों से भरी पड़ी है

बिहार को मैंने दो ही आंखें से सुना है। एक तो यहां से आईएस बहुत निकलते हैं यानि कि पढ़ने वाले बहुत होते हैं और दूसरा बिहार बड़ा पिछड़ा राज्य है सोच में भी और बाकी चीजों में भी। तभी तो दिल्ली में कोचिंग करने वाले बिहार के लड़के मिल ही जायेंगे। दिल्ली उनका घर हो जाता है और बिहार टूरिस्ट स्पेस। जहां साल में एक-दो बार चक्कर लग ही जाता है। दिल्ली में लड़का तब तक रगड़ता है जब तक अपने पिता का सपना लालबत्ती न मिल जाये या फिर उसके सो चांस ही खत्म न हो जाये। इसी बिहार और दिल्ली के बीच चलती-फिरती कहानी है ‘नाॅन रेजिडेंट बिहारी’।

कसी हुई कहानी का उदाहरण है नाॅन रेजिडेंट बिहारी।

नाॅन रेजिडेंट बिहारी का पहला संस्कारण 2015 में आया था और 2017 में इसके तीन संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इस किताब के लेखक हैं शशिकांत मिश्र। शशिकांत मिश्र बिहार के कटिहार जिले में पले-बढ़े हैं। पत्रकारिता करने के बाद पत्रकार जगत में आये और तब से मीडिया जगत में सक्रिय हैं। 8 सालों से स्टार न्यूज, एबीपी न्यूज से जुड़े रहे और उससे पहले इंडिया टीवी में भी काम किया।

किताब में क्या है?


बिहार के जिला अस्पताल में एक लड़का पैदा होता है और उसी दिन उसका भविष्य लिख दिया जाता है कि यूपीएससी की तैयारी करने लड़का दिल्ली जायेगा और लाल बत्ती लेकर जायेगा। राहुल दिल्ली के मुखर्जी नगर पहुंच जाता है जहां उसके दोस्त पहले से ही आ गये थे। फिर कहानी में पढ़ाई, मस्ती, मूवी, घूमना-फिरना बना ही रहता है। दोस्तों की दोस्ती गहरी हो जाती है इतनी कि मुसलमान को मुल्ला कहते हैं और हनुभक्त को लतियाते हैं। जब तक पेपर नहीं आते हर रोज बातें और मटरगश्ती होती है। लेकिन जब पेपर नजदीक आ जाते हैं तो मुखर्जी नगर की सड़कें खाली हो जाती हैं और कमरे बंद।

यूपीएससी में फेल और पास की कहानी चलती रहती है। इसमें भी राहुल के साथ वही कहानी चलती है, कभी पास होता है तो कभी फेल। लेकिन उसके फेल होने में हर बार उसका प्यार बीच में आता है। हर कहानी में प्यार होता है तो इसमें कहां जाता

राहुल अपने ही गांव कटिहार की लड़की शालू से प्यार करता है और वो भी उससे बेइंतहा प्यार करती है। इनका प्यार शादी में तभी तब्दील हो सकता था जब राहुल यूपीएससी निकाल ले। क्योंकि शालू का परिवार बड़ी जाति और अमीर घराने से था और राहुल का परिवार तो इतना गरीब कि राहुल की पढ़ाई के लिये महाजन से कर्ज लिया जा रहा था। इस प्यार को पाने के लिये राहुल जी जान से मेहनत कर रहा था लेकिन थोड़ी सी चूक हो ही जा रही थी। उसके बाद खबर आती कि शालू की सगाई होने वाली है।

कहानी बिहार के लड़के की नहीं, प्यार और कैरियर के तालमेल की है।

दोस्ती बड़ी प्यारी चीज होती है। इस किताब में बड़े ही व्यवहारिक रूप में बताया गया है। सिर्फ शराब और दारू पीने के लिये दोस्ती नहीं होती है। जब दोस्त मुसीबत में हो तो साथ देने में कोई हिचकिचाहट न आये, वही सच्ची दोस्ती होती है।

