Friday, 24 July 2020

एवरेस्ट की बेटीः उस महिला की कहानी जिसने लाचारी नहीं, साहस चुना

सबसे मुश्किल क्या है? मुझे अब तक लगता था कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचना सबसे कठिन है। मगर अब लगता है सबसे मुश्किल है खुद को बचाए रखना। पता नहीं कौन कब आपकी जिंदगी को ही पलटकर रख दे? लेकिन तमाम मुश्किलों के बावजूद जिंदगी खत्म नहीं होती। सबके हिस्से में कुछ न कुछ आता है बस जरूरत है तो साहस की। उसी साहस की मूरत हैं अरुणिमा सिन्हा। उसी साहस को अरुणिमा सिन्हा ने एक किताब के रूप में रखा है। किताब का नाम है, एवरेस्ट की बेटी।


आज अरुणिमा सिन्हा से कौन वाकिफ नहीं है। वो दुनिया की पहली दिव्यांग महिला हैं जो दुनिया भर की सात सबसे ऊंची चोटियों को फतह कर चुकी है। मगर मैंने जो किताब पढ़ी है वो कहानी उस अरुणिमा की है जो बस नौकरी चाहती थी और उसे मिला कुछ और। एक हादसे ने अरूणिमा की जिंदगी बदल दी। इस किताब में अरूणिमा के हादसे से लेकर माउंट एवरेस्ट के फतह करने तक की कहानी है। इस किताब को पढ़कर हर किसी के अंदर कुछ कर गुजरने का साहस जरूर आएगा।

कहानी


किताब के शीर्षक से लग सकता है कि ये किसी महिला की माउंट एवरेस्ट की कहानी या यात्रा वृतांत है। मगर ये कहानी है एक आम महिला की जो एक नौकरी के लिए एक रेल यात्रा करती है। कुछ चोर उसके गले में पड़ी सोने की चेन छीनना चाहते हैं। मगर जब वो लड़की इसके लिए लड़ने लगती है तो उसे ट्रेन से फेंक दिया जाता है। उसके पैर के ऊपर से ट्रेन गुजर जाती है। सर्दी की ठिठुरन भरी रात में वो मदद के लिए चिल्लाती है मगर उसकी आवाज कोई नहीं सुन पाता। अगली सुबह उसे कुछ लोग देखते हैं इसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती किया जाता है। जहां उसे अपना एक पैर खोना पड़ता है। उस पैर की जगह उसे कृत्रिम पैर मिलता है। जब सबको लगता है वो लाचारी भरी जिंदगी जिएगी। तब वो एक निश्चय करती है। दुनिया की सबसे कठिन और ऊंची चोटी को फतह करने की। सबको लगता है वो पागल है। मगर वो लड़की इसके लिए बछेन्द्री पाल से मिलती है, ट्रेनिंग लेती है और फिर उसी कृत्रिम पैर से माउंट एवरेस्ट फतह करती है। मगर ये कहानी बस इतनी-सी है? नहीं।

किताब के दो पेज।

अरूणिमा सिन्हा की ये किताब सिर्फ ये नहीं बताती कि उनके साथ हादसा कैसे हुआ? वो माउंट एवरेस्ट तक कितनी मुश्किलों से पहुंची। इन सबके अलावा माउंट एवरेस्ट की बेटी किताब बताती है इस समाज की दरिंदगी और स्वार्थी रूप। जब ट्रेन में उसके साथ छीना-छपटी की जा रही थी वो डिब्बा लोगों से भरा हुआ था। मगर कोई भी अरूणिमा सिन्हा को बचाने के लिए नहीं आया। ये किताब बताती है कि जब आप सबसे बुरे दर्द से गुजर रहे हों। तब भी अपने को बचाने और जिंदा रखने की कोशिश करती रहनी चाहिए। किताब बार-बार पुरूष समाज पर चोट करती है। वो बताती हैं कि अब भी इस देश में लड़का और लड़की को बराबर नहीं देखा जाता। अरूणिमा सिन्हा किताब में एक जगह बताती है, प्राथमिक कक्षाओं की पुस्तकें ऐसे वर्णनों से पटी पड़ी हैं कि राम पाठशाला जाता है और लक्ष्मी पाठशाला में काम करती है। ऐसी ही बहुत सारी बातें इस समाज के बारे में, अपने बारे में अरूणिमा सिन्हा किताब में बताती हैं।

