आज के दौर में किताबें बहुत लिखीं जा रही हैं उनमें सबसे बड़ी कैटेगरी है प्रेम। इस प्रेम कबूतर ने सबकी जिंदगी में डुबकी लगाई है, इसलिये ऐसी किताबों को पाठक पढ़ते भी हैं। ऐसी किताबें एक सुलझी हुई स्क्रिप्ट की तरह होते हैं। पहले दूरियां, फिर पास आने का प्रयास और फिर मिलन में आती बहुत सारी दिक्कतें। लेकिन अंत सुखद कर ही देते हैं। ‘वापसी इम्पाॅसिबल’ का प्रेम कबूतर थोड़ा अलग है, आज के प्रेम जैसा। वापसी इम्पाॅसिबल कुछ फैसलों की, एक विश्वास की कहानी है जिसके टूटने पर वह उसकी कभी वापसी नहीं होती।
इस किताब की लेखिका हैं सुरभि सिंघल। सुरभि अपनी पढ़ाई के साथ लेखन में रूचि रखती हैं और उसी लेखन से निकली हैं उनकी किताबें। उनकी पहली किताब है ‘फीवर 104 डिग्री’ और उसके बाद दूसरी किताब आई ‘वापसी इम्पाॅसिबल’।
कहानी है एक लड़की की जो अकेली है खुद से भी और दुनिया से भी, नाम है सुरम्या। उसी अकेलेपन को दूर करने के लिये फेसबुक की गलियों में चक्कर लगाती है। उसी फेसबुक की गली में उसकी मुलाकात होती है अनुसार से। अनुसार से बात बढ़ती है और बात ऐसी हो जाती है कि सोने से पहले अनुसार और सोने के बाद अनुसार। इसी बीच सुरम्या काॅलेज के लिये देहरादून चली जाती है।
बस इसी तीनों के बीच में कहानी डाल-मडोल होने लगती है। अनुसार बीच-बीच में देहरादून आता और फिर चला जाता। अब सुरम्या एक साथ दो जिंदगियों में चल रही थी अनुसार और विशेष की। अनुसार में उसे अपनापन दिखता था, फिक्र दिखती थी। वो जानती थी कि अनुसार उससे प्यार करता है लेकिन मन में ये भी कहती कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है। इसी सोच से उसने विशेष को भी हां कह दी थी कि अनुसार तो है ही विशेष लोकल का है तो काम आयेगा।
इस फैसले के बाद सुरम्या की जिंदगी उखड़ने लगी थी और फिर लखनऊ, दिल्ली के कई सफर आये लेकिन सुरम्या का प्रेम कबूतर की वापसी नहीं हुई। उसी प्रेम कबूतर के ऊपर चढ़ने, फिर गिरने की कहानी है वापसी इम्पाॅसिबल। इश्क के शहर में विश्वास की डोर को बरकरार न रख पाई सुरम्या। किताब के अंत में वो आखिरी मुलाकत और बातें हैं जो आपके अंदर एक बेरूखी ला देंगी यानि वो दर्द पनपने लगेगा कि काश सुरम्या प्रेम को खेल न समझती।
किताब की कहानी अच्छी है जो कुछ रोचक ढंग से बताई भी गई है, बिल्कुल एक मूवी की स्क्रिप्ट की तरह। जिसमें डायलाॅग भी पूरी तरह से लिखकर दिये गये हैं। प्रेम के परवानों से लेकर, प्यार का रूठना, मनाना और फिर वो नाटकीय मोड़ जो कहानी को अंत की ओर ले जाता है। लेखिका कोई साहित्यकार नहीं है तो शब्दों के चयन पर इतना जोर नहीं है हालांकि कहीं-कहीं अच्छे शब्द मिल जाते हैं। कहानी इस दौर के प्रेम को बखूबी बयां करती है।
इस किताब की लेखिका हैं सुरभि सिंघल। सुरभि अपनी पढ़ाई के साथ लेखन में रूचि रखती हैं और उसी लेखन से निकली हैं उनकी किताबें। उनकी पहली किताब है ‘फीवर 104 डिग्री’ और उसके बाद दूसरी किताब आई ‘वापसी इम्पाॅसिबल’।
क्या है कहानी?
