पूर्वोत्तर को लेकर उत्तर भारत के लोगों में एक भ्रम बना हुआ है। हम हिमाचल और उत्तराखंड तो बड़े आराम से चले जाते हैं लेकिन पूर्वोत्तर जाने के लिए कई बार सोचते हैं। पूर्वोत्तर के लोगों के साथ दिल्ली में खराब व्यवहार किया जाता है। ऐसे में ये भी डर बना रहता है कि हमारे साथ भी वहां भी वैसा भी हो सकता है। आप सोचते हैं कि पूर्वोत्तर खतरे से भरी जगह है। अगर आपको नहीं पता कि वहां के लोग कैसे हैं तो इन सवालों के जवाब और धारणाओं को तोड़ती है, दूर दुर्गम दुरुस्त।
दूर दुर्गम दुरुस्त पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के कुछ जगहों का यात्रा वृतांत है। ये इतनी बखूबी से लिखा गया है कि ऐसा लगता है हम भी यात्रा कर रहे हैं। यात्रा करना भी सुकून देता है और उसके बारे में पढ़ने पर भी। वैसा ही सुकून देती है ये किताब। मुझे ये किताब बहुत अच्छी लगी। इतनी अच्छी कि मैं इसे एक बार मे पढ़कर खत्म कर सकता था लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। किताब को आराम-आराम से पढ़ा ताकि उसका आनंद कुछ ज्यादा देर तक ले सकूं। जो भी इस किताब को पढ़ेगा उसके साथ भी ऐसा जरूर होगा।
लेखक के बारे में
इस किताब को लिखा है, उमेश पंत ने। उमेश पंत उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के छोटे-से कस्बे गंगोलीहाट के रहने वाले हैं। अभी वो दिल्ली में रहते हैं। उमेश ने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के एमआरसी से मास कम्यूनिकेशन में मास्टर्स किया है। करियर की शुरूआत मुंबई में बालाजी टेलीफिल्म्स में बतौर एसोशिएट राइटर की। बाद में नीलेश मिसरा के शो यादों के एडिट बाॅक्स के लिए कहानियां भी लिखीं। ग्रामीण अखबार गांव कनेक्शन में पत्रकार भी रहे। इसके अलावा हिन्दी के तमाम अखबारों में यात्राओं और अन्य विषयों पर लेख लिखते रहते हैं। यात्राकार नाम से खुद का ब्लाॅग चलाते हैं। दूर दुर्गम दुरुस्त उमेश पंत की दूसरी किताब है। उनकी पहली किताब है, इनरलाइन पास। जिसको पाठकों ने काफी पसंद किया था।
किताब के बारे में
दूर दुर्गम दुरुस्त मेघालय, अरूणाचल प्रदेश और असम की कुछ जगहों का यात्रा वृतांत है। इस यात्रा को लेखक ने दो अलग-अलग समय पर किया। लेखक ने लिखा तो अपनी यात्रा के बारे में है लेकिन जिस तरह लिखा है वो काबिले तारीफ है। शब्दों की ताकत लेखक बहुत अच्छे से समझता है। उन्होंने इसे बिल्कुल कहानी की तरह सुनाया है। पढ़ते हुए लगता है कि हम कोई सिनेमा देख रहे हैं। बात फिर वो हार्निबल फेस्टिवल की हो या पानी में तैरते हुए आइलैंड की। पढ़ते हुए किताब आपको अपना बना लेगी।
किताब की शुरूआत होती है ट्रेन यात्रा से। ट्रेन यात्रा में जो कुछ भी होता है लेखक बताते चले जाते हैं। ट्रेन में जो वो देखते हैं, जो वो करते हैं, यहां तक कि लोगों की बातचीत भी। अक्सर ऐसा होता है कि लेखक अपनी किताब गालियां नहीं रखना चाहता। मगर लेखक ने ऐसा बड़ी बेबाकी से किया है। जिसके लिए उनकी तारीफ भी होनी चाहिए। लेखक शहर, गांव, छोटी-बड़ी जगहों पर घूमता ही रहता है। इस किताब को पढ़कर कई बार लगता है कि पूर्वोत्तर भी जाना चाहिए। किताब की अच्छी बात ये भी है कि लेखक जहां जाता है उस जगह के बारे में अच्छे से बताते हैं, वहां का इतिहास, वहां को भौगोलिकता के बारे में जरूर बताते हैं। जो किताब को और रोचक बनाता है।