किताब का एक हिस्सा हादसे से लेकर सही होने तक है। जिसमे अस्पताल, मीडिया और राजनेता भी हैं। अच्छी बात ये हैं कि ये तीनों अरूणिमा सिन्हा के लिए अच्छे ही साबित हुए हैं। एक हिस्सा अरूणिमा सिन्हा का माउंट एवरेस्ट तक चढ़ने का है। जिसमें उनकी ट्रेनिंग के बारे में भी है। जो उन्होंने उत्तराखंड के उत्तरकाशी में ली थी। उनको उस समय कैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था? इसके बाद माउंट एवरेस्ट कैसे चढ़ीं और सबसे मुश्किल कहां पर आई? ये सब किताब में है। एक प्रकार से ये किताब यात्रा वृतांत भी है जो माउंट एवरेस्ट के बारे में अच्छी जानकारी देता है। अरूणिमा सिन्हा के साहस की कहानी है जो हर किसी को पढ़नी चाहिए।

किताब की खूबी


किताब कई मायनों में बहुत अच्छी है। पहले तो ये एक ऐसे महिला के बारे में है जो सबके लिए एक प्रेरणा हैं। उसके बाद ये लिखी इस तरह गई है कि रोचकता बनी रहती है। 150 पेज की ये किताब कहीं भी बोरियत नहीं करती। अगर पढ़ते-पढ़ते रूक भी जाते हैं तो दिमाग में वही सब चलता रहता है जो वापस किताब की ओर खींच ले जाता है। भाषा बेहद सरल और सहज है। वैसे ये किताब इंग्लिश में बोर्न अगेन ऑन द् माउंटैन के नाम से है। मगर मैंने इसको हिन्दी में पढ़ा है। आप अपनी सहूलियत के हिसाब से इसे पढ़ सकते हैं।


एवरेस्ट की बेटी किताब एक साहसी महिला की कहानी है। इसे पढ़ें ताकि आप उस हादसे के बारे में जान सकें। आप जान सकें कि एक हादसा किसी की जिंदगी को किस प्रकार बदल सकता है। आप इस किताब को पढ़ें ताकि आपको पता चल सके कि हालात चाहे जैसे हों। अगर आपके पास एक लक्ष्य है तो वो लक्ष्य आपको लाचार नहीं होने देगा। वैसे तो अरूणिमा सिन्हा ने किताब में बहुत कुछ कहा है मगर मुझे एक बात बहुत पसंद है।

यदि आपको रोना है तो ऐसा आप अकेले में करें। दुनिया एक विजेता को देखना चाहती है। हारे और टूटे लोगों की हंसी उड़ाई जाती है।

किताब- एवरेस्ट की बेटी
लेखक- अरूणिमा सिन्हा
प्रकाशन- प्रभात पैपरबैक्स
कीमत- 150 रुपए।

Tuesday, 21 July 2020

सिर्फ जौन एलिया की शेरो शायरी के लिए नहीं उनको जानने के लिए पढें ये किताब

जो गुजारी न जा सकी हमसे, हमने वो जिंदगी गुजारी है।

इन रूहानी पंक्तियों को लिखने वाले का नाम है जौन एलिया। आज इस नाम से कौन वाकिफ नहीं है?लोग इस शायर के दीवाने हैं। सोशल मीडिया पर इस शख्स की वीडियो लोग बार-बार देखते हैं। कभी ये शायर शायरी पढ़ते-पढ़ते रोने लगता है तो कभी शायरी सुनने वाले रोने लगते हैं। हर कोई जौन को उनकी शायरी से जानता है, उनकी गजलों और नज्मों से जानता है। मगर उनकी जिंदगी कैसी थी? बिल्कुल साधारण या कठिनाईयों से भरी। वे असली जिंदगी में कैसे थे? खुशमिजाज या फिर शायरी ही उनका अक्स है। जौन एलिया के इन्हीं सारे पहलुओं पर एक किताब आई है, जौन एलिया एक अजब गजब शायर।


नौजवान हों या बुजुर्ग जौन एलिया को सब पसंद करते हैं। उनका सोचने का और कहने का ढंग ही कुछ अलग है। लेखक ने उनकी जिंदगी के उन पहलुओं के बारे में बताया है जो शायद आपको और मुझे नहीं पता। ऐसा भी नहीं कि इसमें सिर्फ जौन एलिया के किस्से और जिंदगी के पहलू ही हैं। इन सबके अलावा किताब में जौन की लिखी शायरी, नज्में, गजलें और कायनात भी हैं। अगर आपको जौन एलिया के बारे में जानना है उनकी चुनिंदा शायरी, नज्में और गजलों को पढ़ना है तो ये किताब आपको पढ़ लेनी चाहिए।

