Tuesday, 7 July 2020

अंदर तक छू जाती है ‘भोपाल सहर...बस सुबह तक‘ की कहानी

बारिश के बाद का सूरज कितना और किस हद तक चुभ सकता है, इसको सिर्फ वो ही महसूस कर सकता है। जो भीगकर सूरज की तल्खी के मुकाबिल बिना छत के खड़ा हो।

ये कुछ लाइनें हैं एक किताब की। किताब जिसकी कहानी बहुत जोरदार है। वो अच्छी है क्योंकि उस कहानी को लिखा बेहतरीन तरीके से है। लेखक ने किताब में एक हादसे की जमीन पर एक मार्मिक कहानी बुनी है। जब उस कहानी को पढ़ते हैं तो उस कहानी में हम भी बंध जाते हैं और सोचने लगते हैं कि आगे क्या होगा? भोपाल सहर...बस सुबह तक किताब बहुत हद तक जिंदगी के फलसफे को बताती है। जिंदगी जो कई पहलुओं में होती है, सपने, खुशी, चाहत और मजबूरी। ये सब आपको इस किताब में बहुत हद तक गहरे तक ले जाते हैं।


लेखक के बारे में 


लेखक।
इस किताब को लिखा है आजाद ने। सुधीर लेखक के अलावा एक फिल्मकार, गीतकार और अच्छे वक्ता हैं। मध्य प्रदेश के अमरबाड़ा के रहने वाले सुधीर बुनियादी तौर पर एक संजीदा शायर हैं। जिंदगी के पहलुओं को बेहतरीन तरीके से पन्नों पर उतारते हैं सुधीर। इस किताब को लोगों ने पसंद किया है। ये किताब अंग्रेजी में भी अनुवादित होकर छप चुकी है। हाल ही में उनकी शाॅर्ट फिल्म ‘द लास्ट वुड’ की खूब प्रशंसा हुई। फिलहाल आजाद अपनी अगली किताब लिव-इन को लिखने में व्यस्त हैं।

कहानी


तो कहानी शुरू होती है पुराने भोपाल के आखिरी घर से। जहां एक औरत अपनी तीन लड़कियों के साथ रहती है। आबिदा जिसके शौहर की हादसे में मौत हो गई थी। उसकी तीन बेटियां नसरीन, शमीन और सहर को हालात ने वक्त से पहले बड़ा कर दिया था। आबिदा घर से ही सिलाई का काम करती थी और उसी से उनकी रोजी-रोटी चलती थी। मगर ये काम उनका पेट सही से नहीं भर पाता था। हर रोज उनको किसी न किसी मुसीबत का सामना करना पड़ता था।

गरीबी के इस हालात तब बदले जब नसरीन की शादी हो गई। मगर खुशी ज्यादा टिक नहीं पाई पहले नसरीन की मौत फिर शमीन की और सहर को इन हालातों ने कुछ और ही बना दिया। सहर किसी और से प्यार करती थी लेकिन उसे नसरीन के शौहर से निकाह करना पड़ता है। जब फिरोज के करीब आना चाहती है तो फिरोज दूर चला जाता है। आखिर में सहर की मुलाकात उसके प्यार अमन से होती है। अमन उसे दिल्ली ले जाना चाहता है और सहर मान भी जाती है। अब सहर दिल्ली जा पाती है या नहीं? अमन भोपाल आता है या नहीं। अगर आता है तो फिर क्या होता है? इन सबके बारे में जानने के लिए आपको भोपाल सहर...बस सुबह तक किताब को पढ़ना पड़ेगा।

किताब के बारे में


किताब में मार्मिकता कूट-कूट के भरी पड़ी है। जब लगता है सब अच्छा हो रहा है तभी कुछ ऐसा होता कि दुख के बादल छा जाते। किताब में सिर्फ हादसे नहीं है, लेखक ने कुछ सच्ची घटनाओं को भी डाला है। जैसे कि
ट्रेन में फिरोज को हिन्दु-मुसलमान दंगे में मार दिया जाना। ये 1984 के दंगे की थोड़ी-सी झलक दिखाती है। इसके अलावा भोपाल त्रासदी को इस किताब का क्लाइमेक्स है। जब आप क्लाइमेक्स तक आएंगे तो मार्मिकता के सागर में डूब जाएंगे।



