सबसे मुश्किल क्या है? मुझे अब तक लगता था कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचना सबसे कठिन है। मगर अब लगता है सबसे मुश्किल है खुद को बचाए रखना। पता नहीं कौन कब आपकी जिंदगी को ही पलटकर रख दे? लेकिन तमाम मुश्किलों के बावजूद जिंदगी खत्म नहीं होती। सबके हिस्से में कुछ न कुछ आता है बस जरूरत है तो साहस की। उसी साहस की मूरत हैं अरुणिमा सिन्हा। उसी साहस को अरुणिमा सिन्हा ने एक किताब के रूप में रखा है। किताब का नाम है, एवरेस्ट की बेटी।
आज अरुणिमा सिन्हा से कौन वाकिफ नहीं है। वो दुनिया की पहली दिव्यांग महिला हैं जो दुनिया भर की सात सबसे ऊंची चोटियों को फतह कर चुकी है। मगर मैंने जो किताब पढ़ी है वो कहानी उस अरुणिमा की है जो बस नौकरी चाहती थी और उसे मिला कुछ और। एक हादसे ने अरूणिमा की जिंदगी बदल दी। इस किताब में अरूणिमा के हादसे से लेकर माउंट एवरेस्ट के फतह करने तक की कहानी है। इस किताब को पढ़कर हर किसी के अंदर कुछ कर गुजरने का साहस जरूर आएगा।
किताब के शीर्षक से लग सकता है कि ये किसी महिला की माउंट एवरेस्ट की कहानी या यात्रा वृतांत है। मगर ये कहानी है एक आम महिला की जो एक नौकरी के लिए एक रेल यात्रा करती है। कुछ चोर उसके गले में पड़ी सोने की चेन छीनना चाहते हैं। मगर जब वो लड़की इसके लिए लड़ने लगती है तो उसे ट्रेन से फेंक दिया जाता है। उसके पैर के ऊपर से ट्रेन गुजर जाती है। सर्दी की ठिठुरन भरी रात में वो मदद के लिए चिल्लाती है मगर उसकी आवाज कोई नहीं सुन पाता। अगली सुबह उसे कुछ लोग देखते हैं इसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती किया जाता है। जहां उसे अपना एक पैर खोना पड़ता है। उस पैर की जगह उसे कृत्रिम पैर मिलता है। जब सबको लगता है वो लाचारी भरी जिंदगी जिएगी। तब वो एक निश्चय करती है। दुनिया की सबसे कठिन और ऊंची चोटी को फतह करने की। सबको लगता है वो पागल है। मगर वो लड़की इसके लिए बछेन्द्री पाल से मिलती है, ट्रेनिंग लेती है और फिर उसी कृत्रिम पैर से माउंट एवरेस्ट फतह करती है। मगर ये कहानी बस इतनी-सी है? नहीं।
अरूणिमा सिन्हा की ये किताब सिर्फ ये नहीं बताती कि उनके साथ हादसा कैसे हुआ? वो माउंट एवरेस्ट तक कितनी मुश्किलों से पहुंची। इन सबके अलावा माउंट एवरेस्ट की बेटी किताब बताती है इस समाज की दरिंदगी और स्वार्थी रूप। जब ट्रेन में उसके साथ छीना-छपटी की जा रही थी वो डिब्बा लोगों से भरा हुआ था। मगर कोई भी अरूणिमा सिन्हा को बचाने के लिए नहीं आया। ये किताब बताती है कि जब आप सबसे बुरे दर्द से गुजर रहे हों। तब भी अपने को बचाने और जिंदा रखने की कोशिश करती रहनी चाहिए। किताब बार-बार पुरूष समाज पर चोट करती है। वो बताती हैं कि अब भी इस देश में लड़का और लड़की को बराबर नहीं देखा जाता। अरूणिमा सिन्हा किताब में एक जगह बताती है, प्राथमिक कक्षाओं की पुस्तकें ऐसे वर्णनों से पटी पड़ी हैं कि राम पाठशाला जाता है और लक्ष्मी पाठशाला में काम करती है। ऐसी ही बहुत सारी बातें इस समाज के बारे में, अपने बारे में अरूणिमा सिन्हा किताब में बताती हैं।