राहुल के दोस्त उसका हर पल में साथ देते हैं दारू पीने से लेकर शालू से मिलवाने तक। अंत में मोड़ आता है जब राहुल का यूपीएससी का फाइनल एग्जाम और शालू की शादी एक ही दिन पड़ती है। तब कहानी कैसे मोड़ लेती है बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में और सब बढ़िया हो जाता है। लेकिन उसके बढ़िया के पहले एक परीक्षा है राहुल की प्यार की और कैरियर की। शालू की परीक्षा है अपने धैर्य की और राहुल के प्यार पर टिके रहने की। कुछ दोस्त हैं जो इस कहानी में न होते तो कहानी रोचक नहीं होती। कहानी एक अच्छे सफर से शुरूआत होती है लेकिन आगे जाते-जाते यह मार्मिक हो जाती है और वही मार्मिकपन पाठकों को जोड़ने का काम करता है।

किताब का छोटा-सा अंश


राहुल अपने ख्यालों में खोया हुआ था। खिड़की से बाहर देखते हुए वह आगे की प्लानिंग कर रहा था। बनमनखी पहुंचना है और एक बार किसी तरह से शालू से मुलाकात करना है, लेकिन कैसे? वह घर के अन्दर होगी, बाहर उसके भाई के गुंडे-मवाली। मुझे पहचानते भी हैं ये सब। बहुत दिमाग लगाया राहुल ने, लेकिन अभी तक बहुत कुछ तय नहीं कर पाया था कि आखिर शालू से मिलेगा कैसे वह? इस सवाल पर वह सुबह से उलझा हुआ था। पुलिस से एक बार मदद मांगने का ख्याल आया और दूसरे ही पल निकल भी गया।

‘जाउंगा तो सब पुलिसवाले मुझे ही शक की नजर से देखेंगे। लोफर है साला, लोफर। एक शरीफ लड़की को तंग कर रहा है। कोई ठीक नहीं कि मुझे ही पकड़कर अंदर कर दें और शालू के बाप को फोन करके बख्शीश मांगने लगें।’ मन में मोटी गाली दी राहुल ने।

साला, अजीब माइंड सेट है बिहार है का। अगर कोई लड़का प्यार करता है तो इसका सीधा मतलब है कि जरूर वह लोफर होगा! हां, लड़कियों के मामले में थोड़ी रियायत दिखायेंगे। इसकी क्या गलती! बच्ची है, जरूर उसी लोफर ने बहका दिया होगा।

किताब की खूबी


किताब वाकई अच्छे ढंग से लिखी गई है। एक कहानी का पूरा-पूरा वर्णन। हास्य से लेकर यह कहानी मार्मिक तक जाती है और फिर सुखद हो जाती है। कहानी में शब्दों से अच्छी तरह से खेला गया है। लेखक एक पत्रकार है तो शब्द बढ़िया चुने हैं और वर्णन भी बढ़िया किया है। किताब में कहानी लचीली है, सस्पेंस बरकरार रखती है। जो बिहार से हैं उनको तो निश्चित ही ये किताब पसंद आयेगी और जो नहीं हैं उनको भी आयेगी। एक पाठक के तौर पर हर कोई पड़ सकता है।

किताब की कमी


किताब में कुछ कमी हैं जो मुझे लगीं। किताब में कहानी बिहार से है। जब बातें होती हैं तो हर बात हिंदी में ही लिखी गई है। कहीं कहीं हास्य बनाने या वास्तविक बनाने के लिये वहां की बोली का इस्तेमाल होता तो और भी बढ़िया होती। ये किताब उनके लिये बिल्कुल भी नहीं हैं जिनको कहानियां पढ़ने में मजा नहीं आता। क्योंकि ये किताब कोई जानकारी देने के लिये नहीं है। बस लेखक की सोच है जो शब्दों में उकेरी गई है।

नाॅन रेजिडेंट बिहारी किताब है एक लड़के की। जो लाल बत्ती और शालू को पाने के लिये दिल्ली के मुखर्जी नगर आता है और फिर वही दिल्ली दोनों को दूर करने की जद्दोजहद में लग जाता है। राहुल दोनों की पाने की भरसक कोशिश करता है। ये कहानी सिर्फ बिहार की एक लड़के की कहानी नहीं है। ये हर किसी की कहानी है। जिसमें कुछ पाना होता है और कुछ खोना। लेकिन हम टूटने लगते हैं, हमारी इम्तिहान की घड़ी आती है। हम पास हो जाते है तो खुश हो जाते हैं और नहीं होते तो फिर से पाने की कोशिश करते हैं, बिल्कुल राहुल की तरह।

बुक- नाॅन रेज़िडेंट बिहारी
लेखक- शशिकांत मिश्र
प्रकाशक- राधाकृष्ण का उपक्रम

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