मेरा मानना है कि पत्रकार एक अच्छी और बेहतर किताब लिख सकता है क्योंकि उसके पास शब्द हैं, ज्ञान है और तजुर्बा भी। अब दूसरी बात किताब काल्पनिक हो तो उसकी कहानी थोड़े दिनों में हमारे जेहन से उतर जायेगी। लेकिन किताब में अगर असलियत और वास्तविकता है तो उसका पढ़ा हुआ हमें काम ही आयेगा। ऐसी ही किताब आई है ‘यदा यदा हि योगी’। इसको पत्रकार विजय त्रिवेदी ने लिखा है।
यदा यदा हि योगी, योगी आदित्यनाथ पर रचित किताब है।
अक्सर होता है कि किताब अगर किसी व्यक्ति पर लिखी है तो वो उसके ही इर्द-गिर्द घूमती रहती है। ऐसा होता है कि किताब में उसका पक्ष होगा या उसकी बुराई हो सकती है लेकिन ऐसा कम होता है कि सारे पक्ष एक ही जगह, एक ही किताब में धर दिये जायें। इस किताब को पढ़ने के बाद मैं कह सकता हूं कि इसमें वो सब नहीं है।
सत्ता के सिंहासन पर संयासी का एक साल!
किताब के बारे में
यदा यदा हि योगी किताब की शुरूआत उनके मुख्यमंत्री बनने की कहानी से शुरू होती है। उस मुख्यमंत्री बनने को लेकर कई किस्से और कशमकश हैं। पहला अध्याय ही एक सवाल लेकर बनता है, कौन बनेगा मुख्यमंत्री?
इसमें बीजेपी का जिक्र आता है, आरएसएस का जिक्र है, नरेन्द्र मोदी का जिक्र है और अमित शाह का जिक्र है।
इसमें बीजेपी का जिक्र आता है, आरएसएस का जिक्र है, नरेन्द्र मोदी का जिक्र है और अमित शाह का जिक्र है।
कहानी धीरे-धीरे किताब में मुख्यमंत्री से पीछे चलती है। योगी आदित्यनाथ के एक साल के कार्यकाल को बताया जाता है, उनकी उपलब्धि मिलती हैं और लोगों के कुछ कथन भी मिलते हैं। हिंदू और हिंदुत्व की बात होती है। इसमें उनके हिुंदुत्व वाले कुछ बयान आता है जिसमें वे मुसलमानों को मारने की बात कहते हैं।
‘अगर वो हमारे 1 आदमी को मारेंगे तो हम 100 को मारेंगे।’
किताब में सिर्फ योगी आदित्यनाथ नहीं है। आदित्यनाथ के बहाने लेखक राम मंदिर विवाद पर जाता है। राम मंदिर के सारे पहलुओं को बताता है। पूरा इतिहास, कोर्ट के फैसले और वो मूर्ति वाला किस्सा। उसके बाद राम मंदिर पर राजनीति लाते हैं जहां आडवाणी राम रथ यात्रा की बात करते हैं और अपने को हिंदुत्व बनने की होड़ में रहते हैं। वो बाबरी मस्जिद गिरने का किस्सा भी पूरे विस्तार से बताते हैं।
किताब में सबका साथ, सबका विकास का अध्याय रखा गया है। जिसमें बताया गया है कि नरेन्द्र मोदी इसे नारे के साथ भारत का विकास करना चाहते हैं। लेकिन इस नारे को छत्तीसगढ़ की बीजेपी ने दिया है। इसमें योगी के सबका साथ, सबका विकास की बात होती है। इसमें वो किस्सा आता है जब शांत रहने वाले योगी आदित्यनाथ संसद में चिल्लाते हैं और हिंदुओं की आजादी को खतरा बताते हैं। किताब में हर जगह इस बात पर बड़ा जोर दिया है कि योगी आदित्यनाथ सबसे बड़े हिंदू नेता हैं। जो फिर से देश को हिंदुत्ववादी बना सकते हैं।
कहानी बिल्कुल पीछे खिसकती जाती है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत का कारण बताया जाता है। गोरखपुर और गोरक्षपुर मंदिर पर आते हैं, वहां के महंत पर बात होती है जो कि योगी आदित्यनाथ हैं।
योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर मंदिर का इतिहास आता है। कुछ सबद और संस्कृत का श्लोक आता है। जिसमें गोरखपुर का जिक्र होता है वहां के महंत और उनके महाराज का जिक्र होता है। एक जगह ओशो का जिक्र होता है जिसमें वे कहते हैं कि भारत में अब भी जो संप्रदाय भला कर रहा है वह नाथ संप्रदाय है। योगी आदित्यनाथ की किताब में बीच-बीच कुछ बुराई भी होती हैं। ताजमहल को अपने कैलेंडर से बदलवाने और उसे खराब कहने के कारण उनकी आलोचना भी मिलती है।
कहानी और पीछे जाती है। गढ़वाल से गोरखपुर तक। गढ़वाल जहां पर उनका जन्म हुआ था और कैसे गोरखपुर आये, कैसे सन्यासी बने।
किताब कौन पढ़े
यदा यदा हि योगी, एक जानकारी से भरी किताब है। इसमें कहानी है और उन कहानियों में किस्से हैं जो वाकई मजेदार हैं। उन मजेदार किस्सों को जानने के लिये जरूर पढ़नी चाहिये। जिन्हें राजनीति अच्छी लगती है, जो राजनीति के उस दौर को जानना चाहते हैं तो उनको यह किताब पढ़नी चाहिये।
कौन न पढ़े
किताब में कुछ कमी भी है। बीच-बीच में योग और अध्यात्म की ओर किताब चली जाती है। ऐसा लगता है कि किताब योगी आदित्यनाथ पर नहीं अध्यात्म और योग पर है। इस किताब को वे लोग बिल्कुल भी न पढ़े जिनको राजनीति में मजा नहीं आता क्योंकि ये नाॅवेल नहीं है। वे लोग भी न पढ़े जिनको लगता है कि इसमें योगी आदित्यनाथ का पूरा जखीरा मिलेगा।
यदा यदा हि योगी एक अच्छे लेखक की एक बेहतर किताब है। जिससे हर पत्रकार को, हर नेता, हर छात्र को तो पढ़ना चाहिये। क्योंकि इनमें वो किस्से हैं जो हमने न कहीं सुने हैं और न ही पढ़े हैं।
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