लेखक के बारे में

मुन्तजिर फिरोजाबादी 

इस किताब को लिखा है मुन्तजिर फिरोजाबादी ने। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद से ताल्लुक रखने वाले मुन्तजिर फिरोजाबादी का असली नाम अनंत भारद्वाज है। उनका परिवार चाहता है कि प्रशासनिक सेवाओं में जाएं लेकिन उनका दिलो-दिमाग साहित्य के अलावा कहीं और लगता ही नहीं है। मुन्तजिर लवली यूनिवर्सिटी जालंधर में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। खुद शायरी करते हैं और कवि-सम्मेलनों में भी शिरकत करते हैं। जौन साहब को बहुत मानते हैं मुन्तजिर। उनकी सुबह जौन साहब के शेर से होती है। अक्सर जौन उनकी तबियत और शायरी दोनों में आ जाते हैं। इनसे अगर आप मिलना चाहते हैं तो सबसे अच्छी जगह है फेसबुक।

किताब के बारे में


जौन एलिया एक अजब गजब शायर किताब जौन एलिया की जिंदगी पर है। जौन एलिया भारत में उत्तर प्रदेश के अमरोहा में पैदा हुए। 1947 में भारत आजाद तो हुआ लेकिन उसके दो हिस्से हुए। जौन एलिया का पूरा परिवार पाकिस्तान चला गया लेकिन जौन नहीं गए। 1956 तक जौन अमरोहा मे रहे। 1956 में जौन को अपने फैमिली के पास कराची जाना पड़ा। इस किताब में जौन के एक पहले इश्क के बारे में, उनकी पहली शायरी के बारे में, उनकी पहली किताब के बारे में बहुत सारे किस्से दिए गए हैं। वो अमरोहा में क्या किया करते थे? कराची जाने के बाद भी जौन एलिया अमरोहा को नहीं भूल पाए। वो अमरोहा में बहने वाली बान नदी को कितना याद करते थे?

किताब में बहुत सारे शायर और लोग जौन एलिया के बारे में, उनके किस्से बताते हैं। वो आस्तिक थे या नहीं? इस बारे में भी किताब में बताया गया है। जौन एलिया को समाज के दायरे में रहना पसंद नहीं था? इस बारे में एक जबरदस्त किस्सा है। उनकी बीमारी, परेशानी सबके बारे में बहुत सारे किस्से दिए गए हैं। जो आप पढ़ेंगे तो समझ आएगा कि जौन एलिया क्या हैं? जो अपने खून थूकने पर शायरी लिख दे वो कुछ भी कर सकता है किताब के किस्सों को पढ़ने के बाद समझ आता है कि जौन एलिया जैसा कोई नहीं। उन्होंने जो जिया वही लिखा। कहते हैं शायर जो कहता है वो शायद उसकी जिंदगी में कुछ होता नहीं है। मगर जौन एलिया की शायरी में ऐसा नहीं है। उनके बारे में कहा जाता है कि वे आज जिंदा होते तो उनका कत्ल कर दिया जाता।


किस्से तो जौन एलिया की जिंदगी के हैं जिनको पढ़ने पर जौन एलिया समझमें आते हैं। मगर पूरी किताब में सिर्फ यही नहीं है। इसमें कुछ फर्नूद हैं। मैंने जब ये नाम पढ़ा तो मुझे नहीं समझ आया क्या है? गूगल किया तो वहां भी कुछ नहीं मिला। इसमें कुछ विषयों पर जौन एलिया के विचार थे तो मुझे लग रहा है कि फर्नूद का मतलब राय है। इसमें मुशायरा, चंद सवाल, रोग, जुर्म, नफरत और नकल जैसे विषयों पर जौन एलिया की राय है। जिसे पढ़ने के बाद समझ आएगा कि जौन क्या सोचते थे? उनके दिमाग में क्या चलता था? इन सबको पढ़ने के बाद तो आप जौन को सिर्फ उनके शायरी के लिए पसंद नहीं करेंग। इसके अलावा आगे तो आपको अपनी और जौर एलिया की फेवरेट चीज मिलेंगी, गजलें और नज्में।

किताब की खूबी


किताब की सबसे बड़ी खूबी तो यही है कि वो जौन एलिया पर लिखी गई है। उसके बाद किस्से बेहतरीन हैं। चाहे वो 8 साल की उम्र में पहले इश्क का हो या दुबई एयरपोर्ट पर हाथ में लहराते शराब की बोतल का हो। इसके अलावा भाषा सरल और सहज तो है लेकिन थोड़ी कठिन भी है। इसमें उर्दू के शब्द बहुत सारे हैं। कई तो ऐसे शब्द हैं जिनका मतलब भी नहीं पता। एक प्रकार से ये अच्छा ही है क्योंकि इससे आपकी उर्दू अच्छी हो सकती है। जिनको उर्दू आती है उनको इसकी भाषा बिल्कुल सरल लगेगी।


