कहानी, कविता लिखने की सबकी शैली और भाषा अलग होती है। लेखन की शैली ही लेखक की पहचान बन जाती है। अच्छी शैली को पाठक पसंद करते हैं और याद रखते हैं। लेखक को फिर उसकी सिर्फ एक किताब से लेखन से याद रखते हैं। उस लेखक को मुरीद हो जाते हैं, ऐसे लेखक अपनी छाप छोड़ जाते हैं। मेरे लिये उस लिस्ट में सबसे ऊपर हैं मानव कौल। मानव कौल की हाल ही में मैंने एक किताब पढ़ी है ‘तुम्हारे बारे में’।
मानव कौल का लेखन मुझे लगता है कोई प्रयोग है जो अब तक किसी और ने नहीं किया। वो एक ही बात को, एक ही घटना को कई पहलुओं से बताते हैं। कभी वो बीमार व्यक्ति के बारे में बताते तो कभी बीमारी भी अपने बारे में बताती। उनका लेखन में कोई फिलाॅसफी दिखती है। उनकी बातें वहीं होती है जो हमारे आस-पास चल रहा होता है लेकिन उसे ही लिखना कितना कठिन है ये मानव कौल की लेखनी में झलकता है। वही लेखनी मानव कौल की इस किताब में है। इस किताब में मानव कौल ने अपने अंदर के मुड़े पन्नों को खोला है।
मानव कौल मूलतः कश्मीर के बारामूला में पैदा हुये लेकिन वे बढ़े हुये मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में। मानव कौल फिल्मी दुनिया के जाने-माने नाम हैं। एक्टिंग के साथ वे थियेटर करते हैं और यही सब करते-करते लिख भी लेते हैं। तुम्हारे बारे में उनकी तीसरी किताब है। इससे पहले वे ‘ठीक तुम्हारे पीछे’ और ‘प्रेम कबूतर’ लिख चुके हैं।
‘ठीक तुम्हारे पीछे’ किताब में न कोई कहानी है और न ही कोई कविता है। इसमें तो छोटी-छोटी कुछ बातें हैं। जिसे लेखक ने चलते-चलते तो कभी एक जगह ठहरकर जो देखा और सोचा उसे शब्दों में पिरो दिया। लेकिन जिस तरह से वो पिरोया है वो बड़ा कमाल है। ज्यादातर बातें लेखक की बातें एक पेज में ही खत्म हो जाती हैं। कुछ बातें बहुत लंबी हैं जैसे भवानी भाई की कहानी और अपने रंगमंच की कहानी।
शुरुआत में पढ़ते हुये लगता है कि लेखक ने अपने छोटे-छोटे यात्रा विवरण लिख दिये है। जो कभी पहाड़ के बारे में होते तो कभी किसी बड़े शहर के बारे में। लेकिन जैसे-जैसे किताब को पढ़ते-जाते हैं तो पता चलता कि इसमें सिर्फ यात्रा विवरण नहीं है। वो जो पहले यात्रा विवरण लग रहे थे वो तो लेखक की उस जगह के बारे में, वहां के लोगों के बारे में सोच थी। जो सोच आगे चलकर मां, पिता और अपनी प्रेमिका के बारे में भी होती है।
वो अपने थियेटर के बारे में बताते, इन्हीं बातों में लेखक अपने गांव से मुंबई आने तक का सफर बता देता है। लेखक में साफगोई की रुमानियत है, एक खुशबू है जिसे लेखक ने बिखेरा है। किताब पढ़ते हुये लगता ही नहीं है कि लेखक ने कभी बातों को बनाया हुआ हो। ऐसा लगता है उसने जो जिया है, उसके साथ जो हुआ है वो उसने सब लिख दिया है। हर वो बात जो बताना चाहता है, हर वो वो बात जिसके बारे में वो सोचता है। किताब की सबसे बड़ी बात कोई विषय न होना है, वो विषय है तो लेखक की सोच है। जो प्रकृति को लेकर भी है और अपने देश को लेकर भी है।
