किताब पाठक को रोचक तभी लगती है जब उसकी भाषा और शब्द पढ़कर वो भी एक घोल में चला जाये। जहां पाठक लिखते समय गया था। अगर किताब कहानी नहीं है तो मुश्किल हो जाता है उस बात को बताना जो लेखक सच में बताना चाहता है। लेखक की यह शैली किताब को बेहतरीन की श्रेणी में ले जाती है। चाय,चाय ऐसी ही किताब है जो आपको शब्दों के जरिए कुछ शहरों में घूमाती है। चाय, चाय एक बेहद ही सरल रूप में लिखे गए कुछ यात्रा विवरण है जो उस शहर की कहानी सुनाते हैं। कभी वो शहर चाय की चुस्कियों में उबाल ले रहा होता तो कभी रात के अंधेरे में किसी बार में।
इस किताब के लेखक हैं बिश्वनाथ घोष। घोष का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ। पेशे से वे एक पत्रकार हैं। आठ साल तक दिल्ली में रहकर पत्रकारिता की और फिर 2001 से चेन्नई के न्यू इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप में शामिल हो गये। तब से वे वही है। उनकी कलम बिना रूकी चलती है मानो जो सोच रहे हों, जो बोल रहे हों वो लिख दिया हो। ये किताब मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई है। जिसका हिंदी अनुवाद शुचिता मीतल ने किया है।
भारतीय रेल एक जगह है जो पटरियों पर बना हुआ है। उसी के मध्य हैं जाने कितने कस्बे, गांव और शहर। कुछ शहर वो भी है जो रेलवे के हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण हैं लेकिन उन शहरों को कोई अंदर से नहीं झांकता। ऐसे शहर पड़ाव तो हैं लेकिन मंजिल नहीं।
लेखक कुछ ऐसे ही शहर चुन लेता है और बारी-बारी रेल के उन छोटे कस्बों में जाता है जिन्हें हम बस जंक्शन के तौर पर याद करते हैं। इसमें वो शुरूआत करता है मुगलसराय से, फिर झांसी, वहां से चलते हुये वो इटारसी और फिर दक्षिण के ऐसे ही जंक्शनों पर जाता है। लेखक हर जगह 2-3 दिन गुजारता है। वहां के लोगों के बारे में बताता है। जो वो देख रहा होता है उसको लिखता जाता है।
लेखक जो देख रहा है उसको लिखता नहीं है। वो ढ़ूंढ़ता है उन कहानियों को जो उसे अतीत में घसीटे ले जाती हैं। वो उन शहरों के बुजुर्गों को ढ़ूढंता है जो उस पल के साक्षी रहे थे। उन पलों में मुगलसराय से दीनदयाल उपाध्याय की हत्या का साक्षी भी मिलता है और वो पुजारी भी जो इटारसी का पुराना पुजारी रहता है।
किताब की कहानी जैसी लिखी है। कहानी शहरों की जिसे लेखक ने खंगाला है रेलवे के अधिकारी से लेकर ठेले वाले तक। लेखक सबकी विशेषता बताता है टैक्सी वालों की और अपनी भी। वो जो नहीं कह पाता उसको भी किताब में डाला गया है। इन कस्बों का सफरनामा दिलचस्प है, वो दिलचस्प लग रहे थे क्योंकि लेखक ने शानदार वर्णन किया है। पढ़ते-पढ़ते आपको लगेगा कि आप उस शहर में घूम रहे हैं। जब किताब पढ़ते हैं तो हमारे दिमाग में भी एक छवि बनने लगती है जो कभी गुंटकल के सुनसान इलाके की होती है तो कभी उस हिल्स स्टेशन की जो बस नाम मात्र का हिल्स स्टेशन था।
किताब में जानकारी है जो आपको उस जगह पर जाने के लिए लालियत करती है। एक एहसास है जो किताब की शुरूआत से लेकर अंत तक बना रहता है। इस किताब को पढ़कर लगता है हमें भी बस निकल जाना चाहिए उन कस्बों में, उन जगहों पर जिनको बस सुना है, झांका है रेल की खिड़कियों से और चाय की चुस्कियों के साथ आगे बढ़ जाते हैं।