फिरोज मुन्तजिर की ये किताब पढ़ी जाए जौन एलिया के बारे में जानने के लिए। इस किताब को पढ़ना चाहिए शायरी को जानने के लिए। इस किताब को पढ़ना चाहिए जौन एलिया की नज्मों और गजलों के लिए। इस किताब को तो आपकी शेल्फ में होना चाहिए। जब कभी परेशान हों, मूड खराब हो तो इस किताब को उठाइए और पढ़ना शुरू कीजिए जौन की गजलें। यकीन मानिए सुकून मिलेगा।

अब नहीं कोई बात खतरे की, अब सभी को सभी से खतरा है।

किताब- जौन एलिया एक अजब गजब शायर
लेखक- मुन्तजिर फिरोजाबादी
प्रकाशन- हिन्दी युग्म
कीमत- 150 रुपए।

Tuesday, 7 July 2020

अंदर तक छू जाती है ‘भोपाल सहर...बस सुबह तक‘ की कहानी

बारिश के बाद का सूरज कितना और किस हद तक चुभ सकता है, इसको सिर्फ वो ही महसूस कर सकता है। जो भीगकर सूरज की तल्खी के मुकाबिल बिना छत के खड़ा हो।

ये कुछ लाइनें हैं एक किताब की। किताब जिसकी कहानी बहुत जोरदार है। वो अच्छी है क्योंकि उस कहानी को लिखा बेहतरीन तरीके से है। लेखक ने किताब में एक हादसे की जमीन पर एक मार्मिक कहानी बुनी है। जब उस कहानी को पढ़ते हैं तो उस कहानी में हम भी बंध जाते हैं और सोचने लगते हैं कि आगे क्या होगा? भोपाल सहर...बस सुबह तक किताब बहुत हद तक जिंदगी के फलसफे को बताती है। जिंदगी जो कई पहलुओं में होती है, सपने, खुशी, चाहत और मजबूरी। ये सब आपको इस किताब में बहुत हद तक गहरे तक ले जाते हैं।


लेखक के बारे में 


लेखक।
इस किताब को लिखा है आजाद ने। सुधीर लेखक के अलावा एक फिल्मकार, गीतकार और अच्छे वक्ता हैं। मध्य प्रदेश के अमरबाड़ा के रहने वाले सुधीर बुनियादी तौर पर एक संजीदा शायर हैं। जिंदगी के पहलुओं को बेहतरीन तरीके से पन्नों पर उतारते हैं सुधीर। इस किताब को लोगों ने पसंद किया है। ये किताब अंग्रेजी में भी अनुवादित होकर छप चुकी है। हाल ही में उनकी शाॅर्ट फिल्म ‘द लास्ट वुड’ की खूब प्रशंसा हुई। फिलहाल आजाद अपनी अगली किताब लिव-इन को लिखने में व्यस्त हैं।

कहानी


तो कहानी शुरू होती है पुराने भोपाल के आखिरी घर से। जहां एक औरत अपनी तीन लड़कियों के साथ रहती है। आबिदा जिसके शौहर की हादसे में मौत हो गई थी। उसकी तीन बेटियां नसरीन, शमीन और सहर को हालात ने वक्त से पहले बड़ा कर दिया था। आबिदा घर से ही सिलाई का काम करती थी और उसी से उनकी रोजी-रोटी चलती थी। मगर ये काम उनका पेट सही से नहीं भर पाता था। हर रोज उनको किसी न किसी मुसीबत का सामना करना पड़ता था।

गरीबी के इस हालात तब बदले जब नसरीन की शादी हो गई। मगर खुशी ज्यादा टिक नहीं पाई पहले नसरीन की मौत फिर शमीन की और सहर को इन हालातों ने कुछ और ही बना दिया। सहर किसी और से प्यार करती थी लेकिन उसे नसरीन के शौहर से निकाह करना पड़ता है। जब फिरोज के करीब आना चाहती है तो फिरोज दूर चला जाता है। आखिर में सहर की मुलाकात उसके प्यार अमन से होती है। अमन उसे दिल्ली ले जाना चाहता है और सहर मान भी जाती है। अब सहर दिल्ली जा पाती है या नहीं? अमन भोपाल आता है या नहीं। अगर आता है तो फिर क्या होता है? इन सबके बारे में जानने के लिए आपको भोपाल सहर...बस सुबह तक किताब को पढ़ना पड़ेगा।