किताब की ताकत है एक अनूठा प्रयोग जो हर पढ़ने वाले को पसंद आयेगी। जो बहुत घूमता है उसे तो ये किताब जरुरी पढ़नी चाहिये। एक जगह को कैसे देखना चाहिये उसके बारे में ये किताब बहुत अच्छे से बताती है। किताब में शब्द को भरमार उनको खोजकर एक जगह लिखा जा सकता है और सीखा जा सकता है। इस अनूठे प्रयोग की अच्छी बिसात है ‘तुम्हारे बारे में’।
आज सुबह कोई बहुत धीमे कदमों से पास आकर बुदबुदाया, धुंध है आज चारों तरफ। मैंने तुरंत बिस्तर छोड़ा और कुछ ही देर में मैं दिल्ली की धुंध से भरी सड़कों पर था। इन सड़को को देखकर लगता है कि किसी पेंटर ने सफेद रंग के बहुत से स्ट्रोक अभी-अभी मारे हैं और पेंटिंग अभी अधूरी है। आधा-अधूरा कितनी सारी कल्पनाओं को चेहरा देता है! सुंदर क्षण धुंध में तैरने लगते हैं। पास की नजर तेज हो जाती है और दूर सब धुंआ हो जाता है। पक्षियों के कलरव में कहीं पीछे मुझे एक चायवाले की टन-टन सुनाई देती है। मैं उस आवाज के पीछे जाता हूं और एक चाय की टपरी चित्र में उभरती है। तभी लगता है कि दिल्ली की ठंड में यह धुंध असल में चाय के बर्तन से निकल रही है।
किताब में लेखक ने लिखी तो होंगी शायद अपने मन की बातें और अपने ख्यालात। लेकिन ऐसे ही ख्यालात सबके हैं बस किताब में अब मिले हैं। ये बेहतरीन किताब है जो बोर नहीं करती, जो सोचने को मजबूर करती है, जो ख्यालों की दुनिया में ले जाती है। शुरु से लेकर अंत तक विषय बदलते रहे लेकिन जिस प्रकार से लिखा है वो कमाल है। लेेखन के संसार में ये किताब एक अलग कहानी की तरह है, जिसे सबको पढ़ना चाहिये।
मानव कौल का लेखन मुझे लगता है कोई प्रयोग है जो अब तक किसी और ने नहीं किया। वो एक ही बात को, एक ही घटना को कई पहलुओं से बताते हैं। कभी वो बीमार व्यक्ति के बारे में बताते तो कभी बीमारी भी अपने बारे में बताती। उनका लेखन में कोई फिलाॅसफी दिखती है। उनकी बातें वहीं होती है जो हमारे आस-पास चल रहा होता है लेकिन उसे ही लिखना कितना कठिन है ये मानव कौल की लेखनी में झलकता है। वही लेखनी मानव कौल की इस किताब में है। इस किताब में मानव कौल ने अपने अंदर के मुड़े पन्नों को खोला है।
मानव कौल मूलतः कश्मीर के बारामूला में पैदा हुये लेकिन वे बढ़े हुये मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में। मानव कौल फिल्मी दुनिया के जाने-माने नाम हैं। एक्टिंग के साथ वे थियेटर करते हैं और यही सब करते-करते लिख भी लेते हैं। तुम्हारे बारे में उनकी तीसरी किताब है। इससे पहले वे ‘ठीक तुम्हारे पीछे’ और ‘प्रेम कबूतर’ लिख चुके हैं।
किताब के बारे में
‘ठीक तुम्हारे पीछे’ किताब में न कोई कहानी है और न ही कोई कविता है। इसमें तो छोटी-छोटी कुछ बातें हैं। जिसे लेखक ने चलते-चलते तो कभी एक जगह ठहरकर जो देखा और सोचा उसे शब्दों में पिरो दिया। लेकिन जिस तरह से वो पिरोया है वो बड़ा कमाल है। ज्यादातर बातें लेखक की बातें एक पेज में ही खत्म हो जाती हैं। कुछ बातें बहुत लंबी हैं जैसे भवानी भाई की कहानी और अपने रंगमंच की कहानी।