किताब का एक हिस्सा हादसे से लेकर सही होने तक है। जिसमे अस्पताल, मीडिया और राजनेता भी हैं। अच्छी बात ये हैं कि ये तीनों अरूणिमा सिन्हा के लिए अच्छे ही साबित हुए हैं। एक हिस्सा अरूणिमा सिन्हा का माउंट एवरेस्ट तक चढ़ने का है। जिसमें उनकी ट्रेनिंग के बारे में भी है। जो उन्होंने उत्तराखंड के उत्तरकाशी में ली थी। उनको उस समय कैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था? इसके बाद माउंट एवरेस्ट कैसे चढ़ीं और सबसे मुश्किल कहां पर आई? ये सब किताब में है। एक प्रकार से ये किताब यात्रा वृतांत भी है जो माउंट एवरेस्ट के बारे में अच्छी जानकारी देता है। अरूणिमा सिन्हा के साहस की कहानी है जो हर किसी को पढ़नी चाहिए।
किताब कई मायनों में बहुत अच्छी है। पहले तो ये एक ऐसे महिला के बारे में है जो सबके लिए एक प्रेरणा हैं। उसके बाद ये लिखी इस तरह गई है कि रोचकता बनी रहती है। 150 पेज की ये किताब कहीं भी बोरियत नहीं करती। अगर पढ़ते-पढ़ते रूक भी जाते हैं तो दिमाग में वही सब चलता रहता है जो वापस किताब की ओर खींच ले जाता है। भाषा बेहद सरल और सहज है। वैसे ये किताब इंग्लिश में बोर्न अगेन ऑन द् माउंटैन के नाम से है। मगर मैंने इसको हिन्दी में पढ़ा है। आप अपनी सहूलियत के हिसाब से इसे पढ़ सकते हैं।
एवरेस्ट की बेटी किताब एक साहसी महिला की कहानी है। इसे पढ़ें ताकि आप उस हादसे के बारे में जान सकें। आप जान सकें कि एक हादसा किसी की जिंदगी को किस प्रकार बदल सकता है। आप इस किताब को पढ़ें ताकि आपको पता चल सके कि हालात चाहे जैसे हों। अगर आपके पास एक लक्ष्य है तो वो लक्ष्य आपको लाचार नहीं होने देगा। वैसे तो अरूणिमा सिन्हा ने किताब में बहुत कुछ कहा है मगर मुझे एक बात बहुत पसंद है।
किताब- एवरेस्ट की बेटी
लेखक- अरूणिमा सिन्हा
प्रकाशन- प्रभात पैपरबैक्स
कीमत- 150 रुपए।
आज अरुणिमा सिन्हा से कौन वाकिफ नहीं है। वो दुनिया की पहली दिव्यांग महिला हैं जो दुनिया भर की सात सबसे ऊंची चोटियों को फतह कर चुकी है। मगर मैंने जो किताब पढ़ी है वो कहानी उस अरुणिमा की है जो बस नौकरी चाहती थी और उसे मिला कुछ और। एक हादसे ने अरूणिमा की जिंदगी बदल दी। इस किताब में अरूणिमा के हादसे से लेकर माउंट एवरेस्ट के फतह करने तक की कहानी है। इस किताब को पढ़कर हर किसी के अंदर कुछ कर गुजरने का साहस जरूर आएगा।
कहानी
किताब के शीर्षक से लग सकता है कि ये किसी महिला की माउंट एवरेस्ट की कहानी या यात्रा वृतांत है। मगर ये कहानी है एक आम महिला की जो एक नौकरी के लिए एक रेल यात्रा करती है। कुछ चोर उसके गले में पड़ी सोने की चेन छीनना चाहते हैं। मगर जब वो लड़की इसके लिए लड़ने लगती है तो उसे ट्रेन से फेंक दिया जाता है। उसके पैर के ऊपर से ट्रेन गुजर जाती है। सर्दी की ठिठुरन भरी रात में वो मदद के लिए चिल्लाती है मगर उसकी आवाज कोई नहीं सुन पाता। अगली सुबह उसे कुछ लोग देखते हैं इसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती किया जाता है। जहां उसे अपना एक पैर खोना पड़ता है। उस पैर की जगह उसे कृत्रिम पैर मिलता है। जब सबको लगता है वो लाचारी भरी जिंदगी जिएगी। तब वो एक निश्चय करती है। दुनिया की सबसे कठिन और ऊंची चोटी को फतह करने की। सबको लगता है वो पागल है। मगर वो लड़की इसके लिए बछेन्द्री पाल से मिलती है, ट्रेनिंग लेती है और फिर उसी कृत्रिम पैर से माउंट एवरेस्ट फतह करती है। मगर ये कहानी बस इतनी-सी है? नहीं।