‘‘अचानक मुझे लगा मेरे कान फिर से लाल हो गए हैं और मेरी टांगें कांपने लगी हैं। मैंने संजय को बताया कि वो आ रही है, मगर उसने भाव नहीं दर्शाया। उसने कहा कि वो कई मर्तबा उसे अमनदीप की दुकान पर देख चुका है, लेकिन इससे ज्यादा जानकारी उसने खुद से नहीं दी। मुझे भी उससे कुछ पूछने में झिझक हो रही थी- वो बहुत ज्यादा छोटा था।
मंजू के आने से पहले खाना आ गया, और रोटियों का तीसरा दौर चल ही रहा था जब मैंने ढाबे के बाहर दो औरतों को खड़े देखा। ग्राहक पहले ही उनकी तरफ नजर डालने लगे थे। वो दो औरतें थीं- एक गोरे रंग की, थोड़ी छोटी और हल्की सी गदबदी और दूसरी लंबी, सांवली और पतली-दुबली थी। दोनों में से कोई पैंतीस से ज्यादा की नहीं दिखती थी।’’
किताब की खूबी इसकी लिखने की शैली है। ये एक अलग प्रकार का यात्रा विवरण है। विवरण से ज्यादा ये कुछ जगहो के बारे में आज और कल दिखाता है। भाषा बेहद साधारण और सहज है। शब्दों का चयन बेहतरीन है जिसे कोई भी आसानी से समझ सकता है। किताब जानकारी से तो भरी हुई है साथ में यात्रा के पड़ाव को एक और चरण पर ले गये हैं, अनजानी जगहों की ओर।
किताब किसके लिए है और कौन पढ़े। जिनको घूमना पसंद है, पढ़ना पसंद है । वे बेफ्रिकी से इस किताब को ले सकते हैं। ये किताब उनको निराश नहीं करेगी। किताब जो पढ़ेगा उनको इन जंक्शनों को देखने का मन करेगा।
चाय, चाय बिश्वनाथ घोष की बेहतरीन किताब है। ऐसी जगहों के बारे में बेहतरीन और बेतरतीब तरीके से लिखा है। जिनको बस जंक्शन में देखा गया है। वो अगर न हों तो लोग अपनी मंजिल पर न जा पायें। ये यात्रा विवरण दिलचस्प सफरनामे पर ले जाता है।
इस किताब को पढ़ने के बाद आप उन शहरों में जायें न जाये लेकिन उस जगहों के बारे में जरूर जान जायेंगे। जिसे लेखक ने बताया है। किताब कहीं भी बोरियत नहीं लाती। हर जंक्शन के बाद किताब में बुकमार्क लगाकर आप सोचने लगेंगे। उस जगह के बारे में जिसे अभी पढ़ा है और आपको भी आवाज आयेगी- चाय, चाय।
लेखक- बिश्वनाथ घोष |
इस किताब के लेखक हैं बिश्वनाथ घोष। घोष का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ। पेशे से वे एक पत्रकार हैं। आठ साल तक दिल्ली में रहकर पत्रकारिता की और फिर 2001 से चेन्नई के न्यू इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप में शामिल हो गये। तब से वे वही है। उनकी कलम बिना रूकी चलती है मानो जो सोच रहे हों, जो बोल रहे हों वो लिख दिया हो। ये किताब मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई है। जिसका हिंदी अनुवाद शुचिता मीतल ने किया है।
चाय, चाय
भारतीय रेल एक जगह है जो पटरियों पर बना हुआ है। उसी के मध्य हैं जाने कितने कस्बे, गांव और शहर। कुछ शहर वो भी है जो रेलवे के हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण हैं लेकिन उन शहरों को कोई अंदर से नहीं झांकता। ऐसे शहर पड़ाव तो हैं लेकिन मंजिल नहीं।
लेखक कुछ ऐसे ही शहर चुन लेता है और बारी-बारी रेल के उन छोटे कस्बों में जाता है जिन्हें हम बस जंक्शन के तौर पर याद करते हैं। इसमें वो शुरूआत करता है मुगलसराय से, फिर झांसी, वहां से चलते हुये वो इटारसी और फिर दक्षिण के ऐसे ही जंक्शनों पर जाता है। लेखक हर जगह 2-3 दिन गुजारता है। वहां के लोगों के बारे में बताता है। जो वो देख रहा होता है उसको लिखता जाता है।
लेखक जो देख रहा है उसको लिखता नहीं है। वो ढ़ूंढ़ता है उन कहानियों को जो उसे अतीत में घसीटे ले जाती हैं। वो उन शहरों के बुजुर्गों को ढ़ूढंता है जो उस पल के साक्षी रहे थे। उन पलों में मुगलसराय से दीनदयाल उपाध्याय की हत्या का साक्षी भी मिलता है और वो पुजारी भी जो इटारसी का पुराना पुजारी रहता है।