किताब सिर्फ जगहों के बारे में बात नहीं करती है। वहां के लोगों के बारे में, परंपराओं के बारे में भी बात करती है। किताब को पढ़कर समझ आता है कि पूर्वोत्तर के लिए हमारे मन में गलत धारणा बनी हुई है। लेखक बताते हैं कि पूर्वोत्तर के लोग भी उतने ही अच्छे हैं जितना कि यहां की जगहें। कई मामलों में पूर्वोत्तर बाकी राज्यों से बेहतर है। यहां महिलाएं रात में आराम से घूमती हैं जबकि बाकी जगहों पर ऐसा करना लड़कियों और महिलाओं के लिए खतरा माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां के लोग अच्छे है। इसके अलावा किताब में कई जगह लेखक स्वच्छता का जिक्र करते हैं। तभी तो एशिया का स्वच्छ गांव पूर्वोत्तर में ही है।
ये किताब उन लोगों के लिए दस्तावेज की तरह है जो पूर्वोत्तर जाना चाहते हैं। किताब में बहुत-सी ऐसी जगहें हैं जिनके बारे में आपने न सुना हो तो इस किताब को पढ़ने के बाद आप वहां जा सकते हैं। पूर्वोत्तर में कितना खतरा है ये किताब उसका भी जिक्र करती है। इसके अलावा लेखक बीच-बीच में कुछ ऐसी चीजें बताते हैं जिनको नोट करने का मन करता है। यात्रा, असफला, जीवन, अजनबी और डर जैसे विषयों पर वो ऐसी बातें बताते हैं। जिनको पढ़कर किताब में रोचकता बनी रहती है। इस किताब को पढ़ने के बाद खुशी होती है कि कुछ बेहतरीन पढ़ा है। उससे भी बढ़कर ये ऐसी जगह के बारे में पता चला, जहां के बारे में हमें बहुत कम पता है।
अदना-सा अंश
इन तमाम ख्यालों के बाद जैसे दिमाग में एक अजीब-सी हलचल हुई। एक सवाल कौंधा कि आखिर क्यों हूं मैं इस यात्रा पर। इस तरह से अकेले निकल आने का क्या मतलब है? एक अजीब किस्म का अकेलापन महसूस होने लगा मुझे। यात्राओं के दौरान ऐसा शायद ही पहले कभी हुआ हो मेरे साथ। एक असन्तोष सा था ये, जो न जाने कहां से उपजा था? अंग्रेजी में लंबी यात्राओं के बीच जेहन आने वाली इन भावनाओं के लिए एक टर्म है- मिड टिप क्राइसिस।
खूबी
किताब की सबसे बड़ी खूबी है कि पूर्वोत्तर। पूर्वोत्तर पर बहुत कम किताबें आई हैं ऐसे में ये किताब बहुत अहम हो जाती है। इसके अलावा भाषा बेहद सरल और सहज है। लिखने की शैली भी लाजवाब है, बिल्कुल कहानी की तरह। 220 पन्ने की ये किताब पढ़ते हुए एक बार भी बोर नहीं होंगे। किताब में एक जगह पर कई पेजों पर सिर्फ फोटो हैं। जिनको देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है पूर्वोत्तर कितना खूबसूरत है। इसके अलावा किताब पूर्वोत्तर का एक दस्तावेज जैसा ही है। जो पूर्वाेत्तर जाना चाहता है, जानना चाहते है ये किताब उनके लिए ही है।
इस किताब के बाद अब पूर्वोत्तर अनजाना नहीं रहा। अगर आप घुमक्कड़ हैं या यात्रा वृतांत पढ़ना पसंद करते हैं तब तो आपको दूर दुर्गम दुरुस्त पसंद आएगी ही। अगर आपको ऐसा करना पसंद नहीं है तब भी आपको ये किताब पढ़नी चाहिए क्योंकि पूर्वोत्तर के बारे में हमारी जो बेवजह और बेकार धारणाएं हैं उनको तोड़ने का काम करती है ये किताब। पूर्वोत्तर असल में कैसा उसकी ही किताब है दूर दुर्गम दुरस्त।
किताब-दूर दुर्गम दुरुस्त
लेखक- उमेश पंत
प्रकाशन- सार्थक(राजकमल प्रकाशन का उपक्रम)
लागत- 250 रुपए।
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