शुरुआत में पढ़ते हुये लगता है कि लेखक ने अपने छोटे-छोटे यात्रा विवरण लिख दिये है। जो कभी पहाड़ के बारे में होते तो कभी किसी बड़े शहर के बारे में। लेकिन जैसे-जैसे किताब को पढ़ते-जाते हैं तो पता चलता कि इसमें सिर्फ यात्रा विवरण नहीं है। वो जो पहले यात्रा विवरण लग रहे थे वो तो लेखक की उस जगह के बारे में, वहां के लोगों के बारे में सोच थी। जो सोच आगे चलकर मां, पिता और अपनी प्रेमिका के बारे में भी होती है।
वो अपने थियेटर के बारे में बताते, इन्हीं बातों में लेखक अपने गांव से मुंबई आने तक का सफर बता देता है। लेखक में साफगोई की रुमानियत है, एक खुशबू है जिसे लेखक ने बिखेरा है। किताब पढ़ते हुये लगता ही नहीं है कि लेखक ने कभी बातों को बनाया हुआ हो। ऐसा लगता है उसने जो जिया है, उसके साथ जो हुआ है वो उसने सब लिख दिया है। हर वो बात जो बताना चाहता है, हर वो वो बात जिसके बारे में वो सोचता है। किताब की सबसे बड़ी बात कोई विषय न होना है, वो विषय है तो लेखक की सोच है। जो प्रकृति को लेकर भी है और अपने देश को लेकर भी है।
किताब की ताकत है एक अनूठा प्रयोग जो हर पढ़ने वाले को पसंद आयेगी। जो बहुत घूमता है उसे तो ये किताब जरुरी पढ़नी चाहिये। एक जगह को कैसे देखना चाहिये उसके बारे में ये किताब बहुत अच्छे से बताती है। किताब में शब्द को भरमार उनको खोजकर एक जगह लिखा जा सकता है और सीखा जा सकता है। इस अनूठे प्रयोग की अच्छी बिसात है ‘तुम्हारे बारे में’।
किताब का कुछ अंश
आज सुबह कोई बहुत धीमे कदमों से पास आकर बुदबुदाया, धुंध है आज चारों तरफ। मैंने तुरंत बिस्तर छोड़ा और कुछ ही देर में मैं दिल्ली की धुंध से भरी सड़कों पर था। इन सड़को को देखकर लगता है कि किसी पेंटर ने सफेद रंग के बहुत से स्ट्रोक अभी-अभी मारे हैं और पेंटिंग अभी अधूरी है। आधा-अधूरा कितनी सारी कल्पनाओं को चेहरा देता है! सुंदर क्षण धुंध में तैरने लगते हैं। पास की नजर तेज हो जाती है और दूर सब धुंआ हो जाता है। पक्षियों के कलरव में कहीं पीछे मुझे एक चायवाले की टन-टन सुनाई देती है। मैं उस आवाज के पीछे जाता हूं और एक चाय की टपरी चित्र में उभरती है। तभी लगता है कि दिल्ली की ठंड में यह धुंध असल में चाय के बर्तन से निकल रही है।
किताब में लेखक ने लिखी तो होंगी शायद अपने मन की बातें और अपने ख्यालात। लेकिन ऐसे ही ख्यालात सबके हैं बस किताब में अब मिले हैं। ये बेहतरीन किताब है जो बोर नहीं करती, जो सोचने को मजबूर करती है, जो ख्यालों की दुनिया में ले जाती है। शुरु से लेकर अंत तक विषय बदलते रहे लेकिन जिस प्रकार से लिखा है वो कमाल है। लेेखन के संसार में ये किताब एक अलग कहानी की तरह है, जिसे सबको पढ़ना चाहिये।
No comments:
Post a Comment