किताब में सिर्फ कहानी नहीं चल रही होती है। बीच-बीच में लेखक कुछ ऐसी बातें लिखते हैं जो नोट करने का मन करता है। जो कभी अकेलेपन पर होती है तो कभी खुशी और दुख पर। लेखक की ये बातें किताब को और रोचक बनाती है। किताब में उन चार लोगों के अलावा भी कुछ किरदार हैं जो बाद में आपस में कहीं न कहीं जुड़ जाते हैं। चाहे वो मुख्तार हो, अतहर हो, अमन और विमला सभी किरदार एक-दूसरे से कहीं न कहीं जुड़े हुए है। एक किताब सिर्फ एक कहानी नहीं कहती उस जगह के बारे में बताती है। लेखक ने बखूबी से भोपाल के बारे में काफी कुछ कहा है। चाहे वो ईद में भोपाल का माहौल हो या फिर शाम को झील किनारे का नजारा। ये सब पढ़कर कुछ भोपाल के बारे में कल्पना की जा सकती है।

कहानी शुरू तो होती है आबिदा के परिवार से लेकिन अंत होता है सभी किरदारों के एक हो जाने से। ये कहानी अंदर तक छू जाती है। कहानी में आगे बढ़ने से पहले दिमाग ही कहानी बनने लगता है। लेखक ने इतने अच्छे से लिखा है कि ये अंदर तक असर कर जाती है। अगर आप एक अच्छी कहानी को पढ़ना चाहते हैं तो सुधीर आजाद की भोपाल सहर...बस सुबह तक जरूर पढ़िए।

किताब की खूबी


इस किताब की सबसे बड़ी खूबी इसकी कहानी है और इसे जिस तरह से लिखा है। वो इसको असरदार बनाता है। भाषा सरल है लेकिन शब्दों में उर्दू बहुत है। उर्दू इतनी ज्यादा की हर पंक्ति में उर्दू का कोई न कोई शब्द जरूर मिल जाएगा। आपको उनको मानी नहीं मालूम होंगे लेकिन पढ़ने पर अंदाजा लग जाता है कि क्या कहा जा रहा है? आप इन उर्दू के शब्दों को नोट भी कर सकते हैं जिससे इनके बारे में जाना जा सके। आपको ये किताब पढ़नी चाहिए एक अच्छी कहानी के लिए। मार्मिकता को शब्दों में, कहानी में कैसे पिरोया जाता है आपको ये किताब पढ़कर ही समझ आएगा। 


किताब से कुछ अंश 


कुछ ही देर में टेन के रुकने से लोगों की सांसें रूक गईं। दहशतगर बोगियों में तलवार लेकर चढ़े और अपने मजहब के नारे लगाते हुए लोगों को लहूलुहान करने लगे। वे बिना-देखे जाने लोगों पर तलवारें चलाने लगे। चादर ओढ़कर सो रहे मुख्तार चाचा समेत शर्मा दंपत्ति का कत्ल कर दिया गया। फिरोज ने कुछ मुकाबला किया पर कब तक करता।

भोपाल...सहर से सुबह तक 151 पेजों की एक पतली-सी किताब है जिसे आप एक बैठक में खत्म कर सकते हैं। कहानी में इतनी रोचकता है कि ये आपको उठने ही नहीं देगी। ये कहानी आपको अंदर तक छू जाती है। जीवन के किल्लतों से लेकर खुशियों के सारे पलों को किताब बखूबी दर्ज करता है। चाहे वो किसी का जिंदगी से जाना हो या प्रेम से बिछड़ना हो। जिंदगी के इन फलसफों को बताती ये किताब वाकई अच्छी किताब है।

पुस्तक- भोपाल सहर...बस सुबह तक
लेखक- सुधीर आजाद
प्रकाशन- सर्वत्र
कीमत- 150 रुपए।

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