कहानी है एक लड़की की जो अकेली है खुद से भी और दुनिया से भी, नाम है सुरम्या। उसी अकेलेपन को दूर करने के लिये फेसबुक की गलियों में चक्कर लगाती है। उसी फेसबुक की गली में उसकी मुलाकात होती है अनुसार से। अनुसार से बात बढ़ती है और बात ऐसी हो जाती है कि सोने से पहले अनुसार और सोने के बाद अनुसार। इसी बीच सुरम्या काॅलेज के लिये देहरादून चली जाती है।
देहरादून में उसकी मुलाकात एक और लड़के से होती है विशेष से। विशेष शहरी लड़का है जिसे जो पसंद आता है वो फक्क से कह देता है। अनुसार से बात करते-करते वो विशेष को भी हां कह देती है। सुरम्या इश्क के परवान में थी लेकिन वक्त मोड़ लेता है और लिया भी।
बस इसी तीनों के बीच में कहानी डाल-मडोल होने लगती है। अनुसार बीच-बीच में देहरादून आता और फिर चला जाता। अब सुरम्या एक साथ दो जिंदगियों में चल रही थी अनुसार और विशेष की। अनुसार में उसे अपनापन दिखता था, फिक्र दिखती थी। वो जानती थी कि अनुसार उससे प्यार करता है लेकिन मन में ये भी कहती कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है। इसी सोच से उसने विशेष को भी हां कह दी थी कि अनुसार तो है ही विशेष लोकल का है तो काम आयेगा।
इस फैसले के बाद सुरम्या की जिंदगी उखड़ने लगी थी और फिर लखनऊ, दिल्ली के कई सफर आये लेकिन सुरम्या का प्रेम कबूतर की वापसी नहीं हुई। उसी प्रेम कबूतर के ऊपर चढ़ने, फिर गिरने की कहानी है वापसी इम्पाॅसिबल। इश्क के शहर में विश्वास की डोर को बरकरार न रख पाई सुरम्या। किताब के अंत में वो आखिरी मुलाकत और बातें हैं जो आपके अंदर एक बेरूखी ला देंगी यानि वो दर्द पनपने लगेगा कि काश सुरम्या प्रेम को खेल न समझती।
किताब का अदना सा अंक
मैं अब समझ चुकी थी कि अब अनुसार मेरा जरा भी नहीं रहा। वजह यही थी, या जो भी... अब मैं जानना नहीं चाहती थी। शायद मेरी सजा अब पूरी हो चुकी थी, इसलिए अब मुक्ति का वक्त आ गया था। मैंने अब निश्चय कर लिया था, अनुसार की जिंदगी में कभी वापस न लौट जाने का। जिसके लिये मैंने सब कुछ सहा- मार पिटाई, जिल्लत, ताने, गालियां, भूख, अंधेरी कोठरी का डर, जहां चूहे हर वक्त मुझ पर चढ़े रहते... सब कुछ। वो इस कदर नाराज हो जाएगा, ये सोच पाने से आसान मेरे लिये मौत थी, जो जाहिराना तौर पर इस जिंदगी से... इससे खूबसूरत ही होती। लेकिन मैंने वक्त और हालात के आगे घुटने टेक दिए; अपने तरीके से, अपनी जिंदगी पूरी तरह दूसरी शर्तों पर सौंप दी। अपने मन की तो करके देख चुकी थी, अब बारी अपनों के मन की करके देखने की थी।किताब की खूबी
किताब की कहानी अच्छी है जो कुछ रोचक ढंग से बताई भी गई है, बिल्कुल एक मूवी की स्क्रिप्ट की तरह। जिसमें डायलाॅग भी पूरी तरह से लिखकर दिये गये हैं। प्रेम के परवानों से लेकर, प्यार का रूठना, मनाना और फिर वो नाटकीय मोड़ जो कहानी को अंत की ओर ले जाता है। लेखिका कोई साहित्यकार नहीं है तो शब्दों के चयन पर इतना जोर नहीं है हालांकि कहीं-कहीं अच्छे शब्द मिल जाते हैं। कहानी इस दौर के प्रेम को बखूबी बयां करती है।
वापसी इम्पाॅसिबल कहानी है एक लड़की की। जो अपने सपने और अनुसार के प्यार को लेकर देहरादून आती है और फिर वही प्यार उनकी जिंदगी में तीसरा मोड़ लेता है विशेष का। सुरम्या चाहती थी कि वो दोनों के बीच में बनी रही। कई बार उसे विशेष से दूर होने की कोशिश भी की, लेकिन वापसी इम्पाॅसिबल थी। इस कहानी के आखिर में पाठक न चाहकर भी वो अंत स्वीकार करता है जो लेखिका ने दिया है।
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