Thursday, 31 January 2019

आजादी मेरा ब्रांड हरियाणवी लड़की का बेफिक्र होकर दुनिया नापने का घुमक्कड़ शास्त्र है

हर कोई पैदा होते ही घुमक्कड़ नहीं हो जाता है। कोई चलते-चलते बनता है तो कोई किसी को देखकर बन जाता है। कोई घुमक्कड़ कभी बन ही नहीं पाता है कई कोशिशें के बाद भी। लेकिन जो घुमक्कड़ होता है उसे बस घूमना होता है और नई-नई चीजें देखना होता है। हम भारतीय अक्सर ग्रुप में घूमना पसंद करते हैं अकेले कहीं जाना हमें डरा देता है लेकिन ‘आजादी मेरा ब्रांड’ कहती है कि अगर सच में घूमने जा रहे हो तो अकेले जाओ। अकेले में आपको दूसरों की फिक्र नहीं करनी पड़ती है किसी की सहूलियत पर ध्यान नहीं देना पड़ता है। जहां चाहे जाओ, कुछ भी खाओ यानि मनमौजी।


असली घुमक्कड़ किसे कहते हैं, वो कैसे होते हैं इन सबका जवाब यायावरी आवारगी की पहली श्रृंखला ‘आजादी मेरा ब्रांड’ में मिल जाता है। इस किताब को लिखा है अनुराधा बेनीवाल ने। 


अनुराधा बेनीवाल हरियाणा के रोहतक जिले से ताल्लुक रखती हैं। वे अच्छी चेस प्लेयर हैं। 15 साल की उम्र में नेशनल शतरंज प्रतियोगिता की विजेता रहीं। 16 वर्ष की उम्र में विश्व शतरंज प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। उसके बाद उन्होंने चेस को हमेशा के लिये अलविदा कह दिया। लेकिन जब उनको लंदन में काम की जरूरत पड़ी तो चेस ही काम आया। लंदन में वे शतरंज की कोच हैं और खेलती भी हैं।

किताब के बारे में


आजादी मेरा ब्रांड कोई यात्रा वृतांत नहीं है ये तो लेखिका के संस्मरण हैं जो वे कभी बस में सोचते हुये लिखती हैं तो कभी घर के कोने से बैठकर लिख रही है। इसमें उनके यूरोप के 13 देश घूमने के संस्मरण हैं। लेकिन लेखिका बताती हैं कि वे भारत से यूरोप क्यों आई? कैसे अचानक उनको घूमने का शौक लग गया? वो हर देश में भटकती-फिरती रहती हैं। लेखिका उस देश, शहर के बारे में बताती हैं, वहां के लोगों के बारे में, घरों के बारे में इमारतों के बारे में। उनको जो समस्याएं आती हैं उन सबके बारे में। कौन-सा देश महंगा है? कहां आकर उनको सुकून मिलता है और किन बातों से उनको डर लगता है।

उनके घूमते हुये संस्मरणों में वे जो भी सोचती हैं उसकी तुलना खुद से, इस समाज से या फिर हमारे देश यानि कि भारत से करती हैं। वे बताती हैं कि वे अपनी इच्छा दबा के रखती हैं क्योंकि समाज में उनको अच्छा बना रहना है। समाज में अच्छा बना रहने की शर्त सिर्फ लड़कियों पर लागू कर दी जाती है।

उनकी तुलना इतनी जायज होती है कि लगता है वे बता नहीं रही हैं, हमसे कह रही हैं कि अब हमें इस चीज को बदलना चाहिये। हम समाज के चक्कर में आखिर क्यों बेड़ियों में बंधने का काम करें।
यूरोप अगर लेखिका के नजरों से देखें तो अच्छा भी है और घूमना भी आसान है। घूमने में सबसे ज्यादा फिक्र होती है रूकने की। लेकिन लेखिका के संस्मरणों में कहीं भी पैसे से नहीं रूकी। वे बताती हैं कि यूरोप में लोग अपने घर होस्ट पर रखते हैं यानि कि वे कुछ दिनों के लिये आपको अपने घर में रूकने के लिये बुलाते हैं। इस तरह धीरे-धीरे वे 13 देशों को घूम लेती हैं। उनके संस्मरणों में कहीं नहीं लगता कि वे वापस लौट जाना चाहती हों। वे तो अपने को बेफिक्र, बेमंजिल मुसाफिर बताती हैं जो पूरी दुनिया घूमना चाहती हैं।