सभी शहर रेल से एक से ही दिखते हैं। लगता है हर शहर की एक ही कहानी है लेकिन जब तक शहर में घुसेंगे नहीं तो शहर अपना रंग कैसे दिखायेगा। कैसे पता चलेगा कि झांसी भड़कीला है शोरानूर शांत है।
किताब की कहानी जैसी लिखी है। कहानी शहरों की जिसे लेखक ने खंगाला है रेलवे के अधिकारी से लेकर ठेले वाले तक। लेखक सबकी विशेषता बताता है टैक्सी वालों की और अपनी भी। वो जो नहीं कह पाता उसको भी किताब में डाला गया है। इन कस्बों का सफरनामा दिलचस्प है, वो दिलचस्प लग रहे थे क्योंकि लेखक ने शानदार वर्णन किया है। पढ़ते-पढ़ते आपको लगेगा कि आप उस शहर में घूम रहे हैं। जब किताब पढ़ते हैं तो हमारे दिमाग में भी एक छवि बनने लगती है जो कभी गुंटकल के सुनसान इलाके की होती है तो कभी उस हिल्स स्टेशन की जो बस नाम मात्र का हिल्स स्टेशन था।
किताब में जानकारी है जो आपको उस जगह पर जाने के लिए लालियत करती है। एक एहसास है जो किताब की शुरूआत से लेकर अंत तक बना रहता है। इस किताब को पढ़कर लगता है हमें भी बस निकल जाना चाहिए उन कस्बों में, उन जगहों पर जिनको बस सुना है, झांका है रेल की खिड़कियों से और चाय की चुस्कियों के साथ आगे बढ़ जाते हैं।
किताब का अंश
‘‘अचानक मुझे लगा मेरे कान फिर से लाल हो गए हैं और मेरी टांगें कांपने लगी हैं। मैंने संजय को बताया कि वो आ रही है, मगर उसने भाव नहीं दर्शाया। उसने कहा कि वो कई मर्तबा उसे अमनदीप की दुकान पर देख चुका है, लेकिन इससे ज्यादा जानकारी उसने खुद से नहीं दी। मुझे भी उससे कुछ पूछने में झिझक हो रही थी- वो बहुत ज्यादा छोटा था।
मंजू के आने से पहले खाना आ गया, और रोटियों का तीसरा दौर चल ही रहा था जब मैंने ढाबे के बाहर दो औरतों को खड़े देखा। ग्राहक पहले ही उनकी तरफ नजर डालने लगे थे। वो दो औरतें थीं- एक गोरे रंग की, थोड़ी छोटी और हल्की सी गदबदी और दूसरी लंबी, सांवली और पतली-दुबली थी। दोनों में से कोई पैंतीस से ज्यादा की नहीं दिखती थी।’’
किताब की खूबी
किताब की खूबी इसकी लिखने की शैली है। ये एक अलग प्रकार का यात्रा विवरण है। विवरण से ज्यादा ये कुछ जगहो के बारे में आज और कल दिखाता है। भाषा बेहद साधारण और सहज है। शब्दों का चयन बेहतरीन है जिसे कोई भी आसानी से समझ सकता है। किताब जानकारी से तो भरी हुई है साथ में यात्रा के पड़ाव को एक और चरण पर ले गये हैं, अनजानी जगहों की ओर।
किताब किसके लिए है और कौन पढ़े। जिनको घूमना पसंद है, पढ़ना पसंद है । वे बेफ्रिकी से इस किताब को ले सकते हैं। ये किताब उनको निराश नहीं करेगी। किताब जो पढ़ेगा उनको इन जंक्शनों को देखने का मन करेगा।
चाय, चाय बिश्वनाथ घोष की बेहतरीन किताब है। ऐसी जगहों के बारे में बेहतरीन और बेतरतीब तरीके से लिखा है। जिनको बस जंक्शन में देखा गया है। वो अगर न हों तो लोग अपनी मंजिल पर न जा पायें। ये यात्रा विवरण दिलचस्प सफरनामे पर ले जाता है।
इस किताब को पढ़ने के बाद आप उन शहरों में जायें न जाये लेकिन उस जगहों के बारे में जरूर जान जायेंगे। जिसे लेखक ने बताया है। किताब कहीं भी बोरियत नहीं लाती। हर जंक्शन के बाद किताब में बुकमार्क लगाकर आप सोचने लगेंगे। उस जगह के बारे में जिसे अभी पढ़ा है और आपको भी आवाज आयेगी- चाय, चाय।
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