किताब के दो पेज। |
अरूणिमा सिन्हा की ये किताब सिर्फ ये नहीं बताती कि उनके साथ हादसा कैसे हुआ? वो माउंट एवरेस्ट तक कितनी मुश्किलों से पहुंची। इन सबके अलावा माउंट एवरेस्ट की बेटी किताब बताती है इस समाज की दरिंदगी और स्वार्थी रूप। जब ट्रेन में उसके साथ छीना-छपटी की जा रही थी वो डिब्बा लोगों से भरा हुआ था। मगर कोई भी अरूणिमा सिन्हा को बचाने के लिए नहीं आया। ये किताब बताती है कि जब आप सबसे बुरे दर्द से गुजर रहे हों। तब भी अपने को बचाने और जिंदा रखने की कोशिश करती रहनी चाहिए। किताब बार-बार पुरूष समाज पर चोट करती है। वो बताती हैं कि अब भी इस देश में लड़का और लड़की को बराबर नहीं देखा जाता। अरूणिमा सिन्हा किताब में एक जगह बताती है, प्राथमिक कक्षाओं की पुस्तकें ऐसे वर्णनों से पटी पड़ी हैं कि राम पाठशाला जाता है और लक्ष्मी पाठशाला में काम करती है। ऐसी ही बहुत सारी बातें इस समाज के बारे में, अपने बारे में अरूणिमा सिन्हा किताब में बताती हैं।
किताब का एक हिस्सा हादसे से लेकर सही होने तक है। जिसमे अस्पताल, मीडिया और राजनेता भी हैं। अच्छी बात ये हैं कि ये तीनों अरूणिमा सिन्हा के लिए अच्छे ही साबित हुए हैं। एक हिस्सा अरूणिमा सिन्हा का माउंट एवरेस्ट तक चढ़ने का है। जिसमें उनकी ट्रेनिंग के बारे में भी है। जो उन्होंने उत्तराखंड के उत्तरकाशी में ली थी। उनको उस समय कैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था? इसके बाद माउंट एवरेस्ट कैसे चढ़ीं और सबसे मुश्किल कहां पर आई? ये सब किताब में है। एक प्रकार से ये किताब यात्रा वृतांत भी है जो माउंट एवरेस्ट के बारे में अच्छी जानकारी देता है। अरूणिमा सिन्हा के साहस की कहानी है जो हर किसी को पढ़नी चाहिए।
किताब की खूबी
किताब कई मायनों में बहुत अच्छी है। पहले तो ये एक ऐसे महिला के बारे में है जो सबके लिए एक प्रेरणा हैं। उसके बाद ये लिखी इस तरह गई है कि रोचकता बनी रहती है। 150 पेज की ये किताब कहीं भी बोरियत नहीं करती। अगर पढ़ते-पढ़ते रूक भी जाते हैं तो दिमाग में वही सब चलता रहता है जो वापस किताब की ओर खींच ले जाता है। भाषा बेहद सरल और सहज है। वैसे ये किताब इंग्लिश में बोर्न अगेन ऑन द् माउंटैन के नाम से है। मगर मैंने इसको हिन्दी में पढ़ा है। आप अपनी सहूलियत के हिसाब से इसे पढ़ सकते हैं।
एवरेस्ट की बेटी किताब एक साहसी महिला की कहानी है। इसे पढ़ें ताकि आप उस हादसे के बारे में जान सकें। आप जान सकें कि एक हादसा किसी की जिंदगी को किस प्रकार बदल सकता है। आप इस किताब को पढ़ें ताकि आपको पता चल सके कि हालात चाहे जैसे हों। अगर आपके पास एक लक्ष्य है तो वो लक्ष्य आपको लाचार नहीं होने देगा। वैसे तो अरूणिमा सिन्हा ने किताब में बहुत कुछ कहा है मगर मुझे एक बात बहुत पसंद है।
यदि आपको रोना है तो ऐसा आप अकेले में करें। दुनिया एक विजेता को देखना चाहती है। हारे और टूटे लोगों की हंसी उड़ाई जाती है।
किताब- एवरेस्ट की बेटी
लेखक- अरूणिमा सिन्हा
प्रकाशन- प्रभात पैपरबैक्स
कीमत- 150 रुपए।
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