किताब के बारे में


किताब में मार्मिकता कूट-कूट के भरी पड़ी है। जब लगता है सब अच्छा हो रहा है तभी कुछ ऐसा होता कि दुख के बादल छा जाते। किताब में सिर्फ हादसे नहीं है, लेखक ने कुछ सच्ची घटनाओं को भी डाला है। जैसे कि
ट्रेन में फिरोज को हिन्दु-मुसलमान दंगे में मार दिया जाना। ये 1984 के दंगे की थोड़ी-सी झलक दिखाती है। इसके अलावा भोपाल त्रासदी को इस किताब का क्लाइमेक्स है। जब आप क्लाइमेक्स तक आएंगे तो मार्मिकता के सागर में डूब जाएंगे।



किताब में सिर्फ कहानी नहीं चल रही होती है। बीच-बीच में लेखक कुछ ऐसी बातें लिखते हैं जो नोट करने का मन करता है। जो कभी अकेलेपन पर होती है तो कभी खुशी और दुख पर। लेखक की ये बातें किताब को और रोचक बनाती है। किताब में उन चार लोगों के अलावा भी कुछ किरदार हैं जो बाद में आपस में कहीं न कहीं जुड़ जाते हैं। चाहे वो मुख्तार हो, अतहर हो, अमन और विमला सभी किरदार एक-दूसरे से कहीं न कहीं जुड़े हुए है। एक किताब सिर्फ एक कहानी नहीं कहती उस जगह के बारे में बताती है। लेखक ने बखूबी से भोपाल के बारे में काफी कुछ कहा है। चाहे वो ईद में भोपाल का माहौल हो या फिर शाम को झील किनारे का नजारा। ये सब पढ़कर कुछ भोपाल के बारे में कल्पना की जा सकती है।

कहानी शुरू तो होती है आबिदा के परिवार से लेकिन अंत होता है सभी किरदारों के एक हो जाने से। ये कहानी अंदर तक छू जाती है। कहानी में आगे बढ़ने से पहले दिमाग ही कहानी बनने लगता है। लेखक ने इतने अच्छे से लिखा है कि ये अंदर तक असर कर जाती है। अगर आप एक अच्छी कहानी को पढ़ना चाहते हैं तो सुधीर आजाद की भोपाल सहर...बस सुबह तक जरूर पढ़िए।

किताब की खूबी


इस किताब की सबसे बड़ी खूबी इसकी कहानी है और इसे जिस तरह से लिखा है। वो इसको असरदार बनाता है। भाषा सरल है लेकिन शब्दों में उर्दू बहुत है। उर्दू इतनी ज्यादा की हर पंक्ति में उर्दू का कोई न कोई शब्द जरूर मिल जाएगा। आपको उनको मानी नहीं मालूम होंगे लेकिन पढ़ने पर अंदाजा लग जाता है कि क्या कहा जा रहा है? आप इन उर्दू के शब्दों को नोट भी कर सकते हैं जिससे इनके बारे में जाना जा सके। आपको ये किताब पढ़नी चाहिए एक अच्छी कहानी के लिए। मार्मिकता को शब्दों में, कहानी में कैसे पिरोया जाता है आपको ये किताब पढ़कर ही समझ आएगा। 


किताब से कुछ अंश 


कुछ ही देर में टेन के रुकने से लोगों की सांसें रूक गईं। दहशतगर बोगियों में तलवार लेकर चढ़े और अपने मजहब के नारे लगाते हुए लोगों को लहूलुहान करने लगे। वे बिना-देखे जाने लोगों पर तलवारें चलाने लगे। चादर ओढ़कर सो रहे मुख्तार चाचा समेत शर्मा दंपत्ति का कत्ल कर दिया गया। फिरोज ने कुछ मुकाबला किया पर कब तक करता।

भोपाल...सहर से सुबह तक 151 पेजों की एक पतली-सी किताब है जिसे आप एक बैठक में खत्म कर सकते हैं। कहानी में इतनी रोचकता है कि ये आपको उठने ही नहीं देगी। ये कहानी आपको अंदर तक छू जाती है। जीवन के किल्लतों से लेकर खुशियों के सारे पलों को किताब बखूबी दर्ज करता है। चाहे वो किसी का जिंदगी से जाना हो या प्रेम से बिछड़ना हो। जिंदगी के इन फलसफों को बताती ये किताब वाकई अच्छी किताब है।

पुस्तक- भोपाल सहर...बस सुबह तक
लेखक- सुधीर आजाद
प्रकाशन- सर्वत्र
कीमत- 150 रुपए।