अपने संस्मरणों में लेखिका समाज की बुराई-अच्छाई पर बात करती है। वो यूरोप के खुलेपन और भारत के दब्बूपन पर बात करती हैं। उन्हें लोगों से बतियाना अच्छा लगता है वे देखती हैं कि यहां के लोगों और भारत के लोगों की सोच में कितना अन्तर है। उनके इन संस्मरणों और सोच के कारण ही किताब कहीं बोर नहीं होने देती है। कुल मिलाकर जानकारी के साथ एक घुमक्कड़ की आजाद सोच से वाकिफ कराती है किताब।

कुछ किताब से


1- मुझे रात की पार्टियों से दिक्कत नहीं है, जितना कि सुबह की चाय से प्रेम है। हां, घर में बैठकर रात-भर गप्पिया लो, चाय पर चाय, आधी रात को मैगी बनवा लो, पर तैयार होकर बाहर मत बुलाओ, प्लीज।

2- अकेले दुनिया फिरने का यह भी मजा है, आप इतनी सारी जिंदगी इतनी स्पीड से जी लेते हैं। कोई कमिटमेंट नहीं होती, तो कुछ भी कर लेते हैं। कई बार बहुत कुछ कर लेते हैं।

3- समय के साथ हम बदलते भी हैं, जनबा बदलते हैं, समय बदलता है। कई बार बदले-बदले भी पसंद हो जाते हैं, कभी-कभी हजम नहीं होते। यों रिश्तों का रहस्य कायम रहता है।

4- किसी से मिलकर सिर्फ सेक्स कर पाना या सिर्फ सेक्स करने की इच्छा करने की चाह भर रखना भी हमें पाप बताया जाता है। ऐसे में कितनी बार करना तो चाहते हैं हम सेक्स, लेकिन करते हैं दोस्ती।

5- ऐय्याशी सिर्फ देह की नहीं होती है। इसका संबंध किसी भी तरह के उपभोग की अधिकता या उसके मनमानेपन से है।

किताब की खूबी


किताब एक लड़की की यात्रा का संस्मरण है लेकिन इसमें कहीं बोरियत नहीं आती। क्योंकि यात्रा के साथ-साथ लेखिका फिल्मों की तरह कभी फ्लैशबैक में चली जाती है तो कभी समस्याओं से जूझती रहती है। हर शहर की खूबसूरती होती है और वही खूबसूरती इस किताब में है। ऐसा लगता है लेखिका अपनी यात्रा की बात-बात करते हमसे बात करने लगी है जो पाठक में पकड़ बनाये रखता है।

ये किताब घुमक्कड़ों को पढ़ना चाहिये, इस समाज के ठेकेदारों और पूर्वाग्रहों बनाये रखने वाले को पढ़ना चाहिये। उन लड़कियों को पढ़ना चाहिये जो कुछ करना तो चाहती हैं लेकिन समाज के डर से ग्रहस्थी में बंधी रखती हैं।

किताब की कमी


किताब में कोई खासा कमी नहीं है लेकिन जब-जब लेखिका इतिहास की बात बताती है तो ध्यान टूटने लगता है। शायद इसलिये क्योंकि अचानक से खूबसूरती से ज्ञान आ जाता है जिसे हजम नहीं कर पाते हैं।

पूरी किताब शानदार है एक कहानी की तरह। एक लड़की है जो आराम से अच्छी बनकर रहती है। अचानक एक और लड़की आती है और घूमने का चस्का लगा देती है। उसके बाद लड़की यूरोप घूमने निकल पड़ती है। किताब के आखिर में लेखिका ने लड़कियों के लिये नोट लिखा है जो लड़कियों को आजाद पंक्षी बनने की बात करता है।

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